क्रिकेट में भारत की सर्वोच्चता निर्विवाद रूप से स्थापित है। भारत सिर्फ क्रिकेट खेलता ही नहीं बल्कि उस पर एकछत्र राज करता है। चाहे प्रबंधन और व्यवसाय का मामला हो या फिर खेल और खिलाड़ी का, भारत अब शिखर पर विराजमान है। आईपीएल, लोढ़ा कमेटी, बीसीसीआई और खेल प्रबंधन तंत्र ने एक कमजोर टीम को दुनिया की सबसे बेहतरीन टीम में परिवर्तित कर दिया। संघर्ष की गोद से निकले इसी सफलता नें क्रिकेट को दीवानेपन और फिर व्यवसाय में बदल दिया। आज भारत के पास ना तो खिलाड़ियों की कमी है और ना ही अर्थ-बल की। शायद, इसीलिए भारतीय ‘बी-टीम’ ने जब गाबा में ऑस्ट्रेलिया को मात दी तब पूरा खेल जगत आश्चर्यचकित रह गया। ऑस्ट्रेलियन कोच जस्टिन लैंगर की शब्दों में कहें तो 135 करोड़ में से चुने गए 11 निश्चित रूप से असाधारण खिलाड़ी होंगे। आईपीएल नें भारत की खिलाड़ि पंक्ति को इतना मजबूत कर दिया है की राष्ट्रीय स्तर पर भारत की तीन तीन टीम बनाई जा सकती और सभी टीमें दुनिया के किसी अंतर्राष्ट्रीय टीम को हारने का दमखम रखतीं है।
खैर, ये सारी सफलता-गाथा पुरानी है। भारत और इंग्लैंड के बीच चल रहें द्विपक्षीय शृंखला के दौरान कुछ ऐसा हुआ जो हमारे खेल में बड़े परिवर्तन की ओर संकेत करता है। वो परिवर्तन है हमारे गेंदबाजो का प्रदर्शन। इस टेस्ट शृंखला के चौथे मैच में तेज गेंदबाजों ने इंग्लैंड के 20 में से 14 विकेट गिराकर भारत को 157 रन से जीत दिलाई। इसमें अंतिम दिन गिरने वाले सात विकेट भी शामिल थे।ओवल में 50 वर्षों में भारत की पहली जीत है, जो भारतीय क्रिकेट के इतिहास में एक विशेष स्थान रखता है।
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तेज गेंदबाजों का कब्रगाह माना जाने वाला भारत अब पेस बैटरी के दम पर जीत रहा मैच
एक दौर था जब भारतीय पिचों को तेज गेंदबाजों का कब्रगाह और बल्लेबाजों के लिए जन्नत माना जाता था। उस दौर नें भारतीय टीम गेंदबाजी के नाम पर सिर्फ अपनी स्पिन चौकड़ी के साथ खेलती थी। आज के समय में चार स्पिन खिलाड़ी के संयोजन के साथ मैदान पर उतरना ही शायद हास्यास्पद लगे। उस दौर में भारत के पास कोई विकल्प भी तो नहीं था।
1960 और 70 के दशक में, भारत के सर्वश्रेष्ठ करीबी क्षेत्ररक्षक एकनाथ सोलकर से सिर्फ इसीलिए गेंदबाजी कराई जाती थी ताकि गेंद पुरानी हो जाए और इरापल्ली प्रसन्ना, श्रीनिवास वेंकटराघवन, भागवत चंद्रशेखर और बिशन सिंह बेदी की महान स्पिन चौकड़ी विकेट ले सकें। तेज़ गेंदबाज का उद्देश्य विकेट लेने के बजाय गेंद को स्पिनर के अनुकूल बनाने का था। यह शायद तेज गेंदबाजी के साथ भारत के विषम संबंधों का सबसे अच्छा सारांश है!
