पेस, भूपति, सानिया, सोमदेव और….? भारत में टेनिस धीमी मौत मर रहा है और इसके लिए AITA दोषी है

ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन (AITA) के लचर रवैये के कारण देश में टेनिस का भविष्य अंधकारमय हो चुका है!

ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन

अगर आपसे सवाल पूछा जाए कि भारत किन खेलों में उच्च स्तरीय प्रदर्शन कर रहा है या कर चुका है तो आपका उत्तर क्या होगा? सम्भवतः आप क्रिकेट, हॉकी, कबड्डी, कुश्ती बताएंगे। आज जो युवा है, वो तो सिर्फ इन्हीं खेलों में भारतीय प्रदर्शन की प्रशंसा करते हुए नजर आएंगे लेकिन क्या आपको मालूम है कि एक खेल ऐसा था, जिसमें हम विश्व को टक्कर देते थे और दमदारी से भारतीय तिरंगे को लहराते थे। आज उस खेल में भारत की ओर से सक्रिय भूमिका निभा रहे बहुत से कम खिलाड़ियों को आप जानते होंगे। हम टेनिस कोर्ट में भारतीय परचम की बात कर रहे हैं। एक दौर था जब भारत का प्रतिनिधित्व लिएंडर पेस, महेश भूपति, सानिया मिर्जा, सोमदेव देवबर्मन जैसे खिलाड़ी करते थे तथा उनकी गिनती विश्व के शीर्ष टेनिस खिलाड़ी के तौर पर होती थी। आज आप शायद ही किसी भारतीय टेनिस खिलाड़ी का नाम जानते होंगे। टेनिस के इस दुर्भाग्यपूर्ण समय के लिए और कोई नहीं बल्कि स्वयं भारतीय टेनिस की शीर्ष समूह ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन (AITA) जिम्मेदार हैं। उनके लचर रवैये के कारण टेनिस का भविष्य अंधकारमय हो चुका है। सुमित नागाल और शशि कुमार मुकुंद भारत की ओर से खेलने के लिए मना कर रहे हैं।

दरअसल, ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन की स्थापना सन 1920 में हुई थी। इसकी स्थापना बीसीसीआई से भी आठ वर्ष पूर्व हुई थी लेकिन आज BCCI विश्व क्रिकेट में सबसे ताकतवर बोर्ड होने के साथ साथ सबसे ताकतवर टीम भी है। वहीं ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन एक फिसड्डी संस्थान बनकर उभरा है। इससे पहले हम ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन की नाकामियों पर ध्यान दें, उससे पहले जरा नजर डाल लेते हैं कि पूर्व में भारतीय टेनिस खिलाड़ियों की क्या स्थिति रही है। भारत डेविस कप, कॉमनवेल्थ गेम्स, ओलंपिक और एशियन गेम्स में कुल 41 पदक  जीत चुका है। टेनिस टूर्नामेंट में शामिल सबसे प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में भारतीय खिलाड़ियों का भी दबदबा रहा है।

पेस, भूपति, सानिया, सोमदेव के बाद कोई खिलाड़ी विश्वस्तरीय नहीं

मिक्सड डबल में महेश भूपति दो बार फ्रेंच ओपन खिताब (1997, 2012), दो बार यूएस ओपन (1999, 2005), दो बार विम्बलडन (2002,2005) और दो बार ऑस्ट्रेलियन ओपन (2006, 2009) जीत चुके हैं। वहीं लिएंडर पेस चार बार विम्बलडन (1999, 2003, 2010, 2015), तीन बार ऑस्ट्रेलियन ओपन (2003, 2010, 2015) और एक बार यूएस ओपन जीत चुके हैं। सानिया मिर्जा ऐसे तीन खिताब जीत चुकी हैं। मेन्स डबल में लिएंडर पेस और महेश भूपति यूएस ओपन, विम्बलडन, फ्रेंच ओपन, ऑस्ट्रेलियन ओपन में कुल 9 बार खिताब जीत हासिल कर चुके हैं। वुमेन्स डबल में सानिया मिर्जा 3 बार खिताब हासिल कर चुकी हैं।

