AUKUS गठबंधन के साथ अमेरिका ने फ्रांस के पीठ में छुरा घोंपा था, अब भारत ने खेला कूटनीतिक दांव

भारत ने घोषणा तो फ्रांस से 24 सेकंड हैंड मिराज 2000 फाइटर जेट खरीदने की है लेकिन इस घोषणा का असर अमेरिका तक जाने वाला है!

कूटनीति में एक आवश्यक पहलू किसी भी बात को कहने का समय होता है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने इसी पहलू को अपना हथियार बना लिया है। चाहे को चीन को BRICS तथा SCO के मंच से लताड़ना हो या विदेश मंत्री एस जयशंकर का वैश्विक मंच से भारत की बात रखनी हो या चीन के साथ बढ़े तनाव में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का रूस दौरा हो। अब भारत ने इसी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए, एक ही तीर से दो निशाने साधे हैं। भारत ने घोषणा तो फ्रांस से 24 सेकंड हैंड मिराज 2000 फाइटर जेट खरीदने की है लेकिन इस घोषणा का असर अमेरिका तक जाने वाला है।

दरअसल, जब फ्रांस और अमेरिका के रिश्ते 200 वर्षों के इतिहास में सबसे बुरे दौर का सामना कर रहे हैं, भारत ने एक बड़ी कूटनीतिक चाल चली है, जिससे भारत अमेरिका को दबाव में ला सकता है। जब से जो बाइडन अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं, अमेरिका ने एक के बाद एक कई ऐसे कार्य किए हैं जिससे भारतीय हितों को नुकसान हो। ऐसे में अब भारत ने फ्रांस के सहयोग से हिंद प्रशांत क्षेत्र के समीकरण साधने शुरू कर दिए हैं।

भारत खरीदेगा 24 मिराज 2000 

पेरिस के अमेरिका से मोहभंग के बाद भारत ने फ्रांस के साथ अपनी साझेदारी को मजबूत करने कदम बढ़ाया और शनिवार को विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने अपने फ्रांसीसी समकक्ष, जीन-यवेस ले ड्रियन के साथ बात की तथा फ्रांस के लिए भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि की। जयशंकर और ले ड्रियन “इंडो-पैसिफिक के दो महान संप्रभु राष्ट्रों के बीच राजनीतिक विश्वास के संबंध के आधार पर” अपनी रणनीतिक साझेदारी को मजबूत बनाने के लिए सहमत हुए।

दोनों मंत्रियों ने इस सप्ताह न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा से इतर मुलाकात करने पर भी सहमति व्यक्त की, ताकि “वास्तव में एक बहुपक्षीय अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की रक्षा के लिए एक सामान्य कार्यक्रम पर काम किया जा सके।”

दोनों विदेश मंत्री के बीच मुलाकात का समय महत्वपूर्ण है। भारत ने फ्रांस को आश्वस्त करने के लिए कदम बढ़ाया है कि वह उसके साथ खड़ा है, जब अन्य देश और उसके सबसे पुराने और सबसे भरोसेमंद भागीदारों ने उसे ‘धोखा’ दिया है।

यही नहीं भारत ने फ्रांस से 24 सेकंड हैंड मिराज 2000 फाइटरजेट खरीदने का निर्णय किया है जिनका इस्तेमाल भारत में मौजूद मिराज 2000 को मजबूत करने के लिए होगा। 27 मिलियन यूरो के इस समझौते से भारत मिराज 2000 की पहले से मौजूद दो स्क्वाड्रन को मजबूत करेगा। इस समझौते के तहत भारत को मिलने वाले फाइटरजेट में 13 जेट पूरी तरह से तैयार हैं। इन 13 फाइटरजेट में भी 8 रेडीटूफ्लाई अवस्था में भारत को मिलेंगे। वही 11 फाइटरजेट अधूरी अवस्था में भारत को मिलेंगे लेकिन उनमें फ्यूल टैंक और इजेक्शन सीट मिलेंगी।

भारतीय वायु सेना को इस समय अपने मिराज 2000 फाइटरजेट की पुरानी स्क्वाड्रन के रख रखाव के लिए 300 से अधिक स्पेयरपार्ट की जरूरत है। ऐसे में यह भी चर्चा चल रही है कि स्पेयरपार्ट्स की उपलब्धता के लिए भारत में ही मैन्युफैक्चरिंग इकाइयां स्थापित की जाएं।

इस घोषणा का समय है महत्वपूर्ण

किंतु, यह रक्षा खरीद अति महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि इस संबंध में सार्वजनिक की गई जानकारी का समय महत्वपूर्ण है। हाल ही में अमेरिका ने ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर एक नया त्रिपक्षीय सहयोग संगठन ‛AUKUS’ बनाया है। इस त्रिपक्षीय संगठन का उद्देश्य चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना है। इसी संगठन की घोषणा के समय यह भी खबर आई की ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस के साथ हुई 90 बिलियन डॉलर के न्यूक्लियर पनडुब्बी समझौते को रद्द कर दिया है। फ्रांस के स्थान पर अब ऑस्ट्रेलिया अमेरिका से पनडुब्बियां खरीदने वाला है।

