लता मंगेशकर घृणा से भरे फिल्म उद्योग में आगे भी बढीं और वीर सावरकर का गुणगान भी किया

जिस उद्योग में एक संस्कृति और एक धर्म के विरुद्ध असीमित, अनंत घृणा रही, वहाँ धारा के विरुद्ध बहकर भी लता मंगेशकर ने अपने करियर को यथावत रखा और अपनी संस्कृति की रक्षा भी की।

लता मंगेशकर सावरकर

‘नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा, मेरी आवाज़ ही पहचान है’

‘अजीब दास्तान है यह, कहाँ शुरू कहाँ खत्म, यह मंज़िलें हैं कौन सी, न वो समझ सकें न हम!’

कुछ ऐसे ही कर्णप्रिय गीतों से हमें मोहित कर देने वाली ‘सुर साम्राज्ञी’ लता मंगेशकर का आज 93वां जन्मदिवस है। भारत रत्न से सम्मानित इस सुप्रसिद्ध गायिका ने अपना करियर 1942 में प्रारंभ किया और वे अब तक विश्व में 36 भाषाओं में 50,000 से भी अधिक गीतों को अपना मधुर स्वर प्रदान कर चुकी है। परंतु जिस उद्योग में एक संस्कृति और एक धर्म के विरुद्ध असीमित, अनंत घृणा रही, वहाँ धारा के विरुद्ध बहकर भी लता मंगेशकर ने अपने करियर को यथावत रखा और अपनी संस्कृति की रक्षा भी की; जिस उद्योग में भारत के पक्ष मात्र में बोलने के लिए ही बड़े से बड़े एक्टर्स एवं गायकों को वामपंथी गैंग ‘कैन्सल’ कर देते हो, वहाँ लता मंगेशकर आज भी विनायक दामोदर सावरकर जैसे प्रख्यात एवं ओजस्वी क्रांतिकारी को आयुपर्यंत अपना समर्थन देती आई हैं।

विनायक दामोदर सावरकर को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं। एक जीवट क्रांतिकारी होने के साथ-साथ वे हिन्दुत्व विचारधारा के जनक भी थे। उनके नाम मात्र से आज भी देश के वामपंथी कंपायमान हो जाते हैं। आज भी इस बात का भरपूर प्रयास किया जाता है कि कैसे भी करके वीर सावरकर और देश के प्रति उनके योगदानों को इतिहास से मिटा दिया जाए।

लता मंगेशकर और वीर सावरकर से उनके परिवार के संबंध

लेकिन लता मंगेशकर पर वामपंथियों के इस अनर्गल प्रलाप का कोई असर नहीं पड़ा। वे न केवल वीर सावरकर का सम्मान करती थी, अपितु उनके परिवार के संबंध वीर सावरकर व उनके परिवार के साथ बेहद घनिष्ठ थे। हर वर्ष लता मंगेशकर उनके जन्मदिवस यानि 28 मई और उनके मृत्युदिवस यानि 26 फरवरी पर उनका स्मरण करती थीं।

हर वर्ष करती हैं वीर सावरकर की स्तुति

इसी वर्ष वीर सावरकर के जन्मदिवस के शुभअवसर पर लता मंगेशकर ने ट्वीट किया था, “नमस्ते, आज वीर सावरकर जी का जन्मदिवस है, जो भारत माँ के एक सच्चे सुपुत्र थे, एक देशभक्त थे एवं मेरे लिए पिता समान थे। मैं उन्हें नमन करती हूँ”। बता दें कि जीवन भर लता मंगेशकर उन्हें ‘तात्या’ के उपनाम से संबोधित करती थीं, जो मराठी में पिता या पिता समान संबंध के लिए उपयोग में लाया जाता है।

ऐसे ही उनकी पुण्यतिथि पर लता जी ने ट्वीट किया, “आज वीर सावरकर जी की पुण्यतिथि है। मंगेशकर परिवार में हम सभी उन्हे नमन करते हैं”।

