सैनिक पराक्रम राष्ट्रप्रेम का प्रतिबिंब होता है और सेना राष्ट्र शक्ति का एकमात्र स्रोत। वनस्पति और रश्मिरथी भी जहां पहुंचने को मना करते है, राष्ट्र लक्ष्य हेतु ये नरसिंह वहां खड़े होते हैं। अगर इन्हें वर्दी में अवतरित ईश्वर की संज्ञा दी जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। आज हम आपको एक ऐसे ही राष्ट्र वीर की वास्तविक कहानी सुनाने जा रहे हैं।
नाथू ला जैसा दुर्गम क्षेत्र। चीन जैसी महाशक्ति। 1962 की हार से टूटा मनोबल। सैन्य संसाधन की कमी। चीन के मुकाबले संख्या बल में घोर अनुपातिक कमी। इन सारे परिस्थितिजन्य चक्रव्युह से घिरे होने के बावजूद भी, मजाल कि एक जवान भी पीछे हटा हो।
लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह को भारत का सबसे निर्भिक जनरल माना जाता है। जनरल सगत एकमात्र सैन्य अधिकारी हैं जिन्होंने तीन युद्ध में जीत हासिल की। उनके नेतृत्व में गोवा को पुतर्गाल से मुक्त कराया गया। वहीं वर्ष 1967 में उनके ही नेतृत्व में चीनी सेना पर जबरदस्त हमला किया गया। इसके बाद वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में अपने वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों को दरकिनार कर जनरल सगत ढाका पर जा चढ़े। इसकी बदौलत पाकिस्तानी सेना को हथियार डालने पर मजबूर होना पड़ा। हालांकि, इन्हें हमेशा ही उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। यही कारण है कि उन्हें कभी किसी तरह का वीरता सम्मान नहीं मिला। अब भारतीय सेना उनकी जन्म शताब्दी मनाने जा रही है। इस अवसर पर जोधपुर में बुधवार को उनकी प्रतिमा का अनावरण किया जाएगा।
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जनरल सगत चीन सीमा पर नाथु ला में तैनात थे। नाथुला में भारत व चीन के सैनिकों के बीच हमेशा टकराव रहती थी। रोजाना की झड़प बंद करने के लिए जनरल सगत के आदेश पर नाथु ला सेक्टर में 11 सितम्बर 1967 को तारबंदी शुरू किया गया। चीनी सेना बगैर किसी चेतावनी के जोरदार फायरिंग करने लगी। तब भारतीय सैनिक खुले में खड़े थे, ऐसे में बड़ी संख्या में सैनिक हताहत हो गए। इसके बाद जनरल सगत ने नीचे से तोपों को ऊपर मंगाया। उस समय तोप से गोलाबारी करने का आदेश सिर्फ प्रधानमंत्री ही दे सकता था। दिल्ली से कोई आदेश नहीं मिलता देख जनरल सगत ने तोपों के मुंह खोलने का आदेश दे दिया। देखते ही देखते भारतीय जवानों ने चीन के तीन सौ सैनिक मार गिराए। इसके बाद चीनी सेना पीछे हट गई। इसे लेकर काफी हंगामा मचा, लेकिन चीनी सेना पर इस जीत ने भारतीय सैनिकों के मन में वर्ष 1962 से समाए भय को बाहर निकाल दिया। अब भारतीय सेना यह जान चुकी थी कि चीनी सेना को पराजित किया जा सकता है। इसके बाद जनरल सगत का वहां से तबादला कर दिया गया।
गोवा को पुर्तगाल के कब्जे से मुक्त कराने के लिए भारतीय सेना के तीनों अंग थल, वायु और नौ सेना ने मिलकर संयुक्त ऑपरेशन चलाया। उनकी जीवनी में मेजर जनरल वीके सिंह ने बताया है कि गोवा मुक्ति के लिए दिसम्बर 1961 में भारतीय सेना के ऑपरेशन विजय में 50 पैरा को सहयोगी की भूमिका में चुना गया, लेकिन उन्होंने इससे कहीं आगे बढ़, इतनी तेजी से गोवा को मुक्त कराया कि सभी दंग रह गए। 18 दिसम्बर को 50 पैरा को गोवा में उतारा गया। 19 दिसम्बर को उनकी बटालियन गोवा के निकट पहुंच गई। पणजी के बाहर पूरी रात डेरा जमा रखने के बाद उनके जवानों ने तैरकर नदी को पार कर शहर में प्रवेश किया। इसके बाद उन्होंने ही पुर्तगालियों को आत्मसमर्पण करने को मजबूर किया। पुर्तगाल के सैनिकों सहित 3306 लोगों ने आत्मसमर्पण किया। इसके साथ ही गोवा पर 451 साल से चला रहा पुर्तगाल का शासन समाप्त हुआ और वह भारत का हिस्सा बन गया।