500 टेस्ट मैच खेलने वाला पहला देश होने के बावजूद, भारत ने अपना अधिकांश इतिहास बिना किसी प्रतिष्ठित तेज गेंदबाज के बिताया। कुछ वर्षों पूर्व तक पिच और मौसम की स्थिति के बावजूद, भारतीय क्रिकेट टीम हमेशा घर और बाहर दोनों जगह मैच जीतने के लिए अपने स्पिनरों पर निर्भर दिखाई देती थी। यहाँ तक कि विदेश के हरे पिच पर भी स्पीनर के साथ उतरती थी। भारत के शुरुआती क्रिकेट इतिहास में पारंपरिक तेज़ गेंदबाजों के पदचाप दिखते है, परंतु भारतीय क्रिकेट टीम 1930-1970 के अंतराल तक तेज गेंदबाजों के सूखे से गुजरी। इसके बाद महान कपिल देव आए और भारत के पास आखिरकार एक ऐसा व्यक्ति था जिसने न केवल गेंद की चमक को कम करने के लिए गेंदबाजी नहीं की बल्कि लाल चेरी को अपनी धुन पर नृत्य करवाया। कपिल देव के बाद भारतीय क्रिकेट कभी भी पहले जैसा नहीं रहा, क्योंकि भारत ने तब से गुणवत्ता वाले तेज गेंदबाज पैदा किए हैं। कपिल देव के बाद वेंकटेश प्रसाद, जवागल श्रीनाथ, आशीष नेहरा जैसे तेज़ गेंदबाज हुए लेकिन कभी भी भारत के पास पेस बैटरी नहीं हुई यानी एक साथ कई तेज गेंदबाजों ने विरोधी टीम को पस्त नहीं किया था।
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भारत के पास हमेशा विश्व स्तरीय स्पिन गेंदबाज होते हैं, लेकिन उनके पास शायद ही कभी तेज गेंदबाजों की एक रक्षण-पंक्ति होती है जिनमें विकेट और गति की भूख होती है। अथक परिश्रम के साथ वर्तमान चौकड़ी – जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद शमी, ईशांत शर्मा, उमेश यादव भारत को आशान्वित करती है। अगर इस लिस्ट को बढ़ाना चाहें तो भुवनेश्वर कुमार, मुहम्मद सिराज तथा कई गेंदबाज और भी है जो अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे हैं। जहीर खान 2010 के दशक की शुरुआत में भारत के अकेले ऐसे तेज गेंदबाज थे, जो अपनी गति और नियंत्रण से विपक्षी बल्लेबाजों में डर पैदा कर सकते थे। हालांकि, तब उनके साथ कई तेज गेंदबाज आए और गए परंतु किसी में भी स्थायित्व नहीं था। भारतीय तेज गेंदबाजों ने 2000 के दशक से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी चुनौतीपूर्ण क्षमता का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था लेकिन वे लगातार हावी नहीं हो रहे थे, खासकर भारत में। चाहे वह चेतन शर्मा का बीता हुआ युग हो या जवागल श्रीनाथ, जहीर खान आशीष नेहरा और अजीत अगरकर का समय, भारत के पास हमेशा गुणवत्तापूर्ण तेज गेंदबाजी शस्त्रागार रहा है।
लगातार लाइन, लेंथ और सटीकता के साथ गेंदबाजी करने से उनकी मेहनत का फल अक्सर मिलता था लेकिन कुंबले-हरभजन या फिर स्पिन चौकड़ी की तरह सशक्त और स्थायी नहीं था। आप तथ्यों से ही अंदाज़ा लगा सकते हैं कि अकेले भज्जी और कुंबले की जोड़ी ने भारत की तरफ से 40% अंतर्राष्ट्रीय विकेट लिए हैं। वहीं भारत की करिश्माई स्पिन चौकड़ी ने 1962 और 1983 के बीच संयुक्त रूप से 239 टेस्ट मैच खेले और 853 विकेट चटकाए, जिसमें 43 बार पांच विकेट और 6 बार दस-दस विकेट शामिल थे।
पिछले कुछ वर्षों में तेज गेंदबाजों के लिए गति बढ़ाने के लिए क्या बदलाव आया है। इशांत, बुमराह और शमी में से प्रत्येक ने 2018 से टेस्ट मैचों में प्रत्येक वर्ष 50 से अधिक विकेट लिए हैं। वहीं भारत के गेंदबाजी कोच भरत अरुण ने गेंदबाजों पर नजर रखने के लिए प्रबंधन द्वारा अपनाई गई सतत मानीटरिंग रणनीति का खुलासा किया है, जिसके फलस्वरूप कोहली को भी ये कहना पड़ा की अब हमारे पास तेज गेंदबाजों का ड्रीम कॉम्बिनेशन है।
जब 2014-15 की ऑस्ट्रेलिया श्रृंखला के दौरान भारतीय टेस्ट टीम का नेतृत्व विराट कोहली को सौंपी गयी तब पहली चीज जो विराट भारत के टेस्ट पक्ष के लिए बदलना चाहते थे, वह उनका विदेशी रिकॉर्ड था। इसे बदलने के लिए आपको एक गुणवत्ता वाले तेज-गेंदबाजी आक्रमण की आवश्यकता थी। इसके बाद भारत ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और तेज़ गेंदबाजों की अपनी एक फौज तैयार की। आईपीएल और हमारी नयी हरी पिचों का इसमें भारी योगदान रहा है। इन सभी प्रयासों के बदौलत ही आज भारत अपनी एकमात्र कमजोरी को अपनी सबसे बड़ी ताकत में बदल चुका है। एक समय स्पिन चौकड़ी और एक तेज गेंदबाज के साथ खेलने के बाद आज 4-5 तेज गेंदबाजों और एक स्पिनर के साथ खेलने का सफर बहुत रोमांचक और उतार चढ़ाव से भरा हुआ लेकिन संतोषप्रद है।
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