3 साल पहले TFI ने जिस Land Jihad की भविष्यवाणी की थी, वही आज उत्तराखंड में एक बड़ी समस्या बन गया है

अभी हाल ही के दिनों में भूमि जिहाद के विरुद्ध उत्तराखंड में भारी मात्रा में विरोध प्रदर्शन देखने को मिले हैं!

लैंड जिहाद

इन दिनों देश में कट्टरपंथी मुसलमानों का अत्याचार एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आया है। चाहे लव जिहाद हो, लैंड जिहाद हो, आतंकवाद हो, ये अनेकों माध्यमों से गैर मुस्लिमों के जीवन को नारकीय बना चुके हैं। कई लोग धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अब भी चुप्पी साधे हुए हैं, परंतु अधिकतम लोग अब कट्टरपंथी इस्लाम से उत्पन्न खतरों से भली भांति परिचित हो चुके हैं, और वे इसके विरुद्ध मोर्चा भी खोल चुके हैं। अभी हाल ही के दिनों में लैंड जिहाद के विरुद्ध उत्तराखंड में भारी मात्रा में विरोध प्रदर्शन देखने को मिले हैं।

राज्य सरकार, उत्तराखंड के कुछ हिस्सों में एक विशेष ‘विशेष’ समुदाय की आबादी में “अभूतपूर्व” वृद्धि को पहचानते हुए, शहरों और धार्मिक महत्व के क्षेत्रों में किसी भी तरह के पलायन या अप्राकृतिक और ठोस जनसांख्यिकीय अधिग्रहण को रोकने के लिए एहतियाती कदम उठाने जा रही है।

कुछ ही दिन पहले अपने फ़ेसबुक अकाउंट पर उत्तराखंड में भाजपा के पूर्व प्रदेश महामंत्री गजराज सिंह बिष्ट ने नैनीताल में एक विरोध प्रदर्शन के संबंध में वीडियो शेयर किया, जहां वे उपस्थित लोगों से कहते हुए दिखाई दिए, “देश का बँटवारा होने के बाद 2 करोड़ मुसलमान हिंदुस्तान में रहे और 2 करोड़ मुस्लिम पाकिस्तान चले गए। आज़ादी के 70 सालों के बाद आज हमारे प्रेम की वजह से यह अल्पसंख्यकों की संख्या 2 करोड़ से 20 करोड़ हो गई है, जबकि हमारे हिन्दू भाइयों की संख्या पाकिस्तान में 2 करोड़ से घटकर 2 लाख रह गई है। ये मुस्लिम शुरुआत में आपके पैर पकड़ने आएँगे। फिर आपसे हाथ जोड़ेगे और विनती करेंगे, लेकिन जब यही 1 से 10 हो जाते हैं तो आप इनकी गली में घुस भी नहीं सकते हैं। मैं आप सभी का धन्यवाद करता हूँ। यहाँ मौजूद सभी लोग बधाई के पात्र हैं।”

इसी वीडियो में गजराज सिंह ने आगे कहा, ”ये केवल एक जमीन बिकने का मामला नहीं है। 13 रजिस्ट्रियों का मामला नहीं है। ये हमारी आस्था और पहाड़ को बचाने का मामला है। उत्तराखंड में कई जगहों से लोग आए हैं। उन्होंने 700 सालों तक मुस्लिमों की गुलामी तो सही, लेकिन उनके मजहब को कभी स्वीकार नहीं किया।”

गजराज सिंह अपने विश्लेषण में शायद गलत भी नहीं है, क्योंकि बात केवल नैनीताल तक सीमित नहीं है। ‘लैंड जिहाद’ की समस्या ने पूरे उत्तराखंड को घेर लिया है, और पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने तुष्टीकरण के नाम पर कट्टरपंथी मुसलमानों को पनपने की पूरी स्वतंत्रता दी है, जो दीमक की भांति पूरे उत्तराखंड को अंदर से खोखला कर रहे हैं।

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TFI ने की थी भविष्यवाणी

उत्तराखंड में लैंड जिहाद या जनसांख्यिकी परिवर्तन की यह समस्या आज की नहीं है, और इस ओर TFI ने पिछले 3 वर्षों से निरंतर दर्शकों का ध्यान आकर्षित कराने का प्रयास किया है। अक्टूबर 2018 में ही हमने इस बात पर प्रकाश डाला था कि कैसे कश्मीर घाटी और कैराना की भांति देवभूमि में भी जनसांख्यिकी परिवर्तन का नाग अपने फन फैलाने लगा है, जिसके कारण 1994 से कई लोग धनपुरा ग्राम छोड़ने को विवश हो चुके हैं। जब गजराज सिंह बिष्ट ने ‘पैर पकड़ने’ वाला प्रसंग उठाया था, तो कहीं न कहीं उनका संकेत इसी ओर था।

