देश की राजनीति को जातिगत रणनीतियों ने इस कदर डरा रखा है कि न राजनीतिक पार्टियां कभी इससे ऊपर उठ पाई हैं और न ही मीडिया कर्मी। आज भी बड़े मीडिया संस्थान दावे तो विकास एवं समानता के करतें हैं, लेकिन इनका विश्लेषण जातिगत समीकरणों पर सीमित होता है। इन मीडिया संस्थानों के इस दोगलेपन का सटीक उदाहरण पंजाब के सीएम एवं डिप्टी सीएम के ऐलान के बाद हुआ है। जहां एक तरफ दलित सिख के समाज को ध्यान में रखकर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है। वहीं, इसके विपरीत रविवार को राज्य में संभावित दो डिप्टी सीएम की जाति एवं धर्मों को भी विशेष बल दिया गया, इसमें एक संभावित नाम अरुणा चौधरी और दूसरा भारत भूषण का सामने आया था। मीडिया संस्थानों का कहना है कि दो डिप्टी में से एक हिंदू तो दूसरा दलित है, अर्थात मुख्यधारा की मीडिया के लिए दलित हिंदू की श्रेणी में नहीं आते।
दलित भारत की एक बड़ी आबादी का हिस्सा माने जाते हैं, जिसके चलते राजनीतिक रूप से ये विशेष महत्व भी रखते हैं। इसके विपरीत इन तीन अक्षरों के दलित शब्द को एक राजनीतिक अखाड़ा बना दिया गया है, जहां कभी मीडिया नौटंकी करता है तो कहीं राजनेता। ताजा उदाहरण की बात करें तो पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी के सीएम बनने के ऐलान के साथ ही ये विश्लेषण चलने लगा कि पंजाब में पहला दलित सीएम के बैठने का ऐलान करके कांग्रेस ने मास्टर स्ट्रोक खेला है जो कि एक सहज स्थिति लगती है, किंतु मुख्य धारा के मीडिया ने हद ही कर दी जब, पंजाब में डिप्टी सीएम के बनने को लेकर खबर प्रकाशित की।
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‘एक डिप्टी सीएम दलित होगा, और एक हिंदू’ ये वाक्य सुनने में ही अजीब लग सकता है क्योंकि ये है ही अजीब… एक दलित भी हिंदू धर्म की ही एक विशेष जाति मात्र है जिन्हें राजनेताओं ने अपने वोट बैंक के लिए एक अलग समुदाय के रूप में ही देखना शुरू कर दिया है। पंजाब में दो डिप्टी सीएम बनाने की मीडिया कवरेज के दौरान भी कुछ ऐसा ही देखा गया। मीडिया संस्थानों ने अपनी रिपोर्ट में एक हिन्दू एवं के दलित मुख्यमंत्री लिखा जो कि आपत्तिजनक है, क्योंकि दलित हिंदू समाज की ही एक जाति है लेकिन जानबूझकर कर इस मुद्दे को बेहूदा एजेंडा बनाया जा रहा है, जो कि अपराधिक भी है।
अजीबो-गरीब बात ये है कि इस दलितों को हिंदुओं से अलग दिखाने की नौटंकी मुख्यधारा की मीडिया संस्थानों ने भी कर दी है, जिसमें Financial Experess से लेकर मीडिया एजेंसी ANI और नवभारत टाइम्स जैसें प्रतिष्ठित संस्थान भी शामिल है, जो कि पत्रकारिता के मानकों को शीर्ष पर ले जाने का दावा करते हैं। असल में इन सभी ने अपनी सोच दर्शाई है, इससे स्पष्ट है कि ये सभी दलितों को हिंदुओं से अलग देखते हैं, जबकि दलित व हिंदू एक ही हैं।
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अग्रणी जातियों के कारण लंबे वक्त तक पिछड़ेपन में जीने वाले दलितों को गैर हिंदू दिखाने की प्लानिंग कोई पहली बार नहीं है, बल्कि ये वामपंथी मीडिया संस्थान समय-समय पर ऐसे प्रयोग करते रहते हैं। पंजाब में दलितों की जमीनी आबादी 32 प्रतिशत से भी ज्यादा है, ऐसे में इन सभी मुद्दों को देखते कांग्रेस दलितों पर दांव खेल रही है। इसके विपरीत दलितों में हिंदुओं के प्रति पूर्वाग्रहों भरकर कुछ मीडिया संस्थान एजेंडा चला रहे हैं जिसका उद्देश्य कांग्रेस को ही फायदा पहुंचाना है।