मूल कारण को जाने बिना लिया गया निर्णय हमेशा ही परेशानियां खड़ी करता है, और राजनीतिक दल इस तरह के निर्णय लेने में माहिर माने जाते हैं। तमिलनाडु सरकार ने मेडिकल के छात्रों के साथ एक ऐसा ही खिलवाड़ किया है, जो कि उनके लिए ही मुसीबतें खड़ी कर सकता है। नीट परीक्षार्थियों की आत्महत्याओं को लेकर तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने अजीबो-गरीब निर्णय लेते हुए तमिलनाडु में नीट की प्रतियोगी परीक्षा को ही रद्द करने का ऐलान कर दिया है। स्टालिन सरकार इसके लिए विधानसभा में नीट विरोधी विधेयक भी पारित करवा चुकी है। तमिलनाडु में मंहगी शिक्षा से लेकर छात्रों के एडमिशन संबंधी दिक्कतों से इतर केवल नीट परीक्षा को बैन कर स्टालिन ने एक राजनीतिक दांव चला है, लेकिन क्या इससे मूल समस्या समाप्त हो जायेगी?
विपक्ष में बैठे दलों की नीति रही है, कि सरकार द्वारा लिया गया कोई भी निर्णय हो उसका विरोध करेगी, किन्तु इन दलों द्वारा विरोध में लिया गया निर्णय आम व्यक्ति पर कितना भारी पड़ता है; उन्हें इसका पता तक नहीं है। JEE से लेकर नीट तक की परीक्षाओं के मुद्दे पर पिछले वर्ष भी राजनीति हुई थी, और वही स्थिति एक बार फिर बनने लगी है। तमिलनाडु में शासित DMK सरकार ने विधानसभा में नीट परीक्षाओं के रद्द करने के लिए एक प्रस्ताव ही पारित कर दिया है, जिसका समर्थन कर कांग्रेस एवं AIADMK तक ने अपनी जन विरोधी छवि तैयार कर दी है, क्योंकि इसका सीधा नुकसान आम जनता को ही होगा।
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एम के स्टालिन सरकार का तर्क है, कि वो तमिलनाडु में नीट की परीक्षाएं नहीं कराएंगे, एवं तामिलनाडु में मेडिकल के छात्रों का सेलेक्शन उनके इंटरमीडिएट के परिणामों के आधार पर होगा। विपक्ष मे बैठे AIADMK नेता पलानीस्वामी तो अपने गृह जिले सलेम की एक घटना का उल्लेख करने लगे, जहां धनुष नाम के एक छात्र ने आत्महत्या की थी। उनका कहना है कि घनुष ने आत्महत्या केवल इसलिए की क्योंकि वो तैयारी न होने के चलते नीट की परीक्षा नहीं देना चाहता था। उन्होंने मांग की कि नीट की परीक्षाएं रद्द हों। इस बीच भाजपा ने डीएमके सरकार के इस फैसले का तगड़ा विरोध करते हुए सदन से वॉकआउट कर दिया।
वहीं, विधानसभा में धनुष नाम के छात्र का उल्लेख करते हुए जो नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं, उन्हें धनुष की कहानी का कोई अता-पता ही नहीं है। द वीक की रिपोर्ट बताती है, कि धनुष पिछले दो वर्षों से नीट की परीक्षाएं दे रहे थे, एवं निराशा के बावजूद उन्होंने तीसरी बार भी परीक्षा देने का दृढ़ निश्चय कर रखा था, लेकिन उनके मन में हताशा का भाव था, जो उन्हें आत्महत्या की ओर ले गया।
