मैडम भीकाजी कामा– वह वीरांगना जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता की ज्योति विदेश में भी प्रज्वलित की

वीर सावरकर को लंदन में हिरासत में लिया गया था पर उस दौरान उन्हें बचाने के लिए भी मैडम कामा ने प्रयत्न किया था!

मैडम भीकाजी कामा

इतिहास ऐसे अनेक वीरों और वीरांगनाओं से भरा हुआ है, जिन्होंने माँ भारती को स्वतंत्र करने हेतु अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया, परंतु कुछ तुच्छ व्यक्तियों के महिमामंडन में हम उन वास्तविक नायकों को तो भूल ही गए, जिन्होंने वास्तव में भारत की स्वतंत्र में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया। हमें वामपंथी छाती पीट-पीट कर गांधी और नेहरू की विरुदावली सुनाते हैं, परंतु अपने ही विचारधारा के भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की सम्पूर्ण क्रांतिकारी सेना का गुणगान करने में उन्हें सांप सूंघ जाता है। हमारे वामपंथी इतिहासकार हमें ये जताना चाहते हैं कि नेहरू के बिना भारत की स्वतंत्रता लगभग असंभव थी, परंतु वे विनायक दामोदर सावरकर और मैडम भीकाजी कामा जैसे लोगों पर मौन व्रत धारण कर लेते हैं, जिन्होंने वास्तव में भारत की स्वतंत्रता हेतु हर प्रकार का जोखिम उठाया था।

मैडम भीकाजी कामा पटेल का जन्म बॉम्बे प्रेसिडेंसी के नवसारी क्षेत्र में 24 सितंबर 1861 में एक सम्पन्न पारसी परिवार में हुआ था। उन्होंने अलेक्सांद्रिआ गर्ल्स इंग्लिश इन्स्टिट्यूशन में दीक्षा ली, जिसके पश्चात उनका विवाह समाजवादी सुधारक के रुस्तम कामा के अधिवक्ता पुत्र, रुस्तम कामा से हुआ था।

परंतु मैडम भीकाजी कामा की रुचि प्रारंभ से ही राजनीति में थी। उन्होंने समाजसेवा में ही अपना अधिकतम जीवन व्यतीत किया, और इसी बीच 1897 में जब प्लेग की महामारी दुनिया भर में फैली, तो बॉम्बे प्रेसिडेंसी में इसका असर सर्वाधिक पड़ा। राहत कार्य में लगी मैडम कामा भी इससे संक्रमित हुईं, परंतु ईश्वर की कृपा से वे इससे उबर भी गई। हालांकि इस बीमारी से उत्पन्न कमजोरी से उबरने उन्हें यूरोप भेजा गया। वह 1902 तक स्वस्थ हो चुकी थी, और भारत आने को तैयार भी थी, परंतु उनके भाग्य में कुछ और ही तय था।

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मैडम भीकाजी कामा की बातचीत 1904 में प्रख्यात विचारक एवं क्रांतिकारी श्यामजी कृष्णवर्मा से हुई, जिनके व्यक्तित्व और उनके वक्तव्य से वे काफी प्रभावित हुई। श्यामजी कृष्णवर्मा ने अपने कुछ साथियों और राष्ट्रवादी भारतीयों के साथ मिलकर यूके में इंडिया हाउस की स्थापना की, जहां पर विचारों का स्वस्थ आदान प्रदान हो सके। मैडम कामा समाजवादी अवश्य थी, परंतु वामपंथी नहीं थी। जब व्लादिमिर लेनिन ने उन्हें सोवियत यूनियन में शरण लेने का प्रस्ताव दिया, तो उन्हे स्पष्ट तौर पर मना कर दिया

इंडिया हाउस में ही मैडम भीकाजी कामा का परिचय दो ओजस्वी व्यक्तियों से भी हुआ। एक थे अभियांत्रिकी के विद्यार्थी, और अमृतसर से आने वाले युवा राष्ट्रवादी मदन लाल ढींगरा। दूसरे थे अविश्वसनीय वक्तव्य और ज्ञान के धनी, एवं वीर मराठा भूमि से संबंध रखने वाले, नाशिक से संबंध रखने वाले बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर।

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ये मैडम भीकाजी कामा ही थी, जिन्होंने विदेश में भी स्वतंत्र भारत के लिए एक सुनियोजित अभियान चलाया। 1907 में जर्मनी के स्तुटगार्ट में आयोजित सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस में मैडम कामा ने भारत का प्रतिनिधित्व किया, और वहाँ प्रथम बार, उन्होंने भारत का ध्वज फहराया, जिसमें तीन रंग थे, जो भारत की विविधता का प्रतीक था, और बीच में वन्दे मातरम का नारा अंकित था। ये मैडम कामा ही थी जिन्होंने विदेश में रहकर भी इस बात को सुनिश्चित किया कि भारतवंशियों में देश के लिए मातृत्व की भावना कम न हो। जब अँग्रेज़ों को आभास हुआ, तो उन्होंने मैडम कामा पर भारत में घुसने पर प्रतिबंध लगाने की धमकी दी, जिस पर मैडम कामा ने तुरंत फ्रांस की ओर अपने कदम बढ़ाए, जो वैचारिक तौर पर इंग्लैंड का उतना पक्षधर नहीं था, जितना इंग्लैंड विश्वभर में जताता था।

परंतु मैडम भीकाजी कामा के जीवन में दुर्भाग्य का भी एक क्षण था – यदि वह तनिक शीघ्रता से मारसेल्स के तट पर आई होती, तो शायद भारत का इतिहास कुछ और भी हो सकता था। असल में भारत में नाशिक में कलेक्टर जैक्सन की हत्या को लेकर अनंत लक्ष्मण कनहेरे को ब्रिटिश सरकार ने हिरासत में लिया। इसके साथ ही उन्होंने विनायक दामोदर सावरकर पर अनंत को अपने लेखों के जरिए कलेक्टर जैक्सन की हत्या के लिए उकसाने के लिए आरोप भी लगाया, जिसका सावरकर से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था।

इसी कारण से सावरकर को लंदन में हिरासत में लिया गया, और उन्हें समुद्री जहाज़ के रास्ते भारत ले जाया जा रहा था, परंतु वे बीच रास्ते में ही खिड़की के बीच में से समुद्र में कूद पड़े। उन्होंने एक पत्र के जरिए मैडम कामा को पहले ही सूचित कर दिया कि वे मारसेल्स के तट पर उतारने वाले हैं। परंतु दुर्भाग्यवश मैडम कामा की गाड़ी देर से पहुंची, और वीर सावरकर हिरासत में ले लिए गए।(1)

अब कल्पना कीजिए, यदि वीर सावरकर सकुशल मैडम कामा के पास पहुँच जाते, और वे अंग्रेज़ों के गिरफ्त में आने से बच जाते, तो वे कुछ ऐसा भी कर सकते थे, जिससे हमें समय से पूर्व स्वतंत्रता मिल सकती थी। परंतु इसके बाद भी जो मैडम भीकाजी कामा ने हमारे देश के लिए किया, उसके लिए हम आयुपर्यंत उनके आभारी रहेंगे।

1. Source : Savarkar –Echoes from a Forgotten Past –Vikram Sampath]

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