डिजिटल क्रांति को विस्तार देने में भारत में मोदी सरकार विराट स्तर पर काम कर रही है, भारतीयों की डिजिटल सक्रियता के चलते ही देश में विदेशी कंपनियां लगातार निवेश कर रही है। ब्रिटेन से लेकर अमेरिका, चिली, जापान तक की कंपनियां डिजिटल माध्यम से अपने विस्तार के लिए भारत आना पसंद करती है, क्योंकि भारत में उन्हें अन्य देशों की अपेक्षा अधिक सहूलियतें मिलती है। ऐसे में निवेश की इन प्रक्रियाओं से न केवल इन विदेशी कंपनियों को लाभ होता है, अपितु इससे तकनीक के क्षेत्र में विस्तार होने से भारत में अर्थव्यवस्था में भी उछाल आयेगा। डिजिटल कंपनियां यहां प्रतिभाशाली कामगारों के साथ ही व्यापार करने में भी विशेष सहूलियत मिलती है।
सर्वविदित है कि भारत ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले में दिन प्रतिदिन नए एवं सहज स्थापित कर रहा है। इसी का परिणाम ब्रिटेन, अमेरिका, जापान और चिली जैसे देशों की Rakuten, Falabella, Lululemon, और Delta Airlines की कंपनियां भी हैं। वैश्विक महामारी के बाद देश ग्लोबल कपैसिटी केन्द्र बनता जा रहा है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक ये चार कंपनियां उन 1300 के करीब कंपनियों का एक उदाहरण हैं, जो कि भारत में अपने व्यापार को विस्तार दे रही हैं। इस मामले में बेंगलुरु स्थित एक बिजनेस इंटेलिजेंस कंपनी अपनी रिसर्च में बताती है कि 2021-22 में तकनीक के क्षेत्र और आईटी सेक्टर में करीब एक मिलियन से ज्यादा लोगों की भर्तियां हो सकती हैं, क्योंकि डिजिटल क्षेत्र की कंपनियां लगातार अपने कार्यक्षेत्र में विस्तार कर रही हैं।
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GCC क्या है अगर इसे समझे तो… एक आम आदमी के लिए, GCC एक बड़ी सुविधाओं का समूह है जो कि श्रमिकों और बुनियादी ढांचे को केंद्रित करती है, जो बैंक-ऑफिस कार्यों, कॉर्पोरेट व्यवसाय-समर्थन कार्यों और आईटी समर्थन जैसे कार्यों को संभालती हैं। उत्पादकता वृद्धि को बनाए रखने के लिए ऐप विकास, रखरखाव, आईटी अवसंरचना का दूरस्थ रूप से प्रबंधन और हेल्प डेस्क संबंधित कार्यों पर केन्द्रित रहती है।
कुछ बड़ी कंपनियां अन्य कार्यों के साथ-साथ स्वचालन, नवाचार और विश्लेषण के लिए उत्कृष्टता केंद्र के रूप में GCC का उपयोग करती हैं। संक्षेप में कहा जाए तो, GCC बड़ी कंपनियों के लघु मॉडल हैं जो अक्सर अद्वितीय समाधान प्रदान करते हैं, जबकि सभी ढांचे के भीतर काम करते हैं और कंपनी के संसाधनों का उपयोग करते हैं। इसमें तीसरे पक्ष का कोई हस्तक्षेप नहीं है, जिसका मतलब है कि प्रस्तुत उत्पाद उच्चतम गुणवत्ता का है।
नैसकॉम (NASSCOM) ने इस मामले में अनुमान लगाया है कि कैसे 2020-21 तक 33 अरब डॉलर का GCC राजस्व करीब 80 अरब डॉलर का हो जाएगा। ये आर्थिक रूप से भारत के लिए एक सकारात्मक पहलू है। एक महत्वपूर्ण तथ्य ये भी है कि भारत में इंजीनियरों की उपलब्धता आसान होती है। कंपनियों को अपने व्यापार के लिए कुशल इंजीनियरों की भर्ती के लिए परेशानियां नहीं आती है। इसके अलावा भारत ई-कॉमर्स का बड़ा हब है जिसके चलते कंपनियों को सहजता होती है। इसके इतर साइबर सुरक्षा से लेकर देश में सप्लाई चेन के मुद्दे पर भारत अन्य देशों की अपेक्षा अधिक सहज रहता है। वहीं, स्किल के मामले में भी इन कंपनियों को भारत में परेशानियां न के बराबर होती हैं। नतीजा ये कि ये सभी भारत में आसानी से व्यापार करने में सफल होती हैं।