अगर तमिलनाडु में छात्रों की बात करें, तो एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि विफलता के कारण आत्महत्या करने वालों की संख्य़ा तमिलनाडु में महाराष्ट्र के बाद सर्वाधिक है,जिसमें से बड़ी संख्या नीट के छात्रों की बताई जा रही है। अजीबो-गरीब बात ये है कि तमिलनाडु बोर्ड और नीट के परीक्षाओं का पाठ्यक्रम आपस में काफी मेल खाता है। उदाहरण के तौर पर नीट 2020 के प्रश्न पत्र की ही बात करें तो 180 में से 174 प्रश्न ऐसे थे, जो कि तमिलनाडु के 12 वीं के बोर्ड से मेल खाते थे। ऐसे में ये सवाल उठ सकता है कि समान पाठ्य क्रम होने के बावजूद तमिलनाडु के छात्र सर्वाधिक विफल क्यों होते हैं? इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि यहां परीक्षा देने वालों में करीब 59 प्रतिशत छात्र परीक्षा पास कर जाते हैं, किन्तु उनकी मुख्य परेशानी कॉलेज को चुनने में आती है।
तमिलनाडु में नीट प्रवेश परीक्षाओं में बड़ा पैसा खर्च करने के बाद जब बच्चे सफल हो जाते हैं, तो उनके सामने कॉलेज में महंगी फीस देने का भी बोझ होता है, और इस बोझ के कारण उन्हें अगले वर्ष पुनः परीक्षा देनी पड़ती है। अर्थात तमिलनाडु के छात्र नीट की परीक्षा तो पास कर जाते हैं परंतु कॉलेज में एडमिशन की समस्या के कारण वो दोबारा इस परीक्षा को देने के लिए मजबूर हो जाते हैं और असफल होने पर आत्महत्या का मार्ग चुनते हैं। ऐसे में आवश्यक था कि तमिलनाडु सरकार इस समस्या के मूल कारणों पर चोट करे। तमिलनाडु के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सी. विजयभास्कर नैशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट) स्कोर के आधार पर रैंकिंग होने के बाद तमिलनाडु में 85 पर्सेंट एमबीबीएस और बीडीएस सीट तमिलनाडु बोर्ड के छात्रों के लिए आरक्षित कर दी थी फिर भी तमिलनाडु में छात्रों की मुश्किलें कम नहीं हुईं!
वास्तव में तमिलनाडु में मेडिकल कॉलेज तो कई हैं और इनकी संख्या बढ़ाने पर भी काम चल रहा है, परन्तु इनकी एडमिशन फीस भी एक बड़ा कारण है जिससे कई आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से आने वाले छात्र बार-बार नीट की परीक्षा देते हैं तो क्या ये राज्य सरकार की जिम्मेदारी नहीं बनती मेडिकल कॉलेजों की मनमानी पर रोक लगाये? इसके साथ ही नीट की परीक्षा के लिए तैयारी करवाने वाले कोचिंग संस्थानों की मनमानी पर चोट करने की बजाय परीक्षा को ही हटाने का निर्णय राज्य में छात्रों की परेशानी का हल नहीं हो सकता
तमिलनाडु सरकार का कहना है कि अब तमिलनाडु में 12वीं बोर्ड के परिणामों के आधार पर ही मेडिकल कॉलेजों में छात्रों का चयन किया जाएगा। ऐसे में छात्रों पर 12वीं की परीक्षा में सर्वाधिक अंक लाने का दबाव होगा, जो कि आगे जाकर 12 वीं के छात्रों पर और अधिक दबाव बनेगा। सीधे शब्दों में कहा जाए तो एम के स्टालिन सरकार ने नीट की तलवार लगाकर छात्रों पर 12 वीं बोर्ड की एक नई तलवार लटका दी है। यथार्थ सत्य ये भी है कि 90 प्रतिशत से अधिक मार्क्स लाने वाले छात्रों द्वारा भी बड़ी संख्या में आत्महत्या का मार्ग चुनते हैं क्योंकि उन्हें नतीजों में कम अंक आने का भय होता है।
कुल मिलाकर कहा जाये नीट परीक्षा को हटा देना तमिलनाडु में छात्रों की परेशानी को कम नहीं करेगा, ऐसे में बेहतर होता कि राज्य सरकार राज्य के पाठ्य क्रम में जरूरी सुधार करती, और मेडिकल की क्षेत्र की शिक्षा आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए भी सुलभ बनाती, किन्तु एक राजनीति से प्रेरित फैसला लेकर स्टालिन सरकार ने छात्रों के भविष्य के साथ एक बड़ा खिलवाड़ किया है।