पूर्व में रेप केस के आरोप में फंस चुके झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कार्यकाल विवादों से भरा हुआ है। अब विवादों की कड़ी में एक नया विवाद जुड़ गया है l हेमंत सोरेन ने भाषाई आधार पर नस्लभेदी टिप्पणी की है जिससे फिर नया विवाद खड़ा हो गया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मंगलवार को यह दावा करते हुए विवाद खड़ा कर दिया कि झारखंड के लिए लड़ने वाले आदिवासी लोगों ने क्षेत्रीय भाषाओं के लिए आंदोलन किया था, ना कि भोजपुरी और मगही के लिए। राज्य के आंदोलन के दौरान महिलाओं के साथ कथित रूप से बलात्कार किया गया था और उन्हें भोजपुरी भाषा में गालियां दी गई थी।
हेमंत सोरेन ने एक समाचार चैनल को दिए एक साक्षात्कार में कहा, “आदिवासी समाज ने झारखंड के नामपर अलग राज्य के लिए जो लड़ाई लड़ी थी, वह उसकी क्षेत्रीय और आदिवासी भाषाओं के लिए थी, न कि भोजपुरी या मगही के लिए। भोजपुरी और मगही क्षेत्रीय भाषाएँ नहीं हैं, बल्कि उधार की भाषाएँ हैं। उन दो भाषाओं के बोलने वाले लोग हावी है, जबकि स्थानीय लोग कमजोर हो गए हैं। स्थानीय लोगों में से कुछ ने तो शक्तिशाली लोगों की भाषा का उपयोग करना शुरू कर दिया है।”
हेमंत सोरेन ने आगे कहा, “अलग राज्य का दर्जा प्राप्त करने के लिए आंदोलन के दौरान, लोगों को प्रताड़ित करने वाले और महिलाओं के साथ बलात्कार करने वाले उन्हें भोजपुरी में गाली देते थे। उनमें से कई (प्रताड़ित) पुरुष और महिलाएं अभी भी जीवित हैं।” यह दावा करते हुए उन्होंने यहां तक कहा कि भोजपुरी और मगही बिहार की भाषा हैं और झारखंड में बिहारीकरण चल रहा है जिसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है।
भाजपा की बिहार और झारखंड इकाइयों ने सोरेन की टिप्पणियों को ‘आपत्तिजनक’ बताया है और आरोप लगाया कि उनका उद्देश्य समाज को विभाजित करना है। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा है कि अगर मगही और भोजपुरी भाषा है तो हेमन्त सोरेन शासन ने राज्य में उर्दू को भाषा के रूप में शामिल क्यों किया है?
झामुमो की सहायक पार्टी कांग्रेस ने अभी तक चुप्पी साध रखी है। झामुमों के ही मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर, जिन्होंने मगही और भोजपुरी को भाषा के रूप में शामिल किए जाने की मांग की थी, वह भी इस मुद्दे पर चुप है।
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हालांकि, झामुमो ने अपना बचाव करते हुए कहा है कि राज्य में क्षेत्रीय भाषाओं का प्रचार लंबे समय से रुक गया है और झामुमों इसके लिए प्रतिबद्ध है लेकिन झामुमों के इस कदम को राजनीतिक रूप से उठाया गया कदम बताया जा रहा है। सोरेन ध्रुवीकरण करके आदिवासी और मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट करना चाह रहे हैं। सोरेन सरकार मुसलमानों और उर्दू भाषी लोगों को पहले से ही रियायतें देती रही है। एक देश में रहकर नफरत का ऐसा बीज बोने वाले हेमंत सोरेन शायद भूल गए हैं कि झारखंड बिहार से ही निकला हुआ राज्य है जहां की मैथिली, अंगिका, भोजपुरी, मगही स्थानीय भाषा है।