चीन की साम्राज्यवादी इच्छाओं का अंत नहीं हो रहा है। वह लगातार अपने पड़ोसी देशों के साथ बॉर्डर तथा South China Sea में विस्तारवादी नीति से अपनी मनमानी कर रहा है। इससे पूरे Indo-Pacific क्षेत्र में तनाव की स्थिति रहती है। मलेशिया, मालदीव, इंडोनेशिया और फिलीपींस, सभी देश चीन के बढ़ते कदम से परेशान हैं। ऐसे में ऑस्ट्रेलिया के लिए अपनी सीमा सुरक्षित रखना प्रमुख लक्ष्य है। ऑस्ट्रेलिया चीन जैसे संभावित चुनौतियों से निपटने के लिए अब बड़ी रणनीति तैयार कर रहा है। अब उसी के मद्देनजर QUAD के सदस्य भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच नई दिल्ली में बैठक भी हुई थी। अब ऑस्ट्रेलिया ने एक कदम और बढ़ाते हुए Indo-Pacific क्षेत्र में चीन से निपटने के लिए फ्रांस के युद्धपोतों सैन्य बेस देने ती बात कही है।।
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दोनों देशों द्वारा चर्चा किए गए प्रस्ताव के तहत फ्रांसीसी युद्धपोतों और सैनिकों को ऑस्ट्रेलिया के नौसैनिक ठिकानों और सैन्य बेस के इस्तेमाल की इजाज़त दी जाएगी। ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस के पास वर्तमान में एक स्टेटस ऑफ फोर्सेज एग्रीमेंट है, जो यह निर्धारित करता है कि प्रत्येक देश की सेनाओं को एक साथ कैसे काम करना चाहिए लेकिन दोनों देश एक-दूसरे की सेनाओं को अधिक से अधिक पहुंच प्रदान करने के लिए विकल्प तलाश रहे हैं।
फ्रांस पैसिफिक क्षेत्र में सक्रिय रहा है। फ्रांस इस क्षेत्र में दशकों से न्यू कैलेडोनिया और फ्रेंच पोलिनेशिया जैसे अपने द्वीप क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और बढ़ते चीनी समस्याओं के चलते वह मुखरता से इंडो पैसिफिक में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है। इस समझौते के बाद फ्रांस अमेरिका के बाद दूसरा राष्ट्र हो जाएगा जो ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर सैन्य शक्ति बढ़ाएगा। खबर तो यह भी है कि फ्रांसीसी लड़ाकू विमान अगले साल रॉयल ऑस्ट्रेलियाई वायु सेना के “पिच ब्लैक” अभ्यास में भाग लेंगे, जबकि फ्रांस 2023 में पहली बार अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वींसलैंड तट पर आयोजित होने वाले Talisman Sabre नौसैनिक अभ्यास में शामिल होगा।
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बता दें कि इस समय भारत, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया के बीच द्विपक्षीय संबंध नए शिखर पर हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, स्कॉट मॉरिसन और इमैनुएल मैक्रॉन इन सम्बन्धों को लंबे वक्त तक प्रभावी रूप से चलाने के लिए उत्सुक भी दिख रहे हैं। इन देशों ने कोरोना महामारी के दौरान भी एक दूसरे की मदद की थी। ऑस्ट्रेलिया फ्रांस के नए सम्बन्धों पर कैनबरा में फ्रांसीसी दूतावास के प्रवक्ता ने कहा कि यह (इंडो पैसिफिक) क्षेत्र “बड़ा रणनीतिक परिवर्तन” देख रहा था और अब फ्रांस “एक इंडो-पैसिफिक देश के रूप में इस क्षेत्र में बदलाव चाहता है और ऐसे क्षेत्र का निर्माण करना चाहता है, जो खुला हो, समावेशी हो, सभी प्रकार के दबाव से मुक्त हो। जहां बहुपक्षवाद और अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान किया जायें”।
फ्रांस इस क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभाना चाहता है और इसी के लिए मार्च में वह QUAD राष्ट्रों के साथ नेवल अभ्यास में भाग लेने के लिए भारत आया था। फ्रांस ने उस समय 2 बड़े जहाज जिसमें एक युद्धपोत और एक हेलीकॉप्टर केरियर शामिल था, उनको भारत भेजा था। इससे पहले अप्रैल में भी फ्रेंच नेवी और रॉयल ऑस्ट्रेलियन नेवी ने दक्षिणी चीन सागर में साथ में मिलकर पेट्रोलिंग की थी।
चीन दक्षिणी चीन सागर में जिस प्रकार की मनमानी करना चाहता है, वह अपने आप में एक वैश्विक चुनौती है। संयुक्त राष्ट्र के फैसले के बाद भी फिलीपींस, वियतनाम, ताइवान, मलेशिया औऱ इंडोनेशिया के अधिकारों को ताक पर रखकर काम करना उसके लिए घातक साबित होगा और अब दुनिया चीन के विरुद्ध घेराबंदी कर रही है।