जैसा कि अभी बताया था कि वीर सावरकर के मंगेशकर, विशेषकर लता मंगेशकर और उनके पिता एवं नाट्य कलाकार दीनानाथ मंगेशकर के साथ घनिष्ठ संबंध थे। ऐसे में वीर सावरकर की जयंती पर उन्होंने वीर सावरकर द्वारा रचित गीत शत जन्म शोधितन को शेयर किया, जो उन्होंने दीनानाथ के नाटक सन्यास्त खड़ग के लिए लिखा था।

लता मंगेशकर ने ट्वीट किया, “वीर सावरकर जी और हमारे परिवार के बहुत घनिष्ठ संबंध थे, इसीलिए उन्होंने मेरे पिता की नाटक कंपनी के लिए नाटक ‘सन्यास्त खड़ग’ लिखा था। इस नाटक का पहला प्रयोग 18 सितंबर 1931 को हुआ था, इस नाटक में से एक गीत बहुत लोकप्रिय हुआ”।

वीर सावरकर – एक ओजस्वी क्रांतिकारी

एक स्वतंत्रता सेनानी, एक राष्ट्रवादी, चिंतक, लेखक एवं कवि, ‘स्वातंत्र्यवीर’ विनायक दामोदर सावरकर करोड़ों भारतीयों के लिए एक आदर्श प्रेरणास्त्रोत हैं। उनका प्रभाव और व्यक्तित्व ऐसा था कि अंग्रेज़ों ने केवल उनके वक्तव्य के पीछे उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाकर उन्हें अंडमान के सेल्युलर जेल यानि कालापानी भेज दिया, जहां दस वर्ष तक उन्हें असंख्य यातनाएँ झेलनी पड़ीं। कई वर्षों तक उन्हें इस बात का भी आभास नहीं था कि उनके ज्येष्ठ भ्राता, गणेश दामोदर सावरकर उर्फ बाबाराव भी उसी जेल में बंद है।

10 वर्ष तक भीषण यातनाएँ झेलने के पश्चात विनायक दामोदर सावरकर को आखिरकार रत्नागिरी के जेल में ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम के एमनेस्टी ऑर्डर के अंतर्गत स्थानांतरित किया गया, जहां उन्हे तीन वर्ष तक और कारावास झेलना पड़ा, और फिर जाकर 1924 में उन्हे जेल से मुक्ति मिली। परंतु राजनीतिक रूप से वे 1937 से पूर्व तक नहीं सक्रिय हो पाए थे।

अब रोचक बात तो यह है कि जिस एमनेस्टी ऑर्डर के अंतर्गत विनायक सावरकर को रत्नागिरी जेल भेजा गया, वो मोहनदास गांधी और महामना मदन मोहन मालवीय के अनुरोध पर हुआ था। तो क्या विपक्ष के तर्कों के अनुसार, मोहनदास गांधी और महामना मदन मोहन मालवीय भी देशद्रोही थे? यही नहीं, जब वीर सावरकर की जन्मशती की तैयारी हो रही थी, तो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने न केवल आयोजकों का आभार जताया, अपितु वीर सावरकर के लिए 1970 के दशक में डाक टिकट भी निकलवाए। तो क्या वे भी देशद्रोही थी?

वीर सावरकर जैसे ओजस्वी क्रांतिकारी ने न केवल देश में स्वतंत्रता का नारा बुलंद किया, अपितु सांप्रदायिकता के वैमनस्य के विरुद्ध जनता को सचेत करने का प्रयास भी किया। ऐसे व्यक्ति को अपना समर्थन देकर भी बॉलीवुड जैसे हिन्दू विरोधी संस्था में फलना फूलना कोई मज़ाक का विषय नहीं है, और ऐसा सिद्ध करके लता मंगेशकर जी ने एक अनुपम उदाहरण पेश किया है।

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