इस तरह के बेहतरीन इतिहास होने के बावजूद रोहन बोपन्ना के समय तक आते-आते भारतीय टेनिस टीम अब एकदम खत्म होने के कगार पर खड़ी हो गई है। इसका बहुत बड़ा कारण है ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन का तानाशाही और लचर रवैया! पहले ही कई खिलाड़ी ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन के इसी रवैये पर सवाल उठा चुके हैं।

कई प्रमुख खिलाड़ी उठा चुके हैं सवाल

इसी वर्ष भारत के पूर्व नंबर 1 टेनिस खिलाड़ी सोमदेव देववर्मन ने अखिल भारतीय टेनिस संघ पर सवाल उठाया था। उन्होंने पूछा था, “मैं (ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन ) से यह पूछना चाहता हूं कि भारतीय टेनिस के लिए आपका दृष्टिकोण क्या है और आप इसे कैसे पूरा करेंगे। सरकार को छोड़ दें, वो टेनिस विशेषज्ञ नहीं हैं। क्या आपको लगता है कि आपने अच्छा काम किया है? मैं किसी पर किसी प्रकार का आक्रमण नहीं करना चाहता, मैं सिर्फ सीधे-सीधे सवाल पूछ रहा हूं।” बता दें कि सेवानिवृत्त होने के बाद, सोमदेव भारत में लॉन टेनिस के लिए सरकारी पर्यवेक्षक बन गए थे।

यह विशेष सवाल देववर्मन द्वारा तब पूछा गया था जब सरकार ने सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के लिए फंडिंग कम कर दी थी। यह देववर्मन ही थे जिन्होंने 2 करोड़ रुपये के वार्षिक बजट में 300 नवोदित खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करने के लक्ष्य के साथ COE परियोजना की शुरुआत की थी। सवाल इसलिए भी जरूरी है क्योंकि अपने कैरियर के शीर्ष रैंक 62 पर जाने के बाद भी वह 10 करोड़ रुपए कमा सके थे जो 9 साल में खत्म हो गया।

वहीं दुनिया के शीर्ष खिलाड़ी हर साल कोच, फिजियो के लिए 3 करोड़ रुपए तक खर्च करते हैं वहीं ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन को सिर्फ अपने से मतलब होता है। न तो खिलाड़ियों की चिंता होती है और न ही देश की। ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन  के पूर्व उपाध्यक्ष कार्ति चिदम्बरम ने कहा था कि भारत को कम-से-कम 6 खिलाड़ियों पर 3 से 4 करोड़ रुपए खर्च करना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि भारत इतनी रकम खर्च कर सकता है लेकिन ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन ने कभी इच्छा दिखाई है। कोच के अलावा बाकी पैसा फिजियो, यात्रा, भोजन और उपकरणों पर खर्च किया जाता है। एक भारतीय खिलाड़ी को इन खर्चों के साथ विश्व स्तर पर प्रतियोगिता खेलने के लिए वित्तीय सहायता की आवश्यकता होती है।

ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन के शीर्ष पदों पर बैठे हुए लोग खिलाड़ियों के खेल भावना की कद्र ना करते हुए बस राजनीति करने में विश्वास रखते हैं। 2012 में महेश भूपति पर जब 2 वर्ष का प्रतिबंध लगाया गया था, तब उन्होंने कहा था कि ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन में इस समय सिर्फ फूट डालो राज करो का काम चल रहा है। उन्होंने उस वक़्त के अध्यक्ष अनिल खन्ना पर यह आरोप लगाया था। उन्होंने यहां तक कह दिया था कि खन्ना की तरफ से उन्हें किसी प्रकार का समर्थन नहीं मिला।

रोहन बोपन्ना भी AITA पर यह आरोप लगा चुके हैं कि यह एक अक्षमताओं वाली संस्थान है और झूठ बोलना उसकी आदत हो चुकी है। टोक्यो ओलंपिक से पहले रोहन बोपन्ना ने ट्वीट कर कहा था कि, “सुप्रभात… AITA महासचिव यह कहते हुए झूठ बोल रहे हैं कि आईटीएफ ने प्रवेश स्वीकार कर लिया है। सभी से झूठ बोलना बंद करें और बदलाव का समय आ गया है। 50+ साल हो गए हैं, सभी खिलाड़ियों की ओर आए महासंघ की अक्षमता के लिए धन्यवाद दिया जा रहा है।”

यह आरोप तब लगाया जब रोहन बोपन्ना को महासचिव की ओर से फोन और बताया कि उनका चयन टोक्यो ओलंपिक के लिए कर लिया गया है। ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन  के सचिव हिरण्मय चटर्जी तो एक बार यह भी कह चुके है कि रोहन बोपन्ना कौन है!