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पुर्तगाल सरकार ने पकड़ने पर रखा इनाम
गोवा से वापस आगरा आने पर सगत सिंह के साथ एक दिन घटना घटी। सिविल ड्रेस में सगत सिंह होटल में खाना खाने गए। जनरल वीके सिंह ने उनकी जीवनी में लिखा है कि होटल में कुछ विदेशी पर्यटक लगातार सगत सिंह की तरफ देख रहे थे। थोड़ी देर बाद एक पर्यटक उनके निकट आया और स्वयं को अमरीका का बताते हुए पूछा क्या आप ब्रिगेडियर सगत सिंह है? उन्होंने हां में जवाब दे कर विदेशी से इस सवाल का कारण पूछा। इस पर पर्यटक ने बताया कि, ‘मैं पुर्तगाल से आ रहे हैं। वहां कई जगह हमने आपका पोस्टर देखा। पोस्टरों के नीचे लिखा था कि आपको पकड़ कर लाने वाले को दस हजार डॉलर इनाम दिया जाएगा।’ सगत सिंह ने मुस्करा कर कहा, “ओह, तो फिर मैं आपके साथ पुर्तगाल चलता हूं। आपको इनाम मिल जाएगा। इस पर पर्यटक ने मजाकिया लहजे में कहा कि हम पुर्तगाल न जाकर सीधे अमेरिका जा रहे है। कभी और चलेंगे पुर्तगाल।”
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आदेश को दरकिनार कर घेर लिया ढाका
जनरल सगत ने वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान अगरतला सेक्टर की तरफ से हमला बोला था और अपनी सेना को लेकर आगे बढ़ते रहे। जनरल अरोड़ा ने उन्हें मेघना नदी पार नहीं करने का आदेश दिया, लेकिन हेलिकॉप्टरों की मदद से चार किलोमीटर चौड़ी मेघना नदी को पार कर उन्होंने पूरी ब्रिगेड उतार दी और आगे बढ़ गए। जनरल सगत सिंह ने अपने मित्र जो कि बाद में एयर वाइस मार्शल बने, चंदन सिंह राठौड़ की मदद से इस असंभव लगने वाले काम को अंजाम दिया था। तब देश के रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम और पीएम इंदिरा गांधी हैरत में पड़ गए थे कि भारतीय सेना इतनी जल्दी ढाका कैसे पहुंच गई। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि सेना के ढाका में प्रवेश करने की प्लानिंग सेना और सरकार के स्तर पर बनी ही नहीं थी, जबकि सगत सिंह ने उसे अंजाम भी दे दिया। जनरल सगत के नेतृत्व में भारतीय सेना ने ढाका को घेर लिया और जनरल नियाजी को आत्मसमर्पण का संदेश भेजा। इसके बाद 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों का आत्मसमर्पण और बांग्लादेश का उदय अपने आप में इतिहास बन गया। हालांकि, इसमें भी जनरल सगत को कोई श्रेय नहीं मिलाl
अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय, अतुलनीय!!! सगत के साहस का स्वरुप इतना वृहद् और विशाल है कि विशेषण की परिधि से बाहर हो जाये। पुर्तगाल, चीन और पाकिस्तान को परास्त करनेवाला एकमात्र योद्धा। सगत सिंह ने सेना के मन से चीनियों का भय निकाला। कहते है जीत सुनिश्चित हो तो ‘कायर’ भी लड़ते है, लेकिन जब हार प्रत्यक्ष रूप से सामने खड़ा हो जो उस समय भी चक्रव्यूह भेदन करे असली अभिमन्यु वही है। सगत सिंह को तो हार के भय से नाथुला में लड़ने की आज्ञा भी नहीं दी गयी, लेकिन भारत माता की आन और मान-सम्मान के लिए इस शेर नें सिर्फ विजय के विकल्प को ही चुना।