भारत की जीडीपी में 20.1% का उछाल और इसे वामपंथी अर्थशास्त्री पचा नहीं पा रहे

कोविड -19 महामारी के कारण आई भारी मंदी से उबरते हुए, मंगलवार को वित्तीय साल 2021-22 की पहली तिमाही के लिए 20.1 प्रतिशत की अपनी अबतक की सर्वश्रेष्ठ वृद्धि दर्ज की। जब केंद्र ने कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए एक कड़ा देशव्यापी लॉकडाउन किया था, तब पिछले साल इसी अवधि में 24.4 प्रतिशत का ऐतिहासिक आर्थिक विकास संकुचन हुआ था। हालांकि, अब जो पहली तिमाही में वृद्धि हुई है, वह भारत द्वारा 1996 के बाद से दर्ज की गई उच्चतम वृद्धि है। सकल घरेलू उत्पाद की संख्या में उछाल मुख्य रूप से पिछले साल कमजोर उपभोक्ता आधार और तिमाही के दौरान उपभोक्ता खर्च में एक परिवर्तन के कारण है।

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इसीलिए हम इस तिमाही की जीडीपी की तुलना वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही से कर रहे हैं। यह वह तिमाही थी जब अर्थव्यवस्था में 24.4 प्रतिशत की रिकॉर्ड गिरावट देखी गई थी और सकल घरेलू उत्पाद का आंकड़ा 35.7 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले 26.95 लाख करोड़ रुपये था, जो कि 2019-20 की पहली तिमाही में दर्ज किया गया था। इस तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़े 26.95 लाख रुपये की तुलना में 32.38 लाख करोड़ रुपये है, जो कि सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि 20.1 प्रतिशत है।

यदि आप महामारी के पहले के स्तर को देखते हैं, तो हम अभी भी 3 ट्रिलियन रुपये (41 बिलियन डॉलर) की छोटी अर्थव्यवस्था है। विनिर्माण, कृषि और निर्यात ने हाल ही में देश के लिए अच्छा प्रदर्शन किया है। निर्यात मुख्य रूप से विकास को गति दे रहा है, क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था भी तेजी से ठीक हो रही है। एक बिजनेस रिजम्पशन इंडेक्स के अनुसार, पिछले तीन हफ्तों से व्यावसायिक गतिविधि पूर्व-महामारी के स्तर से ऊपर हो गई है, जो अन्य मेट्रिक्स के बीच गतिशीलता सूचकांकों, बिजली की मांग और श्रम बल की भागीदारी दर को ट्रैक करता है। भारत की टीकाकरण दर में वृद्धि हुई है, देश वर्ष के अंत तक लगभग आधी आबादी को पूरी तरह से टीकाकरण करने के लिए ट्रैक पर है। इससे भी व्यापार को सुचारु रखने में मदद मिली है।

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हालांकि, हालिया नतीजों को देखकर लगता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अब पटरी पर तेज़ी से दौड़ने लगी है, लेकिन लाल सलाम वाले अर्थशास्त्रियों को ये बात हजम नहीं हो रही। वे अब भी जनता को पिछले साल के सकाल घरेलू उत्पाद में 24.4% के संकुचन को ही रेखांकित करने पर आमादा हैं। ऐसे लोग सिर्फ और सिर्फ आंकड़ों से खेलकर लोगों को भ्रम जाल में फंसाना चाहते हैं। इनका उद्देश्य सरकार की बदनामी और जनता में आक्रोश फैलाने से है। इनके लिए जनसंख्या दर, ‘स्केल ऑफ इकॉनमी’, अनुपात और सकारात्मकता से कोई मतलब नहीं है। अर्थव्यवस्था मे संकुचन कोविड के कारण हुआ, जोकि अवश्यंभावी था, परंतु सरकार के प्रयास भी सरहनीय थे, चाहे वो केंद्र की मोदी सरकार हो या राज्य में रोजगार पैदा करने वाली योगी सरकार। अचानक से आई इस महामारी से तो हमारे स्वास्थ्य सेवा की आधारभूत संरचना में खामियों के बारे में पता तो चला, लेकिन सरकार तीव्र गति से देश की विकास के पथ पर आगे लेकर बढ़ी।

महामारी के प्रभाव क्षणिक थे। भारत ने आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाया, जिसने रोजगार, उत्पादन और सेवा क्षेत्र में असीमित संभावनाओं को खोलते हुए आर्थिक स्वावलंबन का मार्ग प्रशस्त किया। 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की गयी। गरीबों को रोजगार के साथ-साथ राशन देने का प्रबंध भी किया गया। कोरोना के कारण मृत्यु तो अवश्यंभावी था, लेकिन चाहे चिकित्सा सुविधा हो या टीकाकरण, सरकार के प्रयास साहसिक थे। भारत का शेयर बाज़ार भी पिछले दिनों दुनिया में सबसे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला बाज़ार रहा है। टाटा का मार्केट कैप भी 14 लाख करोड़ पहुंच गया है। विदेशी निवेश में भी अतुलनीय बढ़ोतरी हुई है। आधारभूत संरचना, विनिर्माण, कृषि, ऑटोमोबाइल, उत्पाद, सरकारी परियोजना कोई सा भी ऐसा क्षेत्र नहीं है, जिसमें आंशिक या अप्रत्याशित बढ़ोतरी न हुई हो। सरकार के प्रयास सकारात्मक और सहयोगपूर्ण हैं। परिणाम आशातीत। अगर वामपंथी अर्थशास्त्रियों में भी इस बात की समझ आ जाए तो जनता भ्रमजाल से बच सकती है।

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