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बेंगलुरु स्थित GCC करने वाली कंपनी NSSR के प्रमुख ललित अहूजा का कहना कि हमारी कंपनी पिछले 16 वर्षों में पहली बार इतने बड़े स्तर GCC कर रही है। NSSR ने जिन केंद्रों को स्थापित करने में मदद की, उनमें सैक्स फिफ्थ एवेन्यू, वेल्स फारगो, टारगेट, लोव और हाल ही में डेल्टा, लुलुलेमोन, 7-इलेवन और जाइंट ईगल शामिल हैं। ये कंपनी तुर्की, पोलैंड, यूक्रेन, फिलीपींस की हैं, जो कि भारत में अपने व्यापार को स्थापित कर रही हैं। NSSR ने कहा कि इससे पहले उसने सन् 2005 में 80 के करीब कंपनियों के साथ काम किया है।
NSSR के इंडस्ट्री इनिशिएटिव के उपाध्यक्ष के एस.विश्वनाथ ने बताया कि GCC की पहली लहर साल 1990 में देखी गई थी, तो दूसरी लहर 2005 में वहीं, तीसरी लहर अपने आप में अभूतपूर्व है। विश्वनाथ ने कहा, यद्यपि कीमत का कम होना एक बड़ा तथ्य है, किन्तु एक यथार्थ सत्य ये भी है कि कंपनियां स्किल से समझौता नहीं करती हैं, भारत में कंपनियों को बड़ी संख्या में कुशल कामगार मिल रहे हैं। एक खास बात ये भी है कि किसी डीलर की अपेक्षा सीधे GCC की प्राप्ति करने से कीमत में 15 प्रतिशत की अधिक कटौती हो जाती है, जो कि इन डिजिटल कंपनियों के लिए फायदे का सौदा बनती है।
अमेरिकी खुदरा कंपनियों ने 2005 में बेंगलुरु में अपनी GCC खोली, जिसमें प्रौद्योगिकी, मार्केटिंग, एचआर, फाइनेंस, Merchandising (मर्चेंडाइजिंग), सप्लाई चेन और एनालिटिक्स में 3,400 कार्यरत हैं। कंपनी का कहना है कि वो अपनी भर्तियों में पहले से अधिक बढ़ोतरी करने वाली है। इसके पीछे की एक वजह ये भी कि भारत में लगातार बढ़ता स्टार्ट-अप कल्चर इसे यूनीकॉर्न का हब बना रहा है। खबरों के मुताबिक मात्र इन स्टार्ट अप्स ने जुलाई 2021 में ही करीब 10 बिलियन डॉलर का धन जुटाया है, जो कि साल 2020 में जुटाए गए धन से भी अधिक है। 44 हजार के करीब कंपनियों के साथ करीब 44 यूनिकॉर्न भारत के स्टार्टअप सिस्टम की ताकत को दर्शाता है।
इस मामले में ये विश्वनाथन ने ये भी बताया है कि भारत में डिमांड एवं सप्लाई के बीच मात्र तीस प्रतिशत तक का अंतर रहता है, जो कि अन्य देशों के मुकाबले बेहद कम है। वहीं हायरिंग के मामले में संकेत है कि 2021-22 की तीसरी तिमाही में जितनी बंपर भर्ती देखी गई है, उतनी भर्ती पिछले सात सालों की तिमाही में कभी नहीं देखी गई है। जो कि आईटी सेक्टर में रोजगार की दृष्टि से बेहद सकारात्मक है।
संभावनाएं हैं कि सर्विस सेक्टर में 50 प्रतिशत विनिर्माण में 23 प्रतिशत वित्त बीमा एवं रियल स्टेट में 42 प्रतिशत की अधिक मजबूती की उम्मीद है। आने वाले कारोबार, रोजगार के अवसरों में वृद्धि और शेयर बाजार में तेजी से उत्साहित विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने सितंबर के पहले 10 दिनों के भीतर भारतीय बाजारों में 7,605 करोड़ रुपये की शुद्ध राशि का निवेश किया है। जहां 4,385 करोड़ रुपये इक्विटी में डाले गए, बाकी 3,220 करोड़ रुपये 1-9 सितंबर के दौरान डेट सेगमेंट में डाले गए।
जबकि GCC शुरू में अपने वैश्विक संगठनों को मूल्य प्रदान करने के इरादे से स्थापित किए गए थे, वास्तव में, वे भारत की प्रगति में एक मजबूत योगदानकर्ता के रूप में उभरे हैं। संपन्न तकनीकी क्षेत्र देश के विकास की कहानी में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।