गैरकानूनी पलायन सिर्फ भारत की नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय समस्या है। अंतरराष्ट्रीय कानून यह कहते हैं कि आर्थिक विकास और लाभ के लिए पलायन करना कानूनी पलायन नहीं है। अगर ऐसे स्थिति में आप पलायन करना चाहते हैं तो आपको रोजगार के लिए समर्पित वीजा या सरकार की रजामंदी चाहिए। बांग्लादेश से पलायन होने की वजह से पूरा उत्तर पूर्वी भारत परेशान है। सोशल डेमोग्राफी में होने वाले बदलाव से असम और त्रिपुरा सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि पलायन का पैमाना कितना बड़ा है। क्या आपको मालूम है कि त्रिपुरा में त्रिपुरी बोलने वाले अल्पसंख्यक है? भले आपको हैरानी हो लेकिन तथ्य यही है कि त्रिपुरा में बंगाली बोलने वाले बहुसंख्यक हैं और त्रिपुरी बोलने वाले अल्पसंख्यक हैं। असम में इसी अवैध पलायन के चलते असम आंदोलन चला। जांच में 1 लाख 40 लाख अवैध नागरिक पकड़े गए। ये आंकड़ा इतना बड़ा है कि मोनाको जैसे 4 देश बन सकते हैं। गोवा की आबादी 18 लाख है और हेमंत बिस्वा शर्मा तो यह भी कहते हैं कि असल आंकड़ो में अवैध पलायन करने वालों की संख्या गोवा के आकार समान है।
इस पलायन के लिए सिर्फ बांग्लादेश के आंतरिक कारण जिम्मेदार नहीं है बल्कि कांग्रेस भी उतनी ही जिम्मेदार है। अवैध पलायन करने वाले सरकारी जमीनों पर कब्जा करके बैठे हुए थे और दरांग में उसी अवैध अतिक्रमण को हटाने के चक्कर में 9 पुलिसकर्मी घायल हो गए हैं और दो लोग मारे भी गए है।
असम के मुख्यमंत्री अतिक्रमण हटाने के अभियान पर बोले, “हमारे पास प्रमाण है कि कुछ लोग दरांग के अवैध अतिक्रमण वाले लोगों से ₹28 लाख रुपये ले चुके है। ये पैसे लेने वालों ने वादा किया था कि वो सरकार को मनाएंगे ताकि ऐसा अभियान ना चले।” हेमंत बिस्वा शर्मा ने यह भी बताया कि वह अतिक्रमण वाले जगहों का क्षेत्रफल गोआ से ज्यादा बड़ी है।
अतिक्रमण के लिए कांग्रेस जिम्मेदार?
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता नलिन कोहली ने शुक्रवार को कांग्रेस पर आरोप लगाया कि कांग्रेस के शासन के दौरान, अवैध अप्रवासी असम में आए और फर्जी दस्तावेज हासिल करने में कामयाब रहे। नलिन कोहली ने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस शासन के दौरान अप्रवासियों द्वारा सरकारी भूमि पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया था।
ANI से बात करते हुए, कोहली ने कहा, “एक दशक में देश के अन्य हिस्सों से अवैध अप्रवासियों ने असम में पलायन करके बाढ़ ला दी है और फर्जी दस्तावेज प्राप्त करने और सरकारी भूमि पर अवैध रूप से कब्जा करने में कामयाब रहे। साथ ही असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी कहा है कि असम में लोगों के लाभ के लिए जो भी काम किये जाने की जरूरत है, कानून का पालन करते हुए व्व सारे कदम उठाए जाएंगे।”
कांग्रेस ऐसे पलायन करने वालों को इसीलिए जगह देती थी क्योंकि वह तुष्टिकरण करके ऐसे अवैध घुसपैठियों को अपना वोट बैंक बनाती थी। इसी कारण से इतने लंबे समय से अवैध घुसपैठियों को बाहर नहीं किया था और अब यह काम हेमंत बिस्वा सरमा को करना पड़ रहा है।
2016 की खबरों में सरकार द्वारा ऐसे अवैध घुसपैठियों को सरकारी सुविधाएं मुहैया कराने की खबरें आई थी। असम के एक क्षेत्र में बांग्लादेशी प्रवासी आकर बस गए और दो दशकों में, उस क्षेत्र में 32 सरकारी स्कूल, तीन स्वास्थ्य केंद्र और स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय भी बना दिये गए। इसी तरह की कहानी गुवाहाटी से लगभग 40 किमी पूर्व में हातिमुरिया में सामने आई, जिसमें पिछले दो वर्षों में 300 से अधिक घरों को जोड़ा गया है। बसने वालों को सौर रोशनी प्रदान की गई थी।
