जब से केजरीवाल सरकार में आए हैं तब से दिल्ली सरकार का सारा ध्यान इंफ्रास्ट्रक्चर शहरी विकास और सुविधाओं की उपलब्धता के स्थान पर मुफ्त बिजली मुफ्त पानी और मुफ्त राशन की ओर केंद्रित हो रहा है। फ्री बिजली और पानी जैसे लोक लुभावन वादों को पूरा करने के लिए केजरीवाल सरकार ने शहरी विकास पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जिसका नतीजा दिल्ली में जलजमाव और बाढ़ जैसी स्थिति के रूप में सामने आ रहा है।
किसी भी बड़े शहर के लिए सबसे जरूरी होता है अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास और शीला दीक्षित सरकार में इसे हमेशा प्राथमिकता मिलती थी। दिल्ली जो कि एक केंद्र शासित प्रदेश है, उसकी अपनी विधानसभा बनाने का उद्देश्य ही यह था कि दिल्ली के इंफ्रास्ट्रक्चर और शहरी सुविधाओं के विकास पर पर्याप्त ध्यान दिया जा सके।
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किंतु केजरीवाल, जिन्होंने राजनीति में कदम रखते हुए यह कहा था कि वह राजनीति में बदलाव लाएंगे, उन्होंने लालू प्रसाद यादव, करुणानिधि, जयललिता और मुलायम सिंह यादव जैसा ही राजनीतिक कार्यक्रम अपनाया और समाजवादी विचारधारा के प्रभाव में मुफ्तखोरी की राजनीतिक संस्कृति को बढ़ावा दिया।
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उदाहरण के लिए जब लालू रेल मंत्री बने तो उन्होंने रेलवे के विकास पर ध्यान देने के स्थान पर किराया न बढ़ाने को अपनी प्राथमिकता बनाया। नतीजा यह हुआ कि रेलवे वर्ष दर वर्ष घाटे में चला गया जिसके परिणाम स्वरूप गंदे रेलवे स्टेशन, गंदी रेलगाड़ियां, अत्याधुनिक तकनीक के अभाव के कारण होने वाले हादसे, ट्रेन टिकट की अनुपलब्धता आदि आम बात हो गई थी। नई रेलवे लाइन नहीं बिछने के कारण पटरी पर रेलगाड़ी की संख्या बढ़ती गई, जिसके कारण ट्रेन कभी समय से चल नहीं पाती थी।
इसी प्रकार से केजरीवाल ने सरकारी स्कूलों और मोहल्ला क्लिनिक पर जोर दिया है। बिजली और पानी के दाम कम रखें हैं, लेकिन इन सब के कारण नई सड़क, ब्रिज और जल निकासी के लिए आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को दिल्ली सरकार फंड नहीं कर पा रही है। दिल्ली सरकार स्वच्छ पेयजल और पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम के लिए कोई क्रांतिकारी प्रोजेक्ट नहीं ला सकी है। यदि यही हाल रहा तो कुछ वर्षों में दिल्ली देखने लायक बचेगी ही नहीं।
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एक शहरी क्षेत्र होने के बाद भी दिल्ली सरकार अपने बजट का मात्र 4.9 प्रतिशत अर्बन इन्फ्राट्रक्चर पर, 2.6% स्वच्छता और जलापूर्ति पर और 4% रोड ब्रिज के निर्माण पर खर्च करती है।
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दिल्ली सरकार शहरी विकास पर कितना पैसा खर्च करती है वह उत्तर प्रदेश और बिहार से बहुत अधिक नहीं है। यहां ध्यान देने योग्य बात है कि दिल्ली में 90% शहरी क्षेत्र है, जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार में शहरी क्षेत्र 20% से भी कम है। ऐसे में दिल्ली सरकार को उत्तर प्रदेश और बिहार की तुलना में कम से कम 4 गुना अधिक पैसे शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए खर्च करने चाहिए थे। दिल्ली की जनता ग्रामीण परिवेश में नहीं रहती है कि वह अपने बिजली बिल का खर्च नहीं उठा सकेगी, लेकिन फ्री बिजली बांटने के चक्कर में दिल्ली के भविष्य को दांव पर लगाना सर्वथा अनुचित है। नए इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट शुरू करना तो दूर की बात है दिल्ली सरकार तो शीला दीक्षित के समय बने सड़कों, ब्रिज आदि की मरम्मत भी नहीं कर पा रही है। दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन एक ऐसा ही संस्थान है जिसे शीला दीक्षित के समय शुरू किया गया था किंतु केजरीवाल सरकार में यह संस्थान फंड की समस्या से जूझ रहा है। उस पर भी जून 2019 में केजरीवाल ने घोषणा कर दी थी कि महिलाओं के लिए डीटीसी बस के टिकट फ्री होंगे। केजरीवाल ने तो मेट्रो में भी फ्री यात्रा की घोषणा कर दी थी, लेकिन मेट्रो कॉरपोरेशन के विरोध के कारण यह संभव नहीं हो पाया। किंतु डीटीसी सरकार के फैसले के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकी। 2013-14 में जहां डीटीसी का सालाना नुकसान 942.89 करोड़ रुपए था वह बढ़कर 2018-19 में 1,750.37 करोड़ हो गया। 5 वर्षों में ही डीटीसी का घाटा दोगुना हो गया है।
एक ओर तो डीटीसी का घाटा बढ़ा है वहीं, दूसरी ओर बस की संख्या भी घट चुकी है। 2013-14 में डीटीसी के पास 5,223 बस थी, जबकि 2017-18 में डीटीसी के पास मात्र 3,951 बस ही मौजूद थीं। लगभग 1300 पुरानी बसों को हटा दिया गया, लेकिन सरकार ने इसके बाद एक भी नई बस नहीं खरीदी।
केजरीवाल के लिए लोक लुभावन नीतियां दिल्ली के भविष्य से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह चुनावी जीत का सबसे आसान तरीका है। केजरीवाल की इस रणनीति को दिल्लीवासियों का समर्थन भी मिल रहा है जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
फ्री बिजली, फ्री पानी, फ्री शिक्षा, फ्री स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता एक अच्छी नीति है, सैद्धांतिक रूप से सरकार का आदर्श यही होना चाहिए कि गरीब से गरीब व्यक्ति को उच्चस्तरीय सुविधा मिले, लेकिन सिद्धांत और वास्तविकता में अंतर होता है। आदर्श के लिए भविष्य को दांव पर नहीं लगाया जा सकता। ऐसे फ्री योजनाओं का क्या लाभ, जो शहर को रहने लायक न छोड़ें, जिसके कारण 10-20 सालों में ही ऐसे हालात पैदा हो जाएं कि पलायन ही एकमात्र मार्ग बचे। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिल्लीवासियों का मुफ्त सुविधाओं के प्रति लगाव ऐसे ही बना रहा तो कुछ वर्षों में यह दिल्ली को रहने लायक नहीं छोड़ेगा।