खालिस्तानियों और ड्रग माफिया को काबू में करने के लिए अमरिंदर सिंह को हमेशा याद किया जाएगा

पिछले छह महीने के राजनीतिक ड्रामे को छोड़ दें, तो अमरिंदर सिंह ने हमेशा ही पंजाब के हक़ में काम किया है

पंजाब की राजनीति में यदि मुद्दों की बात करें, तो पहला है ड्रग माफिया और दूसरा खालिस्तानियों की अराजकता। ड्रग्स के जरिए जहां पंजाब के युवाओं का भविष्य अंधकारमय हो रहा था, तो वहीं खालिस्तानियों के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा एवं संप्रभुता पर खतरा मंडराता था, किन्तु 90 के दशक के बाद अगर इन दोनों ही मुद्दों पर कोई राजनेता सर्वाधिक मुखर रहा है, तो कांग्रेस नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह ही हैं। यही कारण है कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर उन्होंने एक विशेष छवि बनाई है। खालिस्तानियों को लताड़ लगाने से लेकर उन्हें प्रतिबंधित करना हो या नशे के कारोबार पर हंटर चलाना, कैप्टन अमरिंदर सदा इन दो सबसे लोकप्रिय अभियानों के लिए याद किए जाएंगे।

आत्मसम्मान से नहीं किया समझौता

पंजाब की राजनीति में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी कोई परेशानी है, तो वो कैप्टन अमरिंदर सिंह ही हैं, क्योंकि वो पार्टी आलाकमान की बातों से अलग हट, एक सशक्त नेतृत्वकर्ता की तरह सरकार चलाते हैं। यही कारण है कि सोनिया गांधी से कहीं ज्यादा नफ़रत कैप्टन के प्रति राहुल गांधी में है क्योंकि कैप्टन ने ही उन्हें पीएम उम्मीदवार के रूप में सही नहीं बताया था। उसके बाद से ही शुरू हुई कैप्टन को बर्बाद करने की तैयारी की गई थी। संभवतः इसी कारण से नवजोत सिद्धू जैसे नौसिखिए नेता कम नौटंकीबाज को पंजाब का प्रदेश अध्यक्ष का पद दिया गया। इसका मुख्य उद्देश्य कैप्टन को नीचा दिखाकर अपमानित करना करना था। नतीजा ये कि बार-बार अपमानित होने पर कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस को ही झटका देते हुए चुनाव से ठीक 6 पहले इस्तीफा दे दिया है।

खालिस्तान विरोधी अमरिंदर

भले ही कांग्रेस द्वारा अपमानित करने के कारण कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सीएम पद छोड़ दिया हो, किन्तु उनका कद पंजाब की राजनीति में कांग्रेस से कहीं ज्यादा बड़ा है। ये कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि कांग्रेस जब पूरे देश में बर्बादी की अवस्था में थी, तो पार्टी को मजबूत करने का काम पंजाब में कैप्टन ने ही किया था। कैप्टन का कद राजनीतिक दल से इतर निजी तौर पर बहुत बड़ा है। भले ही वो कांग्रेस में रहे, भाजपा में जाएं या राजनीति छोड़ें, उनकी छवि एक राष्ट्रवादी नेता की रहेगी, जिसने राष्ट्र के मुद्दे पर दलगत राजनीति को कभी भाव तक नहीं दिया। पंजाब जो खालिस्तानी आंदोलन के कारण पिछले 50- सालों से अराजकता का पर्याय रहा है, उस राज्य में खालिस्तानियों का विरोध करते हुए शासन न केवल शासन करना अपितु खालिस्तान समर्थकों पर कार्रवाई करना कैप्टन की सबसे बड़ी उपलब्धि है।

