आयुष्मान भारत: स्वास्थ्य और रोजगार दोनों को बढ़ावा दे रही है PM मोदी की महत्वाकांक्षी योजना

क्या आपके भी शहर में है प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र?

जन औषधि केंद्र

भारत में एक कड़वा सच यह है कि खतरनाक और गम्भीर बीमारी से ग्रसित हो जाने पर दवाई का खर्च इतना आता है कि कई बार लोग मृत्यु की कामना करने लगते हैं। देश में कुछ निजी अस्पतालों का एक सिंडिकेट चल रहा है जो कुछ लोगों की जेब भरने का काम करता है। इससे और कुछ नहीं होता, बस इतना होता है कि गरीब और मध्यम वर्गीय परिवार इलाज के खर्चों से तंग होते हैं। ये समस्या भारत में लंबे वक्त से चली आ रही है। आज जहाँ विश्व के विकसित देशों में इलाज मुफ्त होता है, सस्ता होता है और सबको स्वास्थ्य सुरक्षा प्राप्त है तब भारत में इलाज की कीमत आसमां छू रही है। सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस समस्या को समझा, आवश्यक विभागों से विचार विमर्श किया और फिर देश मे स्वास्थ्य सौगात के रूप में आयुष्मान भारत और जन औषधि केंद्र जैसी योजनाएं लेकर आएं। आयुष्मान भारत से गरीबों को बड़े पैमाने पर लाभ मिला। इलाज के खर्चे कम हुए, दवाइयां कम कीमत पर मिलने लगीं। आज उसी आयुष्मान भारत योजना के तीन वर्ष पूर्ण हो गए है और ना सिर्फ यह योजना सफल रहा है, बल्कि इससे लोगों को रोजगार के अवसर भी मिल रहे हैं।

आयुष्मान भारत पूरे भारत में किसी भी सरकारी या यहां तक ​​कि निजी अस्पतालों में प्रति परिवार प्रति वर्ष 5 लाख रुपये तक का मुफ्त कवरेज प्रदान करती है। यह योजना अब तक 74 करोड़ लाभार्थी परिवारों और लगभग 50 करोड़ भारतीय नागरिकों को सुविधा प्रदान कर चुकी है। इस योजना के तहत ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) के आंकड़ों के आधार पर 80 प्रतिशत लाभार्थियों की पहचान की गई है। आयुष्मान भारत योजना के पहले दिन से ही सभी तरह की बीमारियों को कवर किया जाता है। बेनिफिट कवर में अस्पताल में भर्ती होने से पहले और बाद के खर्च दोनों शामिल होते हैं।

अस्पतालों को किये जाने वाले भुगतान में होने वाले खर्च को केंद्र और राज्य सरकारों के बीच एक अनुपात में साझा किया जाता है। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ( अपनी विधायिका के साथ) के लिए 60:40, पूर्वोत्तर राज्यों में 90:10 और जम्मू और कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड के तीन हिमालयी राज्यों और विधायिका के बिना केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 100% केंद्रीय वित्त पोषण का प्रावधान है। इस योजना के तहत कई अन्य योजना बनाए गए हैं। आयुष्मान भारत एक तरीके से अम्ब्रेला योजना है जिसके अंदर वेलनेस सेंटर, इलाज, नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन मिशन (NHPS) और जन औषधि केंद्र शामिल है।

वेलनेस सेंटर: देश के 1.5 लाख उप-केंद्र जो वेलनेस सेंटर में परिवर्तित हो गए हैं, वे हृदय रोगों का पता लगाने और उपचार, सामान्य कैंसर की जांच, मानसिक स्वास्थ्य, बुजुर्गों की देखभाल, आंखों की देखभाल आदि जैसी अधिकांश सेवाओं को पूरा करेंगे। यह केंद्र कल्याण केंद्र के रूप में भी काम करेंगे। मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और चयनित संचारी रोगों के खिलाफ टीकाकरण सहित सेवाओं को भी प्रदान करेंगे।

