हाल ही में पंजाब की राजनीति में एक अहम मोड़ सामने आया, जब मुख्यमंत्री, कैप्टन अमरिंदर सिंह [सेवानिर्वृत्त] को त्यागपत्र सौंपने पर विवश होना पड़ा है। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी पूरी कैबिनेट समेत पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित (Banwarilal Purohit) को अपना त्यागपत्र सौंप दिया है। लोग अनेक प्रकार की अटकलें लगा रहे हैं, लेकिन फिलहाल के लिए उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता से त्यागपत्र नहीं दिया है, परंतु जिन परिस्थितियों में कैप्टन अमरिंदर सिंह को त्यागपत्र देने के लिए बाध्य होन पड़ा है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि कांग्रेस में योग्यता का क्या मोल है।
केवल कांग्रेस में अयोग्य लोगों को अवसर पर अवसर मिलते रहते हैं, यदि वे नेहरू गांधी खानदान की चाटुकारिता करना जानते हो। जो भी नेता चाटुकारिता नहीं करते वो चाहे योग्यता की प्रतिमूर्ति हों, उन्हें घास भी नहीं डाली जाती। मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजस्थान में सचिन पायलट के बाद अब पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी दरकिनार कर दिया गया है।
अब अमरिंदर सिंह आगे क्या कदम उठाते हैं ये तो बाद में पता चलेगा, लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि नवजोत सिंह सिद्धू जैसे चाटुकार को प्राथमिकता देने के लिए उन्हें त्यागपत्र देने पर विवश किया गया है। पंजाब उन चंद राज्यों में से एक था जहां पर कांग्रेस का अस्तित्व अब भी विद्यमान था, परंतु वह इसलिए था क्योंकि वहाँ ‘माँ बेटे की सरकार’ [सोनिया गांधी और राहुल गांधी] नहीं, कांग्रेस पार्टी की सरकार चलती थी, जिसका नेतृत्व करते थे कैप्टन अमरिंदर सिंह। कैप्टन अमरिंदर सिंह का रुख स्पष्ट रहा – उन्हें अगर अपने हिसाब से स्थिति संभालने दी गई तो वे पंजाब में कांग्रेस को सदैव एक जुझारू इकाई के रूप में विद्यमान रखेंगे। शर्त यह थी – कांग्रेस हाईकमान, विशेषकर राहुल गांधी जैसों का कोई हस्तक्षेप नहीं चाहिए। इसके अलावा कैप्टन अमरिंदर अपने राष्ट्रवादी विचारों के लिए भी प्रसिद्ध हैं, और वे प्रारंभ में सेना से सेवानिर्वृत्त होकर पुनः सेना में भर्ती हुए, और 1965 के युद्ध में सक्रिय रूप से भाग भी लिया। पिछले कुछ महीनों को छोड़ दें तो उनकी छवि काफी साफ सुथरी रही है।
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इसीलिए कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब कांग्रेस को एक मजबूत यूनिट के रूप में विकसित कर पाए। जहां एक ओर पूरे देश में कांग्रेस की भद्द पिट रही थी, तो वहीं पंजाब उन चंद राज्यों में से एक था, जहां क्या लोकसभा क्या विधानसभा, कांग्रेस का जलवा बरकरार था। लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 दोनों में ही पंजाब कांग्रेस ने अपना प्रभुत्व कायम रखा, जिसे तोड़ने में अकाली दल और भाजपा दोनों असफल रहे। कारण यहां राहुल गांधी चुनावी कैंपेन से दूर रहे।
पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह का यही वर्चस्व कांग्रेस हाईकमान, विशेषकर राहुल गांधी को नागवार गुज़रा। आखिर वे अपने से बेहतर नेता पार्टी में कैसे आगे बढ़ने दे सकते थे, चाहे वो क्षेत्रीय स्तर का ही क्यों न हो? कैप्टन अमरिंदर को नियंत्रण में लाने का प्रयास 2017 में ही प्रारंभ हो गया था, परंतु तब कांग्रेस नेताओं का स्थानीय कैडर इतना सशक्त और एकजुट था, कि उन्होंने इसका जबरदस्त विरोध किया, और अंतत: राहुल गांधी को कैप्टन अमरिंदर के समक्ष झुकना पड़ा।
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इसके बाद ही कैप्टन अमरिंदर को झुकाने के लिए नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब भेजा गया, जो भाजपा से निकलकर कांग्रेस से नए नए जुड़े थे। अपनी चाटुकारिता में सिद्धू ने कोई कसर नहीं छोड़ी, और ये जल्द ही स्पष्ट हो गया कि वे गांधी वाड्रा परिवार के विशेष ‘दूत’ थे।
कैप्टन अमरिंदर ने लोकसभा चुनाव 2019 तक तो उन्हें काफी नियंत्रण में रखा, परंतु 2020 में ‘किसान आंदोलन’ के पश्चात नवजोत सिद्धू ने जिस प्रकार से पार्टी में अराजकता और अनुशासनहीनता को बढ़ावा दिया, उससे कैप्टन अमरिंदर और नवजोत सिद्धू में तनातनी होना तो स्वाभाविक था। कैप्टन अमरिंदर के समर्थन में अब भी कई नेता थे, लेकिन नवजोत ने काफी चालाकी से कई नेताओं को अपनी ओर मोड़ लिया, और निरंतर अपने अपमान को सहना एक वरिष्ठ नेता, विशेषकर एक पूर्व सैन्य अफसर के लिए असहनीय होता गया।
हालांकि, अमरिंदर सिंह अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं है, जो योग्य होते हुए भी पार्टी में अकेले पड़ गए। पीवी नरसिम्हा राव से लेकर ऐसे अनेकों उदाहरण हैं, जो केवल इसलिए गुमनामी के अंधेरे में खो गए, क्योंकि उन्होंने नेहरू-गांधी परिवार की चाटुकारिता नहीं की। एक ऐसे ही राजनेता ने जब इस नीति का विरोध किया, तो उन्हें राहुल गांधी ने अपमानित करने का प्रयास किया, लेकिन उस राजनेता ने उस अपमान को अवसर के रूप में लेते हुए तुरंत पार्टी छोड़ी और भाजपा का दामन थामा। आज वही राजनेता असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा हैं, जिसके कारण पूर्वोत्तर से कांग्रेस का वर्चस्व लगभग समाप्त हो चुका है।
लगता है अब कांग्रेस इसी प्रकार से उत्तर भारत से भी अपना अस्तित्व सदैव के लिए मिटाना चाहती है, इसीलिए इस पार्टी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे नेता को त्यागपत्र देने पर विवश कर दिया। केवल कांग्रेस में ही नवजोत सिंह सिद्धू जैसे अयोग्य नेताओं को कैप्टन अमरिंदर जैसे नेताओं के ऊपर प्रथिमकता दी जा सकती है, चाहे पार्टी की साख सदैव के लिए गर्त में क्यों न चली जाये।