कभी किसी ऐसे व्यक्ति या संगठन को देखा है, जो उस व्यक्ति से सहायता मांगने पर विवश हो जाए जिसे उसने जीवन भर अपना परम शत्रु माना हो? महाभारत में एक उदाहरण है कि जब युद्ध में गन्धर्वों ने दुर्योधन समेत कई कौरवों को बंदी बना लिया तब कुरुवंश ने वनवास काट रहे पांडवों से सहायता की याचना की। कलियुग में भी एक ऐसा ही विचित्र उदाहरण देखने को मिला है, जहां कांग्रेस, जी हाँ, कांग्रेस पार्टी ने अपनी नैया पार लगाने के लिए भाजपा से सहायता मांगी है।
कांग्रेस को गठबंधन पर भरोसा नहीं!
दरअसल, महाराष्ट्र में राज्यसभा की सीट के लिए एक उपचुनाव प्रस्तावित है। इसमें महाविकास अघाड़ी का कथित तौर पर पलड़ा भारी दिख रहा है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि गठबंधन का प्रत्याशी विधायकों के समर्थन के बल पर आराम से चुनाव में विजयी हो सकता है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि उक्त प्रत्याशी रजनी पाटिल निर्विरोध भी जीत सकती हैं।
तो कांग्रेस का भाजपा से सहायता मांगने का प्रश्न कहां से उठ आया? असल में कई कांग्रेस नेताओं की देवेन्द्र फड़नवीस से हाल ही में बातचीत हुई, जिसके पश्चात अटकलें लगाई जा रही हैं कि कांग्रेस पार्टी भाजपा से अपना उम्मीदवार हटाने की अपील कर रही है, ताकि वह निर्विरोध चुनाव जीत जाए। ऐसा क्यों? कांग्रेस को संदेह है कि गठबंधन की दरार सामने आ सकती है और कई विधायक क्रॉस वोटिंग कर सकते हैं, यानी विपक्षी उम्मीदवार [भाजपा] के पक्ष में भी वोट दे सकते हैं।
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बहुमत होने के बावजूद गिड़गिड़ा रही कांग्रेस
अब कांग्रेस का यह नया पैंतरा NCP और शिवसेना दोनों को पसंद नहीं आ रहा है और उन्होंने स्वाभाविक तौर पर आरोप लगाया कि बहुमत होने के बावजूद कांग्रेस क्यों बीजेपी के सामने गिड़गिड़ा रही है। वन इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, “कांग्रेस के इस फैसले ने उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी को अंदर ही अंदर हिला दिया है। दोनों दलों को लगता है कि कांग्रेस ने ऐसा करके गठबंधन में आपसी भरोसे को लेकर संदेह पैदा कर दिया है। क्योंकि कांग्रेस के पास तो पर्याप्त विधायक हैं, फिर भाजपा से सहायता मांगने की क्या जरूरत थी?”
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि कांग्रेस ने इसके बदले भाजपा को विधानसभा से निलंबित उसके 12 विधायकों के निलंबन वापसी का ऑफर भी दिया है। साथ ही यह भी दावा किया गया है कि बीजेपी ने इस प्रस्ताव पर सोचने की बात कही है। हालांकि, इसके ठीक उलट नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस ने इस डील के अटकलों को खारिज़ किया है।
परंतु, जाने-अंजाने में कांग्रेस ने अपने ही गठबंधन की पोल खोल दी है। जिस प्रकार से वह अपने प्रत्याशी को जिताने के लिए भाजपा से भीख मांगने तक को तैयार थी, उससे स्पष्ट होता है कि समय आने पर वह एनसीपी और शिवसेना से भी नाता तोड सकती है। जैसे उनके साथ कभी कोई गठबंधन या संबंध था ही नहीं।