चीन की अर्थव्यवस्था चौपट हुई जा रही है, विदेश नीति के मोर्चे पर वह अलग-थलग पड़ता जा रहा है। चीनी राष्ट्रपति को कोई महत्वपूर्ण देश अपने यहां आमंत्रित नहीं करना चाहता, लगभग 2 साल से वह घर में ही कैद है, आम लोगों में आर्थिक कठिनाइयों के कारण असंतोष बढ़ता जा रहा है, ऐसे में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महा सचिव जिनपिंग के पास चीन की सत्ता पर काबिज रहने का एक ही माध्यम है, और वह है CCP की सेना, पीपल्स लिबरेशन आर्मी। किंतु CCP ने अब PLA के पूर्व सैनिकों को गिरफ्तार करके अपनी सेना में भी अपने विरुद्ध आक्रोश पैदा कर दिया है।
अब तक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी पीएलए के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही खुलकर नहीं करती थी, लेकिन एक ऐसे समय में जब चीन में आंतरिक असंतोष बहुत अधिक बढ़ चुका है, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी यह नहीं चाहती कि उसके विरुद्ध कोई भी प्रदर्शन हो भले ही वह प्रदर्शन चीन के पूर्व सैनिकों द्वारा ही किया जा रहा हो।
CCP ने PLA के पूर्व सैन्यकर्मियों को गिरफ्तार करवाया
हाल ही में CCP के इशारे पर बीजिंग पुलिस ने 137 पूर्व सैन्यकर्मियों को बीजिंग में प्रदर्शन करने के कारण गिरफ्तार कर लिया है। यह सभी पूर्व सैन्यकर्मी अपने पुनर्वास की असुविधा को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।
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पूर्व सैनिकों की मांग है कि उन्हें सेना से निकलने के बाद सरकारी संस्थाओं और सरकार नियंत्रित उद्यमों में नौकरी दी जाए। पूर्व सैन्यकर्मियों के रिसेटलमेंट का मुद्दा 2012 से ही एक चुनौती बना हुआ है। वर्तमान समय में चीन में 57 मिलियन पूर्व सैन्य कर्मी ऐसे हैं, जिन्हें रिसेटेलमेंट कार्यक्रम का लाभ देना पड़ सकता है।
पूर्व सैनिकों और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच बढ़ रहा है टकराव
स्पष्ट रूप से सरकार के लिए इतनी बड़ी संख्या में सरकारी नौकरी बांटना संभव नहीं है। अतः इस मुद्दे को लेकर पूर्व सैनिकों और CCP के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है। 13 सितंबर को देश भर के 200 से अधिक पूर्व सैन्य अधिकारी बीजिंग में सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के सामने धरना देने के लिए आने वाले थे। इनमें से कई लोगों को रास्ते में ही गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि 137 लोगों को धरनास्थल से गिरफ्तार किया गया।
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चीन में फैलेगा असंतोष
PLA पूर्व सैन्य कर्मियों की गिरफ्तारी सेना में भी असंतोष बढ़ाएगी। CCP में पहले ही जिनपिंग के विरुद्ध असंतोष व्याप्त है। जिनपिंग ने संविधान संशोधन के जरिए आजीवन राष्ट्रपति बने रहने का फैसला पार्टी पर थोप दिया है। उनके विरुद्ध प्रश्न उठाना तो दूर कम्युनिस्ट पार्टी अथवा सेना से जुड़ा कोई व्यक्ति जिनपिंग की जवाबदेहीता सुनिश्चित करने की मांग भी नहीं कर सकता। जिस प्रकार से चीन में कोरोनावायरस फैला था और शुरू में जिस प्रकार उसकी जानकारी छुपाने का प्रयास किया गया था, उसने जिनपिंग की कार्यक्षमता और कार्यशैली के प्रति लोगों में संदेह पैदा किया है। इसके बाद वायरस की रोकथाम के लिए सरकार ने जिस प्रकार के कदम उठाए, उससे भी आम लोगों के साथ ही प्रशासनिक अधिकारियों में भी असंतोष व्याप्त है।
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जिनपिंग की मूर्खता
इसके बाद जब दुनिया ने इस वायरस को लेकर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से प्रश्न शुरू किए तो, उसका जिस प्रकार से प्रतिकार किया गया, उससे न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बल्कि चीन के भीतर भी कम्युनिस्ट नेता अलग थलग पड़ चुके हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि चीन की आक्रामकता के कारण चीन वैश्विक स्तर पर अलग थलग पड़ गया है। पश्चिमी देश उससे व्यापारिक संबंध सीमित कर रहे हैं। चीन ने जिन देशों में निवेश किया है, वहां भी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की आर्थिक नीतियों, जैसे ऋणजाल को लेकर नाराजगी है। CPEC और BRI जैसी योजनाएं, इनका उद्देश्य आर्थिक लाभ के स्थान पर कम्युनिस्ट पार्टी के अहम को तुष्ट करना है, अर्थव्यवस्था को अपने बोझ तले दबा रही हैं।
चीनी सरकारी कंपनियों में पूर्व सैन्यकर्मियों की अच्छी भागीदारी रही है। वस्तुतः चीन में कार्य कर रहे निजी उद्योग, निजी केवल नाम के थे, वास्तव में उन पर कम्युनिस्ट पार्टी और सेना के लोगों का ही नियंत्रण था और अब जिनपिंग की सनक का दुष्परिणाम सभी को भोगना पड़ रहा है। जिनपिंग की मूर्खता न केवल आर्थिक दुष्परिणाम को न्योता दे रही है बल्कि उसने सेना पर मनोवैज्ञानिक रूप से नकारात्मक प्रभाव डाला है। बलवान घाटी में हुई झड़प में मारे गए सैनिकों को उचित सम्मान ना देकर कम्युनिस्ट पार्टी ने सेना का अपमान किया था।
इन सब के बीच पूर्व सैन्यकर्मियों के विरुद्ध जिस प्रकार से कार्रवाई की गई है, यदि कम्युनिस्ट पार्टी अपना यही रवैया आगे जारी रखेगी तो CCP और PLA के भीतर व्यापक विद्रोह हो सकता है। अगर असंतोष ऐसे ही बढ़ता रहा तो ऐसा भी सम्भव है कि जिनपिंग और उनके विश्वसनीय सहयोगियों को सत्ता से बेदखल करने के प्रयास शुरू हो जाएं।