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अमेरिका का फ्रांस को धोखा

इस समझौते से फ्रांस इतना नाराज हुआ कि उसने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से अपने राजदूत वापस बुला लिए। इसके अगले ही दिन भारत ने अपनी रक्षा खरीद की जानकारी सार्वजनिक की है, जिसके जरिए भारत सरकार ने फ्रांस को यह संदेश दिया है कि भारत, फ्रांस के साथ भविष्य में अपना रक्षा सहयोग बढ़ाएगा। भारत ने पहले ही फ्रांस के साथ राफेल और पनडुब्बी निर्माण के लिए समझौता किया है। फ्रांस के लिए यह समझौते इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि रक्षा उपकरणों की बिक्री फ्रांस की अर्थव्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। रक्षा क्षेत्र के अतिरिक्त अमेरिकी नीतियों ने भारत और फ्रांस के कूटनीतिक और रणनीतिक हितों को भी एकमंच पर ला दिया है।

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अमेरिका ने जिस प्रकार अफगानिस्तान से अपनी सेना बुलाई उसने फ्रांस और भारत दोनों की चिंता को बढ़ा दिया है। भारत को तो तालिबान की वापसी से सीधा खतरा है ही, फ्रांस भी इस बात से चिंतित है कि जिस ISIS को पश्चिमी देशों की सेनाओं ने बहुत कठिनाई से लीबिया, इराक और सीरिया की भूमि से खदेड़ा था, अब अफगानिस्तान की भूमि में पुनः सिर उठाएगा। यदि भविष्य में अफगानिस्तान में ISIS का प्रभाव बढ़ेगा तो आतंकवाद केवल अफगानिस्तान तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि इसके कारण पश्चिम एशिया में भी अस्थिरता बढ़ेगी।

फ्रांस यह नहीं चाहता कि पश्चिम एशिया में पुनः वैसे ही हालात बने जैसे हालात सीरियाई युद्ध के समय बने थे। ऐसी स्थिति पुनः शरणार्थियों की समस्या से लेकर आतंकवाद के यूरोप तक पहुँचने की समस्या, आदि का सामना फ्रांस को भी करना पड़ सकता है। यही कारण था कि बाइडन ने जिस प्रकार अमेरिकी सेना को अफगानिस्तान से निकाला फ्रांस उसे से लेकर संतुष्ट नहीं था। जैसे ही तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया फ्रांस ने इराक में हुई सभी बड़े मुस्लिम देशों की बैठक में इस समस्या की ओर सबका ध्यान दिलाया था

अमेरिका पहुंचा रहा है भारतीय तथा फ्रांस के हितों को नुकसान

अमेरिका एक के बाद एक ऐसे निर्णय कर रहा है जो सीधे तौर पर फ्रांस और भारत के हितों के विरुद्ध हैं। यदि अमेरिका, वास्तव में चीन को नियंत्रित करना चाहता था तो वह ब्रिटेन को QUAD का नया सदस्य बना सकता था। अमेरिका चाहता तो फ्रांस को ऑब्जर्वर बनाकर QUAD की बैठक में आमंत्रित कर सकता था। यही नहीं अगर अमेरिका चाहता तो जिस तरह से UK को इस संगठन में शामिल किया उसी तरह फ्रांस को भी इस संगठन में शामिल कर सकता था। परंतु, अमेरिका ने ऐसा कुछ नहीं किया। AUKUS का उद्देश्य ऑस्ट्रेलिया की सैन्य क्षमता को बढ़ाना भले हो लेकिन, निश्चित रूप से इसने चीन के विरुद्ध पहले से कार्य कर रहे QUAD की महत्ता को कम किया है।

जब अमेरिका को सोवियत रूस के विरुद्ध देशों को लामबंद करना था तो अमेरिका ने उन्हें NATO के रूप में एक ही संगठन के अंतर्गत लामबंद किया था। ऐसे में चीन के विरुद्ध कई संगठनों का निर्माण केवल ध्यान बंटाएगा और चीन के विरुद्ध एकजुटता कम होगी। यह न तो भारत के लिए अच्छी खबर है और न ही फ्रांस के लिए।

ऑस्ट्रेलिया की सैन्य क्षमता को बढ़ाने के नाम पर AUKUS का औचित्य तो एक बार को सिद्ध किया जा सकता है, लेकिन फ्रांस के साथ अमेरिका का व्यवहार किसी भी स्थिति में विवेकपूर्ण कार्य नहीं माना जा सकता। अमेरिका सदैव अपने व्यापारिक हितों को अपने मित्रों के हितों के ऊपर तरजीह देता है। भारत के वैक्सीन निर्माण को प्रभावित करने के लिए भी जो बाइडन के नेतृत्व में अमेरिका ने निर्माण के लिए आवश्यक कच्चे माल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था।

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अब भारत ने फ्रांस के साथ रक्षा सौदे को ठीक उसी समय पर सार्वजनिक किया जिस समय पर फ्रांस का अमेरिका के साथ सबसे खराब रिश्ते हैं। इस कूटनीतिक चाल के पीछे अवश्य ही विदेश मंत्री एस जयशंकर का हाथ हो सकता है। पिछले कुछ समय में फ्रांस भारत का एक बेहतरीन साथी बन चुका है। इस कदम से वह और भी करीब आएगा। यही नहीं भारत चाहे तो अमेरिका की इस कूटनीतिक गलती पर उसे सबक सिखा सकता है। भारत को जापान और फ्रांस के साथ हिंद प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा के संदर्भ में त्रिपक्षीय वार्ता शुरू करनी चाहिए, वहीं तालिबान की समस्या को लेकर रूस और फ्रांस के साथ भी ऐसी ही त्रिपक्षीय वार्ता शुरू की जा सकती है। इससे अमेरिका को करारा जवाब दिया जा सकता है, एवं फ्रांस के साथ रिश्तों को भी मजबूत किया जा सकता है।

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