“अपना फोन कूड़े में फेंको”, लिथुआनिया ने अपने नागरिकों को चीनी फोन ना खरीदने की सलाह दी

भारत को भी इस कदम का अनुसरण करते हुए चीन के प्रति अपने पूर्ववर्ती कठोर रुख पर कायम रहना चाहिए!

लिथुआनिया चीनी फोन

अगर शासक निरंकुश, अलोकतांत्रिक और तानाशाह है तो निश्चित ही उद्योग उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और विस्तारवाद का साधन होगा। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी, डच ईस्ट इंडिया कंपनी और फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी इस बात का ऐतिहासिक उदाहरण रहे हैं। वैश्वीकरण और आर्थिक उन्नति के इस दौर में यह सिद्धांत और भी प्रासंगिक हो जाता है। वैश्विक संस्थानों, संगठनों, साझेदारों तथा दबाव के कारण सैन्य और सामरिक विकल्प सीमित हो जाते हैं। अतः चीन ने नई रणनीति अपनाते हुए अपने अर्थ तंत्र और उद्योगों को अपने विस्तारवादी महत्वकांक्षी को पूरा करने का साधन बना लिया है। सोशल मीडिया से लेकर तकनीक तथा राजनीति से लेकर कूटनीति तक, चीन ने साम-दाम-दंड-भेद-छल-बल-द्वंद-द्वेष की सर्वविधि से बिना सीमा पार किए एक राष्ट्र को परतंत्र बनाने की सतत कोशिश की है। इसका सबसे नवीन उदाहरण लिथुआनिया के संदर्भ में देखने को मिलता है। यूरोप महाद्वीप का एक छोटा देश लिथुआनिया ने चीन को उसकी औकात दिखा दी है। लिथुआनिया के रक्षा मंत्रालय ने अपने नागरिकों और उपभोक्ताओं को चीनी मोबाइल फोन को फेंक देने और ना खरीदने की सलाह दी है।

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इसका दुनिया भर में चीन के स्मार्टफोन उद्योग पर संभावित प्रभाव पड़ेगा। लिथुआनिया सरकार के इस निर्णय ने चीन की निरंकुश साम्यवादी सरकार को शर्मिंदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। एक सरकारी रिपोर्ट में पाया गया कि उपकरणों में अंतर्निहित सेंसरशिप क्षमताएं थीं। चीनी फोन और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की सुरक्षा के बारे में दुनिया भर में चिंताएं बढ़ रही हैं। वास्तव में चीनी कंपनियों से संबंधित उत्पादों में उपभोक्ताओं की गोपनीयता दांव पर है।

चीन की कई कंपनियों पर डेटा लीक करने का आरोप

रॉयटर्स ने बताया कि चीन के स्मार्टफोन दिग्गज Xiaomi द्वारा यूरोप में बेचे जाने वाले फ्लैगशिप फोन में “फ्री तिब्बत”, “लॉन्ग लिव ताइवान इंडिपेंडेंस” या “डेमोक्रेसी मूवमेंट” जैसे शब्दों का पता लगाने और सेंसर करने की अंतर्निहित क्षमता है। लिथुआनिया द्वारा संचालित साइबर सुरक्षा निकाय ने मंगलवार को कहा- “हमारी सिफारिश है कि नए चीनी फोन न खरीदें और पहले से खरीदे गए फोन से जल्द से जल्द छुटकारा पाएं।”  नेशनल साइबर सिक्योरिटी सेंटर ने कहा कि Xiaomi के Mi 10T 5G फोन सॉफ्टवेयर में सेंसरशिप क्षमता “यूरोपीय संघ क्षेत्र” के लिए बंद कर दी गई थी लेकिन इसे किसी भी समय दूरस्थ रूप से चालू किया जा सकता है।

लिथुआनिया के साइबर सुरक्षा निकाय ने यह भी कहा कि Xiaomi जैसे कई चीनी फोन सिंगापुर में एक सर्वर पर एन्क्रिप्टेड फोन उपयोग का डेटा भेज रहे थे। इसके अलावा चीन के हुआवेई द्वारा निर्मित P40 5G फोन में एक सुरक्षा दोष भी पाया गया। लिथुआनिया का कहना है कि डिफ़ॉल्ट इंटरनेट ब्राउज़र सहित Xiaomi फोन के सिस्टम ऐप द्वारा सेंसर किए जा सकने वाले शब्दों और वाक्यांशों की सूची में वर्तमान में चीनी में 449 शब्द शामिल हैं और इसे निरंतर अपडेट किया जाता है।

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चीन के खिलाफ लिथुआनिया का ताइवान कार्ड

