उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर हर पार्टी तैयारियां कर रही है। तुष्टिकरण की राजनीति हो या जातिवाद का कार्ड, टेम्पल रन हो या आरोप-प्रत्यारोप, कोई भी पार्टी एक भी अवसर अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती। इसी बीच कांग्रेस ने जो यू-टर्न लिया है वो दिलचस्प है। हिंदुओं को लुभाने का दांव असफल होते देख इस पार्टी ने अब खुलकर अल्पसंख्यकों को लुभाने का दांव चला है। कांग्रेस की आज ऐसी स्थिति नहीं होती यदि उसे अपने पुराने मतदाता आधार ब्राह्मणों का साथ होता, परन्तु अब ये उसके हाथ से छिटक चुका है, कैसे ? इसपर हम विस्तार में चर्चा करेंगे।
कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यकों के बीच अपना खोया हुआ जनाधार मजबूत करने के लिए शुक्रवार से एक अभियान की शुरुआत की है। इस अभियान के तहत शहर की तमाम मस्जिदों पर संकल्प पत्र बांटे गए हैं और आने वाले चार शुक्रवार तक 8432 मस्जिदों के बाहर ज़ुमे की नमाज़ के बाद संकल्प पत्र बांटने की योजना है। इस अभियान का मुख्य लक्ष्य राज्य के 25 लाख लोगों तक संकल्प पत्र पहुंचाने का है।
अल्पसंख्यक कांग्रेस के चेयरमैन अनीश अख्तर ने इस अभियान की शुरुआत की और कहा, ‘इस अभियान के लिए हमारे लक्ष्य के तहत 16 सूत्रीय संकल्प पत्र बनाया गया है, जिसको डोर टू डोर और मस्जिदों में जाकर लोगों तक पहुंचाया जाएगा’। उन्होंने आगे कहा कि ‘जानकारी के अभाव में कई गलत सन्देश लोगों तक पहुंचे हैं जिससे अल्पसंख्यक समाज हमसे थोड़ा दूर हो गया, लेकिन अब जो जातिगत और धर्म की राजनीति चल रही है, जो नफरत के बीज पैदा किए गए हैं उनको खत्म करने का काम हम करेंगे’।
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कांग्रेस के इस कदम से स्पष्ट है कि पार्टी अब समझ गयी है कि उसकी नर्म हिंदुत्व की छवि उसके किसी काम नहीं आने वाली, इसलिए उसने जल्द ही अपनी पुरानी रणनीति पर चलना शुरू कर दिया। अब ये रणनीति कितनी कारगर होती है वो तो आने वाला वक्त बताएगा। हालांकि, आपको ये जानकर हैरानी होगी कि उत्तर प्रदेश में कभी कांग्रेस का वोटर बेस ब्राह्मण समुदाय हुआ करता था जो अब उसके साथ नहीं है।
उत्तर प्रदेश के चुनावी इतिहास को देखें तो यहां 20 मुख्यमंत्रियों में से सर्वाधिक 6 मुख्यमंत्री ब्राह्मण जाति से ही बने और ये सभी कांग्रेस पार्टी से ही थे। इसका अर्थ ये है कि उत्तर प्रदेश में 23 वर्ष तक ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों ने राज किया है। उस समय ब्राह्मणों का दबदबा अत्यधिक था लेकिन मंडल राजनीति ने प्रदेश की राजनीति से ब्राह्मणों के वर्चस्व को धीरे-धीरे खत्म कर दिया और सपा और बसपा के अलावा राज्य में अन्य विकल्प खत्म होने लगे। उस समय कांग्रेस पार्टी को ब्राह्मणवादी पार्टी भी कहा जाता था परन्तु इस पार्टी ने भी ब्राह्मणों से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया।
एक समय था जब रीता बहुगुणा जोशी, प्रमोद तिवारी जैसे बड़े नाम कांग्रेस पार्टी के लिए महत्वपूर्ण हुआ करते थे परन्तु कांग्रेस की बदलती रणनीतियों के कारण ब्राह्मण जाति की उपेक्षा की राजनीति और बड़ी होती गयी। भाजपा ने ब्राह्मणों की उपेक्षा को बड़ा मुद्दा बनाया और इसके परिणाम भी दिखे, जिसके बाद भाजपा को बड़ी जीत मिली। इसके बाद तो एक-एक करके रीता बहुगुणा जोशी, जितिन प्रसाद और दिवंगत एनडी तिवारी सहित कई प्रभावशाली ब्राह्मण नेताओं ने यह कहते हुए कांग्रेस पार्टी छोड़ दी कि उनके प्रमुख समर्थकों की उपेक्षा की जा रही है। जितिन प्रसाद को भाजपा में आने का फायदा हुआ और अब वो यूपी के कैबिनेट का हिस्सा हैं।
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हाल ही में कांग्रेस को तब एक और झटका लगा जब कांग्रेस के बड़े नेता और मड़िहान के पूर्व विधायक ललितेशपति त्रिपाठी ने अपना इस्तीफा दे दिया। त्रिपाठी परिवार कांग्रेस से 100 वर्षों से जुड़ा था और त्रिपाठी परिवार की चौथी पीढ़ी की बागडोर ललितेशपति त्रिपाठी ही संभाल रहे थे। ललितेशपति त्रिपाठी ने अपने बयान में कहा था कि, “जब मुश्किल समय में पार्टी के साथ खड़े रहने वाले समर्पित पार्टी कार्यकर्ताओं को दरकिनार किया जा रहा है, तो पार्टी में बने रहना बिल्कुल भी उचित नहीं है।”
इससे स्पष्ट है कांग्रेस अपने ब्राह्मण बेस के साथ अपने कई महत्वपूर्ण ब्राह्मण नेताओं से भी हाथ धो बैठी है वो भी तब जब प्रदेश में ब्राहमणों को लेकर राजनीति ने बीते वर्ष से ही यू टर्न लिया है। अब तो सपा-बसपा सभी क्षेत्रीय दल ब्राह्मणों के शुभचिंतक बन गये हैं।
बता दें कि 12 फीसदी या इससे अधिक ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, महामाया नगर, मथुरा और औरैया जिलों में है। वहीं, मथुरा में 17 फीसदी ब्राह्मण वोटर हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी ब्राह्मण मतदाताओं की औसत उपस्थिति 14 से 15 फीसदी के बीच बैठती है जबकि बनारस में यह आंकड़ा 16 फीसदी तक है। अब इसी से आप समझ सकते हैं कि ब्राह्मण जाति उत्तर प्रदेश में कितनी महत्वपूर्ण है। भाजपा को दलितों और यादवों का भी समर्थन प्राप्त है। यही कारण है कि यूपी की राजनीति में ब्राह्मण वोट को अपनी तरफ करने की होड़ लगी है और कांग्रेस इस रेस में कहीं दिखाई देती।
अब अल्पसंख्यकों का साथ कांग्रेस को कितना मिलेगा ये तो आने वाला वक्त बताएगा क्योंकि प्रदेश में अल्पसंख्यकों के वोट के लिए भी कड़ी प्रतिस्पर्धा है। ऐसे में सपा-बसपा और AIMIM जैसी पार्टियाँ कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फेर सकती हैं।