हाल ही में जर्मनी के बॉन शहर में हुए विश्व विरासत (धरोहर) समिति ने करीब एक दशक से लंबित पड़ी भारत की मांग को मानते हुए सुझाए गए 10 विरासतों की सूची मेंं से भारत के दो एतिहासिक स्थलो को विश्व धरोहर (विरासत) सूची मेंं शामिल कर लिया है l ये दो नाम है – हड़प्पा काल के शहर धोलावीरा, गुजरात और काकतीय रुदरेश्वर रामप्पा मंदिर, तेलंगाना l इन्हे सांस्कृतिक विरासत स्थल की श्रेणी [ श्रेणी(i)(iii) ] के तहत शामिल किया गया है l एक राष्ट्र के तौर पर हमें गर्व का अनुभव होता है लेकिन इस कारण उस धरोहर के विकास और संवर्धन पर कितना प्रभाव पड़ता है, यह मूल्यांकन का विषय है l
किसी भी धरोहर का विश्व विरासत सूची में शामिल किए जाने से न तो उसके स्वामित्व में किसी प्रकार का बदलाव होता है न ही संचालन में l इसके उदाहरण के तौर पर वेटिकन सिटी और ताज महल को ही देख लीजिये l विश्व विरासत (धरोहर) समिति सिर्फ उसके संवर्धन और विकास संबंधी राय देती है जबकि आर्थिक सहयोग सिर्फ एक दिखावा है l लेकिन, इस चयन के कारण मानवीय हस्तक्षेप से परे वो स्थल अथवा धरोहर अचानक से विश्व पटल पर आ जाता है l और फिर शुरू होता है बेलगाम और निरंकुश पर्यटन का दुष्चक्र l प्रकृति, सौन्दर्य और धरोहर की संरचना को धूमिल करने का कृत्य l हमारे समक्ष ऐसे कई उदाहरण पड़े है जहां पर किसी धरोहर को विश्व विरासत में शामिल किए जाने से वहाँ होने वाले प्रदूषण, वातावरण परिवर्तन, बेलगाम निर्माण कार्य ने उनके मूलस्वरूप को ही परिवर्तित कर दिया है l
हाल ही मेंं विश्व विरासत समिति ने हंपी के विरासत स्थल और दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे के संरक्षण से संबंधित कुछ चिंताओं को चिह्नित किया है। पहले भी विश्व विरासत (धरोहर) समिति, हंपी के विश्व विरासत स्थल की विकासात्मक परियोजनाओं के बारे मेंं स्थानीय अधिकारियों की लापरवाही जैसी चिंताओं पर खेद व्यक्त कर चुका है। भारतीय रेलवे के कई बार अनुरोध के पश्चात्, निगरानी और सामान्य रखरखाव की कमी, एवं पटरियों के किनारे अतिक्रमण तथा कचरे को गिराये जाने (कचरे की डंपिंग) के बारे मेंं वर्ष 2017 से 2019 के बीच कोई जानकारी नहीं दी गई, इसे वैश्विक विरासत संरक्षण पर खतरा माना जा सकता है। ठीक इसी प्रकार के उदाहरण हमें ताजमहल के संदर्भ में भी देखने को मिले l माननीय उच्च न्यायालय को खुद जनहित याचिका के बाद राज्य और केंद्र सरकार को उद्योगीकरण और प्रदूषण से ताज महल के संरक्षण और संवर्धन हेतु निर्देश देना पड़ा l
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न्यायालय ने इसके परिधि में होने वाले सभी अवैध और प्रदूषणकारी कार्यो को रोकने के कड़े निर्देश दिये l विश्व विरासत की सूची में शामिल होने के कारण एक धरोहर अपनी तरफ पर्यटन, उद्योगीकरण, निर्माण कार्य, विभिन्न परियोजनाए, नव संरचनाए तथा पाश्चात्य और गलत नागरिक शैली को आकर्षित करने वाली जीवन सुविधाएं भी आकर्षित करती है, जो उस धरोहर के प्रकृति से मेल नहीं खाती और धीरे-धीरे उसके मूल तत्व को मार देती है l इन्ही सारे कारणो की वजह से सिक्ख समाज शायद हरमंदिर साहिब ( स्वर्ण मंदिर ) को विश्व विरासत में नहीं शामिल किए जाने की मांग कर रहा हैl
कहते है चीज़ें तभी बदलती है जब हम खुद उन्हें बदलने की नीयत रखते है l देश के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमें अपने अंदर नागरिक आचार के मानदंड स्थापित करने होंगे l संविधान के उस अनुछेद के प्रति पूरी निष्ठा रखनी होगी जिसके तहत अपनी एतिहासिक विरासत को सँजोकर रखना हमारा परम कर्तव्य बताया गया है l केंद्र और राज्य सरकारो को भी मिल कर इनके संवर्धन, संरक्षण और चहुमुखी विकास का एक विस्तृत खाका खीचना होगा और अपने नागरिकों को इन समृद्ध विरासत के प्रति जागरूक करना होगा l शायद इस मामले में हमें यूरोप और पश्चिमी देशो से भी सीखने की जरूरत है की अगर आप अपनी विरासत को सँजो कर रखते है तो इटली, स्पेन और फ़्रांस जैसे छोटे देशो से भी 40-50 स्थल और स्मारक विश्व विरासत की सूची में शामिल हो सकते है l
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