एआईटीए के किसी अधिकारी को कभी भी यह नहीं पूछना चाहिए – कम से कम सार्वजनिक रूप से तो नहीं – “वह कौन है?” वह भी एक खिलाड़ी के बारे में। मूल निकाय के रूप में, यह अपेक्षा की जाती है कि वह परिस्थितियों से गरिमा के साथ निपटेगा और गंभीर रूप से उकसाए जाने पर भी ऐसे स्तरों तक नहीं गिरेगा। परंतु, ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा और वह अपनी ही धुन में रहा।

नए खिलाड़ियों की पौध नहीं

यूकी भांबरी जैसा विश्वस्तरीय खिलाड़ी भी AITA के कारण बर्बाद हो गया है। जूनियर विश्व रैंकिंग में नंबर 1 होने और ऑस्ट्रेलियन ओपन जीतने के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि भारत में अब टेनिस ने रफ्तार पकड़ ली है और नए खिलाड़ी उभर कर आ रहे हैं। परंतु, ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन की लालफ़ीताशाही ने प्रतिभाओं का ऐसा नाश किया जिससे शायद ही देश में कोई युवा टेनिस खेलने की सोचेगा। यूकी भांबरी ने एशियन गेम्स में भाग लेने के बजाय जब यूएस ओपन में भाग लेने का फैसला किया, तब उन्हें टारगेट ओलंपिक पोडियम स्किम (TOPS) से बाहर कर दिया गया था। इस पर यूकी भांबरी ने नाराजगी जताई थी और हर बार की तरह ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन सामने से आकर खंडन करके चला गया। किसी अन्य देश में यूकी जैसे खिलाड़ी को उनके मनपसंद कोच से ट्रेनिंग के लिए प्रबंध कर दिया जाता।

आज भारत के खिलाड़ियों की रैंकिंग देखा जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि कैसे टेनिस अब गर्त में जा रहा है। सर्वोच्च रैंक वाले भारतीय खिलाड़ी प्रजनेश गुणेश्वरन हैं, जो वर्तमान में नंबर 148 पर हैं। भारत में महिला टेनिस की कहानी और भी खराब है। भारत की शीर्ष रैंकिंग वाली महिला टेनिस खिलाड़ी विश्व में शीर्ष 150 से बाहर हैं। दूसरी सबसे अच्छी रैंकिंग शीर्ष 200 के बाहर है।

टूर स्तर का एकल खिताब जीतने वाले अंतिम भारतीय पुरुष लिएंडर पेस थे जिन्होंने 1998 में न्यूपोर्ट में ट्रॉफी जीती थी। एकल खिताब जीतने वाली अंतिम भारतीय महिला सानिया मिर्जा थीं, जिन्होंने 2005 में हैदराबाद ओपन जीता था। तब से, मिर्जा एकल सर्किट से दूर हो गई और उन्होंने अपना ध्यान युगल वर्ग पर केंद्रित कर दिया। जब से वह सिंगल्स सर्किट से बाहर हुई हैं, भारतीय परिदृश्य भी सिंगल्स कैटेगरी में ठहर गया है।

ऐसा प्रतीत होता है कि ऑल इंडिया टेनिस एसोसिएशन कुछ बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं करना चाहता है। वह ना ही पैसा खर्च करना चाहता है, ना ही खिलाड़ियों को बड़े टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए प्रेरित करता है, कई मामलों में तो उसकी सक्रियता ना बराबर रहती है। एक राष्ट्रीय स्तर के खेल बॉडी के तौर पर उसकी निष्क्रियता चिंताजनक है। सरकार को अब स्वयं हस्तक्षेप कर समाधान ढूँढना होगा नहीं तो इस देश के इतिहास में टेनिस कहीं footnote बन कर रह जाएगा।

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