केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने हाल ही में खुलासा किया कि वह एक सामान्य मरीज के भेष में सफदरजंग अस्पताल गए थे तब गेट पर एक सुरक्षा गार्ड ने उन्हें धक्का दिया। उन्होंने कहा कि वह अस्पताल की वास्तविक स्थिति को जानने के लिए अस्पताल गए थे। जागरण डॉट कॉम की रिपोर्ट के अनुसार, गुरुवार को सफदरजंग अस्पताल में चार स्वास्थ्य सुविधाओं के उद्घाटन के दौरान उन्होंने इस बात का खुलासा किया।
मांडविया ने कहा कि एक सामान्य रोगी के रूप में औचक दौरे के दौरान जब उन्होंने एक बेंच पर बैठने की कोशिश की, तो उन्हें वहां न बैठने की हिदायत दी गई और साथ ही एक सुरक्षा गार्ड द्वारा डांटा गया और मारा गया।
उद्घाटन समारोह में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने अस्पताल की स्थिति पर अपना वक्तव्य दिया। मनसुख मांडविया ने कहा कि कई रोगियों को अस्पताल में स्ट्रेचर और अन्य चिकित्सा सहायता प्राप्त करने में समस्या का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने एक 75 वर्षीय महिला का उदाहरण दिया जो गार्ड से अपने बीमार बेटे के लिए स्ट्रेचर लाने की गुहार लगा रही थी लेकिन उसे नहीं मिला।
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एक ही सिक्के के दो पहलू हैं अस्पताल और मेडिकल स्टाफ
गार्ड के व्यवहार से नाखुश स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने पूछा कि अस्पताल में 1500 गार्ड तैनात होने के बावजूद एक भी गार्ड ने बुजुर्ग महिला की मदद क्यों नहीं की? मांडविया ने अपने संबोधन में पैरामेडिक्स और अन्य स्टाफ को उनकी भूमिका याद दिलाई। मनसुख मांडविया ने कहा कि अस्पताल और मेडिकल स्टाफ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और उन्हें एक टीम के रूप में काम करना चाहिए।
मांडविया ने कहा कि उन्होंने सफदरजंग की घटना की जानकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दी, जो यह सुनकर काफी व्यथित हुए और पूछा कि गार्ड को निलंबित किया गया या नहीं? जिस पर मांडविया ने स्पष्ट किया कि गार्ड को सस्पेंड नहीं किया गया है, क्योंकि वह सिर्फ एक व्यक्ति नहीं बल्कि व्यवस्था को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं।
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मर्यादा पुरुषोतम राम ने भी किया था ऐसा
हालांकि, मनसुख मांडविया ने जो किया वो भारतीय परंपरा को प्रदर्शित करता है। भारत में राजा को प्रजा के पितातुल्य माना गया है। प्राचीन भारत में ऐसी परंपरा बहुत ज्यादा प्रचलित थी जब राजा अपनी प्रजा का हाल लेने के लिए भेष बदलकर या किसी बहरूपिये का रूप धारण कर जनता के बीच जाते थे। ऐसी प्रथा के पीछे एक राजा का प्रजा प्रेम और कुशल प्रशासनिक संचालन दोनों ही बड़े कारण थे। ऐसा विरले उदाहरण सिर्फ भारत में ही देखने को मिलता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम तो प्रायः ऐसा करते थे। अपने इस पुनीत स्वभाव से ही उन्होने सीता के प्रति प्रजा का मत जाना। राजा भोज भी इसके बहुत बड़े उदाहरण हैं। कहा जाता है कि वह अपनी प्रजा को खुश रखने की हर मुमकिन कोशिश करते थे और समय-समय पर भेष बदलकर स्थिति का जायजा लेने के लिए जनता के बीच पहुंच जाते थे। सम्राट विक्रमादित्य के संदर्भ में राजा का ऐसा आचरण तो जन-जन के मानस पटल पर अमिट रूप से अंकित है।
विक्रमादित्य का ही उपनाम धारण करने वाले गुप्त वंश के चौथे राजा समुद्रगुप्त ने उनके आचरण और प्रजा के प्रति प्रेम को भी आत्मसाध किया। भारतीय राजा अपनी प्रजा का दु:ख दर्द जानने के लिए प्रायः ऐसे कार्य किया करते थे और करने भी चाहिए क्योंकि एक राजा के चारों ओर ऐसे बहुत से लोग होते है जो उन्हें वास्तविकता से दूर रखते है। शायद, इसीलिए लोकतान्त्रिक प्रणाली में भी अपने संस्कृतिक विरासत से प्रेरणा लेते हुए मनसुख मांडविया ने अस्पताल का औचक निरक्षण किया था। उन्हें इसका फल भी मिला, वह जमीनी हकीकत और जनता की परेशानियों से रुबरु हुए। वो कहते है ना- ‘जाके पाँव न फटे बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई।‘ जनता के दर्द को खुद के माध्यम से समझ चुके मनसुख मांडविया से अब और तीव्र प्रयास की अपेक्षा है। उन विपक्षियों और जनप्रतिनिधियों से भी है ऐसा ही आचरण अपेक्षित है ताकि बेहतर लोकतंत्र का निर्माण हो सके।