NHPS देश को सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज और स्वास्थ्य सेवा तक समान पहुंच की ओर बढ़ने में मदद कर सकता है जो संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों में तीसरा लक्ष्य है।

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भारत में जहां एक ओर अस्पताल के खर्चे महंगे हैं तो दूसरी ओर दवाइयों का भी यही हाल है। कमीशन के लालच में डॉक्टर अपने खास कम्पनियों के दवाइयों को लिख देते है। हर दवाई का एक साल्ट फार्मूला होता है। जैसे पैरासिटामोल एक साल्ट है, उसे कॉम्बिफ्लेम जैसी दवाइयां इस्तेमाल करती है। अब निजी कंपनियों का क्या है कि वह साल्ट लेवल आगे पीछे करके दवाइयों का नाम बदल देती है और फर डॉक्टर के पास एक आफर लेकर पहुंच जाते है। वो दवाई बताने पर उन्हें पैसा मिलता है और वैसे भी देश के अधिकतर निजी अस्पताल में खुद का मेडिकल स्टोर भी होता है तो आप मजबूरी में वो दवाइयां खरीदते हैं।

इस नेक्सस को तोड़ने के लिए सरकार ने जन औषधि केंद्र को शुरू किया जहां जेनेरिक दवाइयां उपलब्ध कराई गई। जेनेरिक दवाइयां सिर्फ साल्ट फार्मूला होता है और उसकी कीमत ब्रांडेड साल्ट फार्मूला से कम होती है। जैसे उदाहरण के लिए कैंसर जैसे रोग की ब्रांडेड दवाइयां 5 हजार रुपए तक हैं लेकिन जेनेरिक साल्ट मात्र 800 रुपये का है।

जन औषधि केंद्र रोजगार के अवसर भी प्रदान करता है। अगर आप अगर ऐसा केंद्र खोलते हैं तो आपको सरकार की ओर से ढाई लाख रुपए की मदद मिलेगी। देश में बहुत से जन औषधि केंद्र खुल रहे है। हालांकि अभी भी इसमें एक समस्या है। डॉक्टर जानबूझकर जेनेरिक दवाइयों को नहीं लिखते हैं जिसके वजह से बहुत से जन औषधि केंद्र बंद होने पर मजबूर है।

स्वास्थ्य सम्बंधित योजनाएं राज्य सूची की वस्तु है जिसे लंबे समय से समवर्ती सूची में डालने की बात कही जाती है। 15वें पंचवर्षीय योजना के अध्यक्ष NK सिंह ने इसकी कवायद शुरू की है। देश में तमाम बार दिल्ली और केरल अस्पताल मॉडल की चर्चा होती है लेकिन आयुष्मान भारत जैसी बुनियादी सुविधाओं की बात कम होती है। सरकार के पास मौजूद आंकड़ों के मुताबिक आयुष्मान भारत योजना योजना के तहत 65 करोड़ से अधिक लाभार्थी हैं, लेकिन अभी तक महज 16 करोड़ लाभार्थियों का ही आयुष्मान कार्ड बन पाया है। इस योजना की तीसरी वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित ‘आरोग्य मंथन 3.0’ के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए मंडाविया ने कहा, ‘आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री’ जन आरोग्य योजना ने पूरे देश की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को बदल दिया. मुझे इस बात की खुशी है कि इस योजना से पिछले तीन साल में 2.2 करोड़ से अधिक लोग लाभान्वित हुए जिनमें दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी शामिल हैं।”

जितजे बड़ी संख्या को लाभ पहुँचाने वाली इस योजना के तीन वर्ष हो गए है। जरूरी है कि ऐसे जन हितकारी योजनाओं की प्रशंसा हो ताकि के केंद्र सरकार ऐसी अन्य योजनाएं लाने के लिए प्रोत्साहित हो।

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