तो क्या भाजपा सरकार सो रही थी? ऐसा पूरी तरह हम नहीं कह सकते, क्योंकि अपनी ओर से उन्होंने कुछ सार्थक प्रयास तो अवश्य किए थे। उदाहरण के लिए एक निर्णायक निर्णय में उत्तराखंड सरकार ने चारधाम श्राइन बोर्ड के प्रशासन में इस बात को सुनिश्चित किया है कि किसी भी स्थिति में एक मुस्लिम इस बोर्ड का अध्यक्ष नहीं बनेगा। यदि राज्य का मुख्यमंत्री मुस्लिम होता भी है तो भी किसी हिन्दू कैबिनेट मंत्री को ही चारधाम श्राइन बोर्ड की कमान सौंपी जाएगी, जिसके बारे में हमने 2019 के अपने रिपोर्ट में कवर भी किया था

परंतु ये प्रयास कहीं न कहीं पर्याप्त नहीं थे, क्योंकि जनसांख्यिकी परिवर्तन की समस्या ने अपना वीभत्स रूप उत्तराखंड में दिखाना प्रारंभ कर दिया। अप्रैल 2021 में रुड़की में एक लड़की निधि पासवान के घर में घुसकर तीन कट्टरपंथी मुसलमानों ने उसकी गला रेतकर हत्या कर दी, क्योंकि वह एक मुस्लिम से विवाह करने को तैयार नहीं थी।

इसी विषय पर TFI ने अपने विश्लेषणतामक लेख में बताया था, “लेकिन ये तो मात्र शुरुआत है, क्योंकि उत्तराखंड में जनसंख्या में भी अप्रत्याशित बदलाव आ रहा है। जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, जब 2001 में उत्तराखंड नया नया अस्तित्व में आया था, तब राज्य में मुसलमानों की संख्या कुल जनसंख्या की 10 प्रतिशत से कुछ अधिक थी लेकिन 2011 की जनगणना में तो तस्वीर कुछ और ही निकलकर सामने आई। जनगणना के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में मुस्लिम समुदाय की आबादी कुल जनसंख्या की 13.9 प्रतिशत हो गई है। हालांकि, अभी जनगणना के स्तर से आधिकारिक आंकड़े जारी नहीं हुए हैं पर जो तस्वीर उभर कर सामने आई है वह विशेषज्ञों को सोचने पर मजबूर कर रही है।

डेमोग्राफी में बड़े स्तर पर बदलाव 

अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, “उत्तराखंड के जनगणना आंकड़ों पर नजर डाले तो तस्वीर का दूसरा पक्ष भी खुलकर सामने आ रहा है। उधमसिंहनगर में दशकीय वृद्धि दर 33.40 प्रतिशत है। देहरादून के लिए यह दर 32.48 और हरिद्वार में 33.16 प्रतिशत है। यह तब है जबकि प्रदेश की औसत दशकीय वृद्धि दर कुल 17 प्रतिशत है। 2001 की जनगणना के मुताबिक प्रदेश में सबसे अधिक मुसलमा/न हरिद्वार में थे। यहां 4.78 लाख मुस्लिम समुदाय के लोग थे। इसके बाद उधमसिंहनगर का नंबर है। यह इस समुदाय की जनसंख्या करीब 2.55 लाख थी पर दशकीय वृद्धि दर उधमसिंहनगर की सबसे अधिक है।”

लैंड जिहाद देवभूमि उत्तराखंड को भी महर्षि कश्यप के कश्मीर की भांति निगलने को तैयार बैठा है। स्थिति कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि अब सरकारी भूमि तक पर बेधड़क कब्जा होने लगा है।

टिहरी बांध के पास आवंटित सरकारी ज़मीन पर 2000 के दशक के प्रारंभ में एक अवैध मस्जिद का निर्माण हुआ, जो बांध के बिल्कुल करीब है, और तभी से हिन्दू संगठनों ने इसे वहाँ से हटाने का कई बार प्रयास किया, लेकिन इस बार यह प्रयास युद्धस्तर पर किया जा रहा है। सोशल पर दिव्य कुमार सोती और गोपाल गोस्वामी समेत कई दक्षिणपंथी यूजर्स ने इसके विरोध में आवाज उठाई है। स्वयं पत्रकार अभिजीत मजूमदार ने इस विषय पर सीएम पुष्कर धामी से एक्शन लेने की मांग की है।

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लेकिन जिस प्रकार से सत्ताधारी पार्टी, सरकार एवं स्थानीय जनता एकजुट हो रहे हैं, वो अपने आप में एक सकारात्मक संकेत है – अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। जब जब देवभूमि पर संकट आया है, तब तब स्थानीय एकता के कारण देवभूमि उत्तराखंड की भी रक्षा हुई है और भारत के आत्मसम्मान की भी, और आज फिर से एक ऐसा ही अवसर आया है।

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