असम में अवैध आव्रजन की निगरानी करने वाले कानूनी विशेषज्ञों के एक समूह, प्रब्रजन विरोधी मंच (पीवीएम) ने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं, जो उस राज्य में एक भावनात्मक मुद्दा है जहां अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों के खिलाफ स्थानीय दुश्मनी गहरी है। असम में कई लोग मानते हैं कि बांग्लादेश मूल के लोगों द्वारा स्वदेशी समुदायों का सफाया कर दिया जाएगा, जो राज्य के 34% मुसलमानों के रूप में बड़े हिस्से का बन गए है। इस डर ने 1979-1985 तक असम के विदेशी विरोधी आंदोलन को गति दी थी।
पीवीएम के संयोजक उपमन्यु हजारिका ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया था, “सरकारी रिकॉर्ड कहते हैं कि ‘गैर-भारतीय’ और ‘गैर-नागरिकों’ को 9 मई, 1994 को सिपाझार में 77,420 बीघा (22,905 एकड़) खाली करने का आदेश दिया गया था। लेकिन जैसे-जैसे उनकी संख्या कम से कम 25,000 मतदाताओं तक बढ़ी, सरकार ने सभी सुविधाएं बढ़ा दीं। लंबित मामलों के बावजूद, अधिकारी अब 1,500 इंदिरा आवास योजना घरों के विद्युतीकरण के साथ रह रहे हैं।”
सरकार के तरफ से तब के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने यहां तक कहा था कि अगर भाजपा अतिक्रमण और अधिग्रहण/कब्जे को साबित करने में सफल रहती है तो वह इस्तीफा दे देंगे। उनके हिसाब से वैष्णव हिंदुओ के इलाकों में अधिग्रहण/अतिक्रमण नहीं हुआ था।
वो अकेले नहीं थे जो सरकार द्वारा अवैध पलायन को हटाने की मुहिम विरोधी थे। किसानों के नेता बनने वाला अखिल गोगोई भी इसी चक्कर में जेल की हवा खा चुका है। यूनेस्को और सरकार द्वारा संरक्षित काजीरंगा नेशनल पार्क में तब 331 भवनों का अतिक्रमण था और उसे तोड़ने का आदेश दिया गया था। अखिल वहां जाकर लोगों को भड़काकर हिंसा से प्रेरित करके बवाल काटा था। भाजपा ने असम को भूमि जिहाद से मुक्त करने का वादा किया था।
भाजपा के घोषणापत्र में भूमि जिहाद का जिक्र था और भाजपा ने इस जिहाद से असम को मुक्त करने का वादा किया था। अब आप सोच रहे होंगे ये भूमि जिहाद क्या है? असम बीजेपी के उपाध्यक्ष स्वप्नील बरुआ ने दिप्रिंट को इसका मतलब है, “लैंड जिहाद लोगों को अपनी जमीन बेचने के लिए मजबूर करने का एक तरीका है – यह कहीं भी होता है जहां मिया (असम में बंगाली मूल के मुसलमान) होते हैं। सोरभोग, धुबरी और सीमावर्ती अप्रवासी-बहुल क्षेत्रों से मामले सामने आए हैं।”
“वे कभी-कभी मवेशियों को चुराकर और मवेशियों के कटे हुए सिर को आंगनों में फेंककर, भूमि को निर्जन बना देते हैं, भूमि के मालिक को घेर लेते हैं। अंतत: मालिक को जमीन बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। एक तीसरा पक्ष खेल में आता है और जमीन की खरीद के लिए मालिक को एक प्रस्ताव दिया जाता है और फिर एक दलाल शामिल हो जाता है जिससे जमीन पर कब्जा कर लिया जाता है।”
ऐसे अवैध घुसपैठियों के ऊपर अब सरकार जब कदम उठा रही है तब विपक्ष मानवता के आधार पर सरकार को ही हत्या का दोषी बता रहे है। सवाल यह है कि जो काम 1985 में हो जाना चाहिए था वो अब क्यों हो रहा है? और जितने भी अवैध घुसपैठिये थे, क्या उनको जिम्मेदारी दिखाते हुए सरकार से शरण की मांग नहीं करनी चाहिए थी? एक तो वो अवैध पलायन करें और फिर भारतीय भूमि पर कब्जा भी कर लें और विपक्ष के हिसाब सरकार उनकव मानवता के आधार पर ऐसा करने दे। ये अवैध घुसपैठिये ड्रग कार्टेल में सक्रिय थे, देश विरोधी ताकतों को मजबूत कर रहे थे, अवैध जानवर तस्करी और हथियार व्यपार भी इनकी संलिप्तता पाई गई है। ये राष्ट्र और राज्य के आलाकमान की जिम्मेदारी है कि वह किसी अन्य राज्य को त्रिपुरा ना बनने दे।