भारत सरकार के नीतिगत बदलाव का सीधा प्रभाव अर्थव्यवस्था पर परिलक्षित होने लगा है। भारत का इक्विटी मार्केट, वैश्विक स्तर पर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए दुनिया में सबसे मजबूत शेयर मार्केट के रूप में स्थापित हो चुका है। निफ्टी ने पिछले 12 महीनों में 45% की बढ़ोतरी दर्ज की है वहीं, इस वित्तीय वर्ष में भी अब तक 19% की बढ़ोतरी देखने को मिली है। वहीं चीन की बात करें तो उसका शेयर मार्केट दुनिया के प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला शेयर मार्केट है।
कोरोना महामारी ने दुनिया को यह समझा दिया है कि वह ग्लोबल सप्लाई सिस्टम में पूरी तरह से चीन पर ही निर्भर नहीं रह सकते। महामारी के प्रथम दौर में दुनिया आवश्यक दवाओं से लेकर वेंटिलेटर तक हर छोटी बड़ी वस्तु के लिए चीन पर निर्भर थी। इस महामारी ने लाखों लोगों की जान ली किंतु चीन पर आर्थिक निर्भरता के कारण चीन की जवाबदेही तय नहीं की जा सकी। हालांकि, इस वुहान वायरस ने दुनिया के तमाम देशों विशेषकर पश्चिमी देशों को इस बात के लिए सतर्क कर दिया कि चीन का आर्थिक विकल्प तैयार करना आवश्यक है। ऐसे में भारत दुनिया के सामने, स्वयं मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की संभावना लेकर उपस्थित हुआ। अब भारतीय शेयर मार्केट का प्रदर्शन देखकर यह कहा जा सकता है कि भारत जल्द ही ग्लोबल सप्लाई चेन में चीन का विकल्प बन जाएगा।
भारतीय इक्विटी मार्केट ने पिछले 1 वर्ष में असाधारण प्रदर्शन किया है। इक्विटी मार्केट में बढ़ोतरी यह दिखाती है कि निवेशक भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश कर रहे हैं। कोई कंपनी इक्विटी पूंजी तब जुटाती है जब लोग उस कंपनी के शेयर खरीदते हैं। किसी कंपनी के शेयर बिकने का मतलब यह होता है कि, निवेशकों को भविष्य में उस कंपनी से लाभ की उम्मीद है। साथ ही इक्विटी मार्केट का बढ़ना यह भी प्रदर्शित करता है कि भारत सरकार द्वारा निवेश को आकर्षित करने के लिए किए गए सभी प्रयास सफल हो रहे हैं।
MSCI वर्ल्ड इंडेक्स, जो दुनिया की सभी बड़ी, विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के प्रदर्शन के बारे में बताता है, उसमें भारत ने 15% की वार्षिक वृद्धि और 29% की ‛ईयर टू डेट’ वृद्धि दिखाई है। ईयर टू डेट का अर्थ हुआ कि इस वित्तीय वर्ष से वर्तमान दिनांक तक शेयर मार्केट में कितनी बढ़ोतरी हुई है। ईयर टू डेट में 29% की बढ़ोतरी यह दिखाती है कि भारत में वैक्सीनेशन की बढ़ती रफ्तार ने निवेशकों का विश्वास और मजबूत किया है।
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि भारत की वैश्विक इक्विटी में मार्केट की तुलना में आनुपातिक वृद्धि हुई है। भारतीय बाजार का ग्लोबल इक्विटी बाजार से रिटर्न कोरीलेशन 80% से घटकर 61% हो गया है। ऐसा नहीं है कि भारतीयों ने विदेशों में निवेश कम कर दिया है, बल्कि विदेशों से आने वाला निवेश इतना बढ़ा है कि उसके कारण भारतीय और वैश्विक इक्विटी बाजार के रिटर्न संबंध का आपसी अनुपात कम हो गया है।
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चीन का शेयर मार्केट सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में वैश्विक स्तर पर सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले शेयर मार्केट में से एक है। चीनी शेयर मार्केट का वार्षिक रिटर्न 4.94% और ईयर टू डेट रिटर्न 1.94% है। वहीं इसकी तुलना में भारत में 12 महीनों में 2.2 लाख करोड़ रुपये का निवेश हुआ है। 12 महीनों में देशी विदेशी निवेशकों के कारण भारत का मार्केट कैपटेलाइजेशन 1 ट्रिलियन डॉलर की बढ़त के साथ 3.2 ट्रिलियन डॉलर हो गया है। यह दोनों बातें यही दर्शाती हैं कि भारत वैश्विक स्तर पर स्वयं को चीन के विकल्प के रूप में स्थापित करने में सफल हो रहा है।
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भारत सरकार का आत्मनिर्भर अभियान सफल हो रहा है इसका एक अन्य प्रमाण ICRA रैंकिंग भी है। हाल ही में आई ICRA रैंकिंग में अर्थव्यवस्था से जुड़े 15 सूचकांकों में 8 में से भारत ने अप्रतिम प्रदर्शन किया है। इसमें टोल कलेक्शन, फ्यूल कंजप्शन अर्थात तेल का उपभोग, बिजली उत्पादन, गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन आदि शामिल थे। यह रैंकिंग दिखाती है कि भारत में आर्थिक गतिविधियां पुनः अपनी पूरी क्षमता के साथ चलने लगी हैं।
वास्तव में भारत के आर्थिक विकास की पृष्ठभूमि मोदी सरकार के प्रथम कार्यकाल में तैयार हो चुकी थी। बैंकिंग सेक्टर से लेकर रियल स्टेट तक लागू किए गए सुधारों ने पहले ही आर्थिक सशक्तिकरण की नींव डाल दी थी। वुहान वायरस के फैलाव ने बीच में ही इस प्रक्रिया को स्थगित कर दिया। किन्तु अब तमाम विशेषज्ञों का मानना है कि जैसे-जैसे वैक्सीनेशन आगे बढ़ेगा, भारत का आर्थिक विकास भी नई ऊँचाई छुएगा।