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एक तरफ जहां आज आम आदमी और शिरोमणि अकाली दल जैसी पार्टियां हैं जो वोटों के लिए खालिस्तानियों से समर्थन लेने के लगातार प्रयास करती रही है, इसके विपरीत कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खालिस्तानियों की नींदें उड़ा रखी हैं। कनाडाई राष्ट्रपति जस्टिन ट्रुडो को खुलेआम खालिस्तानी समर्थक कहने की ताकत किसी और के पास नहीं अपितु कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास ही थी। यही कारण है कि उन्होंने जस्टिन ट्रूडो की 2019 की भारत यात्रा पर उनसे मुलाकात नहीं की थी। कैप्टन का कहना था कि ट्रूडो की कैबिनेट में सारे खालिस्तानी हैं। इसके अलावा खालिस्तानी संगठन सिख फॉर जस्टिस के प्रतिबंध का ही उन्होंने मुखरता से समर्थन किया था। कैप्टन ने अपने पहले कार्यकाल में भी खालिस्तान विरोधी ऑपरेशंस को छूट दे रखी थी, और कुछ ऐसा ही पिछले पांच वर्षों के दौरान भी किया, क्योंकि खालिस्तानियों के कारण पूरे पंजाब की छवि को नुक़सान हो रहा था।

ड्रग्स माफिया का अंत

पंजाब की राजनीति में पिछले दस वर्षों में सर्वाधिक कोई मुद्दा उछला है, तो वो ड्रग्स यानी नशे का ही है। शिरोमणि अकाली दल के साथ सरकार चला रही भाजपा को भी ड्रग्स माफिया के जिन्न ने डसा। नतीजा ये कि 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा-अकाली गठबंधन की तगड़ी हार हुई। कैप्टन ने पंजाब में ड्रग्स की बयार चला रहे सरकार में बैठे नेताओं को भी लपेटे में लिया, जिसमें अकाली परिवार के बिक्रम सिंह मजीठिया का नाम भी था। 2017 में सत्ता में आने के बाद कैप्टन ने पंजाब के इस नशे के कारोबार को तगड़ा झटका दिया। नशे के जरिए पैसा बना रहे नेताओं को भी निशाने पर लेने वाले अमरिंदर सिंह ने मजीठिया को भी नहीं बख्शा। आज की स्थिति ये है कि पिछले चार सालों के प्रयास के चलते ये माना जाने लगा है, पंजाब अब धीरे-धीरे ड्रग्स माफिया से मुक्त हो रहा है।

कैप्टन अच्छे से जानते हैं कि नशे का जो कारोबार फला-फूला है उसकी वजह पाकिस्तान ही है। यही कारण है कि सीमाओं पर बीएसएफ के साथ सहयोग कर उन्होंने पंजाब को नशामुक्त करने के अभियान चलाए।  इसके विपरीत सिद्धू का पार्टी का कद बढ़ने पर उन्हें सर्वाधिक चिंता इसी बात की है, कि सिद्धू पाकिस्तान के प्रति सख्त नहीं होंगे। ऐसे में पाकिस्तान से न केवल गोला-बारूद का इम्पोर्ट एक्स्पोर्ट आसान हो सकता है, बल्कि नशे का धंधा भी खूब फल-फूल सकता है। यही कारण है कि सिद्धू को प्रो पाकिस्तानी बताते हुए कैप्टन ने उनके विरुद्ध अभियान चलाने की बात कह दी है।

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एक सशक्त राजनेता

कैप्टन ने कभी राष्ट्रवादी नीति के साथ लेश मात्र भी समझौता नहीं किया। यही कारण है कि पंजाब से लेकर देश की राजनीति में उनकी छवि कांग्रेस से हटकर एक बड़े नेता की बनी। सर्जिकल स्ट्राईक से लेकर एयर स्ट्राइक समेत अनेकों मुद्दों पर मोदी सरकार का समर्थन कर कैप्टन ने पार्टी लाइन से अलग लाइन ली। नतीजा ये कि वो कांग्रेस में पार्टी से इतर एक बड़े राजनेता बन गए ‌हैं‌, जिसके चलते ये कहा जा रहा है कि कांग्रेस को कैप्टन अमरिंदर सिंह की नाराज़गी से नुकसान हो सकता है। वहीं कैप्टन के सामने राजनीतिक विकल्पों को लेकर सकारात्मकता ही है।

ऐसे में ये कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने अपनी गलतियों के कारण अपने एक बड़े राजनेता को चुनाव के 6 महीने पहले अपमानित कर अपने कुल्हाड़ी मारी है, जो बहुत भारी पड़ने वाली है l हालांकि, कैप्टन अमरिंदर राजनीतिक इतिहास में कांग्रेसी या किसी भी दल के नहीं अपितु एक राष्ट्रवादी नेता के रूप में देखें जाएंगे

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