अखूंद, बरादर और हक़्क़ानी – विश्व को मिली उसकी पहली आतंकवादी सरकार

विश्व का पहले टेरर cabinet!

तालिबान सरकार

साभार: इंडिया टुडे

कल्पना कीजिए कि अलकायदा ने किसी देश पर नियंत्रण प्राप्त किया है। वहाँ सरकार का गठन होता है, और नेतृत्व ओसामा बिन लादेन के हाथ में, गृह मंत्रालय आयमान अल जवाहिरी एवं अन्य विभाग ऐसे आतंकियों को सौंपा जाए, जिन्होंने दुनिया में त्राहिमाम मचा के रखा है। सोचने में ही भयानक लग रहा है, नहीं? लेकिन कुछ ऐसा ही अब वास्तव में हुआ है। अमेरिका और पाकिस्तान की कृपा से विश्व को उसकी प्रथम आतंकवादी सरकार मिल चुकी है। जो ‘स्वप्न’ ISIS, अलकायदा, और मुल्ला ओमर के नेतृत्व वाला तालिबान भी कभी यथार्थ में परिवर्तित नहीं कर पाया, वो आखिरकार मुल्ला बरादर के नेतृत्व वाले तालिबान ने कर दिया। इसके मंत्रियों में एक से बढ़कर एक आतंकी भरे पड़े हैं, जिनमें से अधिकतर अमेरिका से लेकर दुनिया भर के क्राइम पोर्टल्स जैसे इन्टरपोल के मोस्ट वॉन्टेड लिस्ट में शामिल है, लेकिन अब ये अफगानिस्तान की सत्ता की बागडोर संभालते हुए दिखाई देंगे।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात की अगुआई फिलहाल कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर पर मुल्ला हसन अखुंद (Mullah Hassan Akhund) को कमान सौंपी गयी है, जो अब तक तालिबान की शीर्ष निर्णयकारी संस्था ‘रहबरी शूरा’ का प्रमुख है। एक संयुक्त राष्ट्र की सैंक्शन रिपोर्ट में उसे उमर का “करीबी सहयोगी और राजनीतिक सलाहकार” बताया है। उसे पहले ही संयुक्त राष्ट्र द्वारा ब्लैकलिस्ट किया गया था। वहीं मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को उप प्रधानमन्त्री का पदभार दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र सैंक्शन नोटिस में कहा गया है कि तालिबान सरकार के पतन के बाद, बरादर ने तालिबान में एक वरिष्ठ सैन्य कमांडर का पद संभाला था।

नवनियुक्त सदस्यों में से कम से कम पांच सदस्य संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित आतंकवादियों की सूची में हैं। अब्दुल सलाम हनफ़ी को इस नयी सरकार का दूसरा उप प्रमुख भी नामित किया गया था।

मुल्ला याकूब (Mullah Mohammad Yaqoob) को रक्षा मंत्री बनाया गया है, और अल्हाज मुल्ला फजल तालिबान के सेनाध्यक्ष हैं। खैर उल्लाह खैरख्वा को सूचना मंत्री का पद दिया गया है। अब्दुल हकीम को न्याय मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है। शेर अब्बास स्टानिकजई (Sher Muhammad Abbas Stanekzai) को डिप्टी विदेश मंत्री बनाया गया है। वहीं जबीउल्लाह मुजाहिद को सूचना मंत्रालय में डिप्टी मंत्री की कमान दी गई।

इस लिस्ट में गृह मंत्रालय का पदभार सिराजुद्दीन हक्कानी (Sirajuddin Haqqani) को मिला है। अलकायदा के बाद के सबसे कुख्यात आतंकी कार्टेल में से एक हक्कानी नेटवर्क का अहम सदस्य सिराजुद्दीन हक्कानी है, जो काबुल में 2008 के आतंकी हमले, और भारतीय दूतावास पर हुए आतंकी हमले में भी शामिल था। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने तो इस व्यक्ति की जानकारी देने पर 50 लाख अमेरिकी डॉलर के पुरस्कार का ऐलान किया था, और इसके संबंध अल कायदा से भी रहे हैं। उसने पाकिस्तान में रहते हुए अफगानिस्तान में कई हमले करवाए और अमेरिकी व नाटो सेनाओं को भी निशाना बनाया था। यही सिराजुद्दीन हक्कानी एक बार पूर्व अफ़गान राष्ट्रपति हामिद करज़ई की हत्या के प्रयास की योजना में भी शामिल हुआ था।

इस नेटवर्क की तालिबान के भीतर सही स्थिति क्या है और कैसे है, इस पर बहस होती रही है, लेकिन अमेरिका ने इसे एक विदेशी आतंकवादी संगठन का नाम दिया गया है। UN सैंक्शन कमेटी ने ये भी कहा है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच अराजक सीमावर्ती इलाकों में स्थित इस संगठन का नशीली दवाओं के प्रोडक्शन और बिजनेस में गहरी पार्टरनशिप है।

अब यही आतंकी अफगानिस्तान की नीति निर्माण को तय करेगा और आतंकी गतिविधियों को अफगानिस्तान से संचालित भी करेगा। इसमें निस्संदेह अमेरिका और पाकिस्तान के अतुलनीय योगदान को हम नहीं भुला सकते, जिनकी कृपा से ये व्यक्ति आज अफगानिस्तान के शासन की बागडोर संभाल रहा। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले समय में अफगानिस्तान में क्या हालात होने वाले हैं।

फिलहाल तालिबानी प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद के अनुसार ये अंतरिम सरकार है। इसका गठन केवल 6 माह के लिए हुआ है। बता दें कि इस बार जिन मुल्ला हसन को पीएम का पद मिला है, वह तालिबान की 1996 की पिछली सरकार में विदेश मंत्री और डिप्टी प्राइम मिनिस्टर के पद पर थे। 16 अगस्त तक तालिबान न अधिकांश अफगानिस्तान और काबुल पर कब्जा जमा लिया था। पंजशीर घाटी में कई क्रांतिकारी अब भी उनका विरोध कर रहे हैं, लेकिन वे कब तक टिके रहेंगे, इसका कोई भरोसा नहीं है। जिस प्रकार से इस आतंकी सरकार का गठन हुआ है जहां एक से बढ़ कर एक आतंकी शामिल हैं, उससे यह स्पष्ट है कि अफगानिस्तान के लोगों का भविष्य अब गर्त से भी बदतर स्थिति में पहुँच चुका हैं, जहां उन्हें न तो मानवाधिकार मिलेंगे और न ही खुल कर जीने का अधिकार।

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