झारखंड सरकार द्वारा विधानसभा परिसर में नमाज कक्ष आवंटित किये जाने को लेकर चल रहा राजनीतिक घमासान अब थमता दिखाई दे रहा है। अब झारखंड विधानसभा परिसर के भीतर नमाज के लिए अलग कक्ष के आवंटन के विरोध के बाद स्पीकर रवींद्रनाथ महतो ने 7 सदस्यीय कमेटी गठित करने पर अपनी सहमति दे दी है। इसका अर्थ ये है कि फ़िलहाल के लिए झारखंड में विधानसभा परिसर में नमाज कक्ष का निर्णय टल गया है और हो सकता है इसे आगे भी मंजूरी न मिले।
दरअसल, झारखंड सरकार के निर्णय को लेकर भाजपा जिस तरह से देशभर में विरोध कर रही थी उसे देखते हुए स्पीकर से एक कमेटी बनाने की मांग की थी. इसी के आधार पर स्पीकर रवींद्रनाथ महतो ने 7 सदस्यीय कमेटी बनाने पर सहमति दी है. अब नमाज़ के लिए विशेष रूप से कमरा आवंटित होगा या नहीं उसका निर्णय सात सदस्यीय पैनल करेगा। पैनल को अपनी रिपोर्ट 45 दिनों की समय सीमा तय करते हुए जल्द से जल्द पेश करने को कहा गया है।
बता दें कि 2 सितंबर को एक अधिसूचना जारी हुई थी जिसमें झारखंड विधानसभा के स्पीकर के आदेश पर विधानसभा में नमाज पढ़ने के लिए एक कक्ष आवंटित किया गया था। आदेश में कहा गया था कि, विधानसभा भवन में नमाज पढ़ने के लिए नमाज हॉल के रूप में कमरा नंबर TW 348 का आवंटन किया जाता है। नमाज़ के लिए अलग कक्ष के आवंटन के विरोध में बीजेपी ने सत्ताधारी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के विरुद्ध देश भर में विभिन्न स्तरों पर अपना विरोध जताया।
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इस पैनल के गठन के निर्णय को लेकर भी जेएमएम ने एक अलग ही दांव खेला ताकि यह लगे कि 7 सदस्यीय पैनल के गठन का प्रस्ताव मुस्लिम समुदाय की ओर से ही रखा गया है। स्पीकर के निर्णय से पूर्व गांडेय से JMM विधायक डॉ सरफराज अहमद ने राज्य में धार्मिक सौहार्द बना रहे है, इसको लेकर स्पीकर से एक कमेटी बनाने की मांग की थी, जिसके पश्चात हुआ भी वही और स्पीकर महतो ने एक सर्वदलीय पैनल के गठन को स्वीकृति देते हुए अपनी ओर से औपचारिकता पूरी कर ली।
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ज्ञात हो कि, सोरेन सरकार के इस निर्णय को लेकर जिस प्रकार के विरोध और आपत्तियां देखने को मिली, उससे सोरेन सरकार के पैरों तले ज़मीन खिसक गई थी। अब जिस प्रकार मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सर्वदलीय पैनल गठित करवाते हुए अपने पूर्व में लिए फैसले से पल्ला झाड़ने का प्रयास किया है वो सबको स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा और जनता भी अब सोरेन सरकार के दोहरे मानदंड समझने लगी है।
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इस पूरे घटनाक्रम में निश्चित रूप से यह बीजपी और विशेषकर झारखंड भाजपा के लिए उसकी जीत से काम नहीं हैं क्योंकि फ़िलहाल के लिए सोरेन सरकार अपना पक्षपाती निर्णय नहीं थोप सकी है, बल्कि एक सर्वदलीय समिति को निर्णय लेने के लिए बाध्य कर दिया।