जैसा कि जुलाई में TFI ने एक रिपोर्ट में बताया था कि लिथुआनिया ने अपनी राजधानी विन्यास में एक “ताइवान प्रतिनिधि कार्यालय” स्थापित करने का निर्णय लिया था। इस कदम के साथ लिथुआनिया दुनिया भर की राजधानियों में ताइपे द्वारा खोले गए प्रतिनिधि कार्यालयों या वास्तविक दूतावासों में ‘ताइवान’ शब्द का उपयोग करने वाला यूरोप का पहला देश बन गया था। दिलचस्प बात यह है कि ताइवान के प्रतिनिधि कार्यालयों को आमतौर पर “ताइपे प्रतिनिधि कार्यालय” के रूप में नामित किया जाता है।

लिथुआनिया के आर्थिक और नवप्रवर्तन मंत्री Aušrinė Armonaitė ने अक्टूबर या नवंबर में ताइवान में एक लिथुआनियाई व्यापार कार्यालय खोलने की उम्मीद जताई है। लिथुआनिया ताइवान के साथ अपने संबंधों को बढ़ाते हुए रणनीतिक रूप से चीन से अलग हो रहा है और अन्य यूरोपीय देशों का चीन नीति पर पथ प्रदर्शन भी कर रहा है। लिथुआनिया इस साल मई में 17+1 सहयोग तंत्र से पीछे हट गया, जिसमें चीन और मध्य और पूर्वी यूरोपीय देश शामिल हैं। लिथुआनिया के अनुसार यह प्रस्ताव यूरोपीय संघ को भंग कर देगा।

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चीन स्मार्टफोन के खिलाफ भारत की जंग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने चीनी फोन ब्रांडों को उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता और सुरक्षा से समझौता करने और चीन में हैंडलर को संवेदनशील भारतीय डेटा लीक करने की संभावना से सहमत है। ये चीनी साम्यवादी सत्ता की आर्थिक साम्राज्यवाद के सपने पूरे करने के साधन है। इसके अलावा, चीनी फोन ब्रांड वास्तव में भारतीय बाजार पर अपनी गंदी-सस्ती पेशकशों के साथ एकाधिकार स्थापित करते जा रहे थे। खासकर गैर-चीनी ब्रांडों के लिए यह प्रतिस्पर्धा अत्यंत खराब साबित हो रहा था।

इसीलिए पिछले साल भारत ने हैंडसेट के लिए माल और सेवा कर की दरों में बढ़ोत्तरी की।  इसके परिणामस्वरूप चीनी फोन अब भारत में तुलनात्मक रूप से उतना सस्ता नहीं रहा। सरकार का यह कदम आने वाले सालों में चीनी कंपनियों के मोबाइल की बिक्री को प्रभावित करेगा। साथ ही भारतीय उपभोक्ताओं को गैर-चीनी ब्रांडों को पसंद करने के लिए प्रेरित भी करेगा, क्योंकि उनके और चीनी ब्रांडों के बीच मूल्य अंतर कम होगा। अतः आने वाले सालों में चीनी स्मार्टफोन ब्रांडों द्वारा संचयी नुकसान महसूस किया जाएगा।

जल्द ही समाप्त होगा चीन का वर्चस्व

 चीनी फोन के खिलाफ लिथुआनिया का हमला एक ऐसे अनिश्चित समय में आया है, जब यह दुष्ट देश अर्धचालक की अभूतपूर्व कमी से जूझ रहा है। चीन के लिए अर्धचालक (Semiconductor) एक अनिवार्य उत्पाद हैं। अर्धचालक किसी भी उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स और प्रौद्योगिकी उपकरण का सबसे आवश्यक हिस्सा हैं। हालांकि, चीन अर्धचालक की अपनी बढ़ती मांग को बनाए रखने के लिए पूरी तरह से आयात पर निर्भर है।

दरअसल, अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बाद से चीन के चिप उद्योग ने एक हिट लिया है कि वो “हुआवेई के अर्धचालकों के अधिग्रहण को संकीर्ण और रणनीतिक रूप से लक्षित करेगा।” साथ ही ट्रम्प ने अपने कार्यकाल में चीन के सबसे बड़े सेमीकंडक्टर निर्माता “सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग इंटरनेशनल कॉरपोरेशन” (SMIC) को ब्लैकलिस्ट कर दिया था। जिसने चीन के अर्धचालक उद्योग को प्रभावी रूप से पंगु बना दिया। अब क्वाड- जो एक साथ दुनिया में सभी चिपमेकिंग क्षमता का 30 प्रतिशत से अधिक का निर्माता है, अर्धचालक आपूर्ति को लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ जोड़ने पर जोर दे रहा है। यह चीन और उसकी अर्थव्यवस्था के वर्चस्व को समाप्त करेगा।

जैसा कि दुनिया को पता चल रहा है कि चीनी फोन वास्तव में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा दुनिया भर के लोगों की जासूसी करने के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरण हैं। ऐसे में आने वाले सालों में लाल झंडेवाले इस देश की अर्थव्यवस्था को और गिरावट का सामना करना पड़ेगा। लिथुआनिया ने शायद चीन के ताबूत में पहली कील ठोक दी है। भारत को भी इस कदम का अनुसरण करते हुए चीन के प्रति अपने पूर्ववर्ती कठोर रुख पर कायम रहना चाहिए।

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