हमारे देश के स्वघोषित बुद्धिजीवियों को यदि समाज को उपदेश देना होता है, तो उन्हें न जाने क्यों हमारे सनातनी त्योहार ही याद आते हैं। इस बार भी एक ‘अनिवार्य’ NGO ने निर्लज्जता की सभी सीमाएँ लांघते हुए भगवान गणेश की मूर्ति के हाथों में सैनिटरी पैड थमा दिए, ताकि मासिक धर्म [Menstrual Hygiene] के बारे में जागरूकता फैलाई जा सके।
जी हाँ, आपने ठीक सुना। गणेश चतुर्थी के अवसर पर भगवान गणेश के हाथ में सैनिटरी पैड थमाये गए थे। मध्य प्रदेश के Mhow [महू] शहर में स्थित ‘अनिवार्य’ NGO ने यह निर्लज्जता की थी। उन्होंने यह कार्य जानबूझकर रिद्धि और सिद्धि की मूर्तियों के समक्ष किया था, जो शास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश की पत्नियाँ हैं। अनिवार्य NGO के अनुसार यह ‘Menstrual Hygiene’ के प्रति जागरूकता फैलाने का उनका कदम था, और वे भगवान गणेश को ‘एक जिम्मेदार पति’ के रूप में दिखाना चाहते थे।
यदि ऐसा कोई उद्देश्य अनिवार्य नामक NGO का वास्तव में था, तो उसमें वह बुरी तरह असफल हुआ है। ऐसा इसलिए क्योंकि उसने अपने संदेश को पहुंचाने के लिए सनातन धर्म को अपमानित करने का ओछा मार्ग चुना, जो एक प्रकार से लोगों के लिए अब फैशन बन चुका है। वायु प्रदूषण पर ज्ञान देना हो तो विजयदशमी और होली को निशाना बनाओ, महिला सशक्तिकरण पर ज्ञान देना है तो करवा चौथ और रक्षा बंधन का अपमान करो, जल संरक्षण का संदेश देना है तो होली का उपहास उड़ाओ।
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सनातन धर्म में स्त्रियों का स्थान बेहद ही पवित्र है और ऐसे में मासिक धर्म जिसे आम भाषा में पीरियड्स भी कहा जाता है उसे लेकर या उस पर बात करने पर सनातन समाज में कोई taboo अर्थात निषेध नहीं हैl ओडिशा में ‘राजा पर्व’ या ‘राजस्वा’ के नाम से एक पर्व मनाया जाता है, जिसमें 3 दिनों के लिए मासिक धर्म और नारीत्व का उत्सव मनाया जाता है l इतना ही नहीं हिंदू धर्म के 51 शक्तिपीठों में से एक माता कामख्या का मंदिर है, जहाँ देवी सती की पूजा योनी के रूप में की जाती है l साथ ही इस मंदिर में प्रसाद के रूप में दिया जाने वाला माता सती का मासिक धर्म वाला कपड़ा बहुत ही पवित्र माना जाता है l
लेकिन इस बार जागरूकता के नाम पर सनातन धर्सोम को अपमानित करना भरी पद गया और सोशल मीडिया के यूजर्स ने अनिवार्य नामक NGO को नहीं छोड़ा, और इस ओछी हरकत के लिए जमकर आलोचना की। इंडियाटाइम्स द्वारा शेयर किये गए अनिवार्य के पोस्ट पर लोगों ने जमकर आलोचना की। अभिषेक चौहान नामक यूजर ने ट्वीट किया, “हाँ, मासिक धर्म के बारे में जानना बहुत आवश्यक है, पर इसका अर्थ यह नहीं कि आप किसी के धर्म को ऐसे अपमानित करेंगे!” –
एक अन्य यूजर जस्ट मिमी ने पोस्ट किया, “ऐसा ही है तो फिर क्रिसमस पर सैनिटरी पैड से क्रिसमस ट्री सजाइए। दरगाह पर चादर के बजाए सैनिटरी पैड लगाइए” –
एक अन्य यूजर ने स्पष्ट पोस्ट किया, “यह किसी भी मायने में अनोखा नहीं है, उलटे अपमानजनक है। यह बहुत ही बचकानी हरकत है।” ऐसे ही चिन्मयी नामक यूजर ने पोस्ट किया,“अभी ये [सैनिटरी पैड] थमाये हो, कल को क्या स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए फ़िनाइल और हारपिक पकड़ाओगे देवी देवताओं के हाथ में? देवी देवताओं का सम्मान करना चाहिए, उनका ऐसा अपमान किसी स्थिति में स्वीकार्य नहीं। अपने निजी एजेंडा को साधने के लिए अभी हाल ही में राहुल गांधी ने माँ दुर्गा के नाम का अपमान किया। क्या नौटंकी चल रही है?”
दो अन्य यूजर ने स्पष्ट विरोध तो नहीं किया, लेकिन इसे बचकाना अवश्य सिद्ध किया। जागृति खन्ना नामक यूजर ने पोस्ट किया, “यह बेवकूफी नहीं तो और क्या है? जागरूकता फैलाने के और भी तरीके हैं।”
लेकिन जिसका संस्थापक चेतन भगत से प्रेरित हो, उससे आप व्यवहारिकता और शिष्टाचार की आशा कर भी कैसे सकते हैं? जी हाँ, अनिवार्य के संस्थापक अंकित बागड़ी एक लेखक भी हैं, जो चेतन भगत की ‘2 स्टेटस’ पढ़कर लेखन और समाजसेवा के लिए कथित तौर प्रेरित हुए थे। जब विवाद अधिक बढ़ने लगा, तो संस्थापक को क्षमा मांगने को विवश पड़ा। लेकिन सामाजिक जागरूकता के नाम पर जो सनातन धर्म पर कीचड़ उछालने की जो खुजली वामपंथियों और एनजीओ में मचती है, उसे बंद करने का समय अब आ चुका है।