आखिरकार वही हुआ जिसकी प्रतीक्षा देशवासियों को दशकों से थी, सरकार ने पिछले डेढ़ सालों से इस पर ध्यान देना शुरु किया है और अब इस मामले को लेकर लगातार कदम भी उठा रही है। दरअसल, हम अक्सर इस बात का रोना रोते आए हैं कि हमारे स्कूली पाठ्यक्रम में देश के इतिहास को सही तरीके से चित्रित नहीं किया गया है, लेकिन आपको जानकर खुशी होगी कि इस मामले का निपटारा करने की ओर कदम बढ़ाया जा चुका है। एनसीईआरटी ने दशकों पुरानी इस भूल को सुधारने की दिशा में व्यापक बदलाव करने का निर्णय किया है। इसके लिए पूर्व ISRO प्रमुख के कस्तूरीरंगन (K Kasturirangan) की अध्यक्षता में तीन वर्ष के कार्यकाल के लिए एक 12 सदस्यीय कमेटी गठित की गई है, जिसमें नेशनल बुक ट्रस्ट के अध्यक्ष गोविंद प्रसाद शर्मा भी हैं जो RSS के शिक्षा विभाग विद्या भारती के अध्यक्ष रह चुके हैं।
स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में लागू होगा करिकुलम
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, “12 सदस्यीय राष्ट्रीय स्टीयरिंग कमेटी का नेतृत्व पूर्व ISRO प्रमुख के कस्तूरीरंगन करेंगे, जो राष्ट्रीय करिकुलम फ्रेमवर्क (National Curriculum Framework) नामक डॉक्यूमेंट को तैयार करेंगे। इसे अंतिम बार यूपीए सरकार के अंतर्गत 2005 में तैयार किया गया था और इसे 1975, 1988 और 2000 में रिवाइज़ किया गया था”। सर्वशिक्षा अभियान के अंतर्गत अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 2000 में कुछ बदलाव अवश्य किये थे, लेकिन सत्ता में आते ही यूपीए ने उन बदलावों को ऐसे हटा दिया, जैसे चाय में से मक्खी।
इस कमेटी में गणित का ‘नोबल पुरस्कार’ माने जाने वाले फील्ड्स मेडल से सम्मानित मंजुल भार्गव, सरस्वती नदी पर पुस्तक ‘The Lost River – On The Trail of Saraswati’ लिखने वाले मिशेल डेनीनो, जामिया मिलिया की कुलपति नजमा अख्तर और केन्द्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय के कुलपति टीवी कट्टीमनी भी शामिल है। National Curriculum Framework नई शिक्षण नीति 2020 के अंतर्गत आधारित है जिसे भारत के स्वतंत्रता के 75वें वर्ष यानी 2022 में लागू किया जाएगा।
अब देश के वास्तविक इतिहास से परिचित होंगे युवा
लेकिन एनसीईआरटी के बदले पाठ्यक्रम से भारत को क्या लाभ होगा और इससे हमारी सांस्कृतिक विरासत को क्या लाभ मिलेगा? इसके संकेत इस वर्ष के प्रारंभ में ही मिल गए थे, जब जनवरी में इस संबंध में संसद की स्थायी समिति ने स्कूलों में वर्तमान राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी ) की इतिहास की पाठ्यपुस्तकों के पुनरीक्षण पर चर्चा की। पाठ्यक्रम में बदलाव की आवश्यकता पर बहस के दौरान एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक जेएस राजपूत और RSS समर्थित भारतीय शिक्षा मंडल (बीएसएम) के प्रतिनिधि भी शामिल थे।
उक्त बैठक में उपस्थित पैनल ने प्रमुख तौर पर देश के राष्ट्रीय नायकों के बारे में तोड़-मरोड़ कर पेश किए गए तथ्यों और इस्लामिक सुल्तानों की तथ्यहीन वाह वाही को हटाने, भारतीय इतिहास के प्राचीन से लेकर आधुनिक समय के व्यक्तित्वों को स्थान देने और भारतीय इतिहास में महान महिलाओं की भूमिका को उजागर करने की आवश्यकता पर चर्चा की थी।
इस संबंध में बीजेपी के दिग्गज नेता और राज्यसभा सांसद विनय सहस्त्रबुद्धे ने मीडिया को बताया कि “संसदीय समिति में पाठ्यपुस्तक सुधारों पर चर्चा करते हुए दो दशक हो गए हैं। हमने सोचा कि ऐसे समय में जब नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू होने जा रही है और और नया सिलेबस लिखा जा रहा है तब पाठ्यपुस्तक सुधारों पर भी विचार किया जाए।”
ऐसे में एनसीईआरटी द्वारा स्कूली पाठ्यक्रम को बदलने के लिए गठित की गई नई कमेटी का उद्देश्य एकदम स्पष्ट है। अब भारत के फर्जी इतिहास और भ्रामक तथ्यों को साफ कर देश के युवाओं को भारत के वास्तविक इतिहास से परिचित कराया जाएगा।