पिछले दिनों अमेरिकी सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से यह कहा कि उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तालिबान पाकिस्तान को अस्थिर करके उसके न्यूक्लियर हथियारों पर कब्जा न कर ले। अमेरिका पहले से इस बात को लेकर चिंतित है कि पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर सक्रिय आतंकी संगठन परमाणु प्रोग्राम से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी न जुटा सकें। पाकिस्तान के पुराने रिकॉर्ड को देखकर इस बात से भी नहीं किया जा सकता है कि पाकिस्तान स्वयं ही तालिबान को परमाणु हथियार का डिजाइन और अन्य आवश्यक जानकारी उपलब्ध करवा देगा। यदि ऐसा हुआ तो पूरे क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ जाएगी और परमाणु हथियारों की होड़ इस हद तक बढ़ जाएगी कि दक्षिण एशिया में परमाणु युद्ध के बादल मंडराने लगेंगे।
ओसामा ने की थी परमाणु बनाने की घोषणा
बता दें 1998 में ओसामा ने पहली बार यह घोषणा की थी कि अलकायदा वेपन ऑफ मास डिस्ट्रक्शन बनाने का प्रयास कर रहा है। वहीं 2007 में ओसामा बिन लादेन का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें ओसामा ने कहा था कि परमाणु हथियार बनाना और विश्व के शक्ति संतुलन को बदलना उसके जिहाद की लड़ाई का एक अभिन्न अंग है। ओसामा को तालिबान सहित पूरा मुस्लिम आतंकी जगत किसी देवदूत की तरह पूजता है। ऐसे में बिन लादेन द्वारा की गई घोषणाओं को पूरा करने के लिए तालिबान का सनकी शासन पूरा प्रयास करेगा।
पाकिस्तान द्वारा पूर्व में भी, ऐसे देशों को जो वैश्विक शांति के लिए खतरा हैं, परमाणु हथियार से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाई गई है। पाकिस्तान के परमाणु बम के कार्यक्रम में चीन ने उसकी मदद की थी। माना जाता है कि 1980 के दशक में चीन ने पाकिस्तान को न्यूक्लियर हथियार बनाने का तरीका, उसका डिजाइन, उसमें इस्तेमाल होने वाले वेपन ग्रेड यूरेनियम, यूरेनियम संवर्धन का तरीका और परमाणु हमला करने में सक्षम मिसाइल बनाने के लिए आवश्यक सभी जानकारी उपलब्ध करवाई थी। यहाँ तक कि चीन ने अपनी परमाणु मिसाइल के कुछ हिस्से भी पाकिस्तान को बेचे थे।
नॉर्थ कोरिया, लीबिया और ईरान को परमाणु हथियार का डिजाइन दे चुका पाकिस्तान
इसके बाद पाकिस्तान ने परमाणु हथियारों को बेचने के लिए ब्लैक मार्केट तैयार किया। माना जाता है कि पाकिस्तान ने नॉर्थ कोरिया, लीबिया और ईरान को परमाणु हथियार का डिजाइन भेजा था। हालांकि, नॉर्थ कोरिया के संबंध में लगाए गए सभी आरोपों से पाकिस्तान ने हमेशा ही इनकार किया है, लेकिन नॉर्थ कोरिया के परमाणु कार्यक्रम में पाकिस्तान की अप्रत्यक्ष भूमिका थी इसका पर्याप्त सबूत विश्व के सामने है। वहीं लीबिया और ईरान के संदर्भ में तो पाकिस्तान स्वयं भी यह बात स्वीकार कर चुका है कि इन देशों के परमाणु कार्यक्रम में पाकिस्तानियों ने मदद की है।
पाकिस्तान ने परमाणु हथियारों की जानकारी की तस्करी का सारा ठीकरा अपने परमाणु कार्यक्रम के प्रमुख अब्दुल कादिर खान के सिर फोड़ दिया। 2003 में दुनिया को यह बात पता चली कि अब्दुल कादिर खान ने कई देशों को न्यूक्लियर हथियार बनाने की तकनीक भेजने का काम था। हालांकि, एक अन्य पाकिस्तानी वैज्ञानिक परवेज ने कई बार यह दावा किया है कि इस तस्करी में केवल खान ही शामिल नहीं था बल्कि कई और पाकिस्तानी उच्चाधिकारी इसमें शामिल थे।
2003 में तो स्वयं पाकिस्तान सरकार ने स्वीकार किया कि अब्दुल कादिर खान के अतिरिक्त कई अन्य उच्च अधिकारी भी इस तस्करी में शामिल थे। तब पाकिस्तान ने यह भी स्वीकार किया कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पाकिस्तान पिछले 18 वर्षों (1985-2003) से मदद दे रहा है। हास्यास्पद यह है कि पाकिस्तान ने अपनी इन हरकतों से हमेशा ही पश्चिमी देशों के हितों को नुकसान पहुंचाया है लेकिन इसके बाद कि पश्चिमी देशों ने पाकिस्तान के विरुद्ध कोई कड़ा कदम नहीं उठाया है।
अपने परमाणु हथियारों के बल पर ही पाकिस्तान ने भारत की सैन्य कार्रवाई से बचने का रास्ता खोजा है। पाकिस्तान भारत पर आतंकी हमले करवाता रहा है और जब भी भारत जवाबी कार्यवाही के लिए आगे बढ़ा है, पाकिस्तान ने दुनिया को परमाणु युद्ध का खतरा दिखाकर भारत को रोकने के लिए कहा है। पाकिस्तान के परमाणु हथियार एक सुसाइड बॉम्बर की जैकेट की तरह है, जिसका इस्तेमाल पाकिस्तान द्वारा दूसरे देशों को मजबूर करने के लिए किया जाता है।
आज अफगानिस्तान पूरी तरह से तालिबान के कब्जे में है और पाकिस्तान खुलेआम तालिबान की सरकार बनाने से लेकर उसे वैश्विक स्तर पर स्वीकृति दिलाने में मदद कर रहा है। ऐसे में इस बात कि क्या गारंटी है कि पाकिस्तान कल को तालिबान परमाणु हथियार बनाने की जानकारी उपलब्ध नहीं करवाएगा जिसका इस्तेमाल करके तालिबान भी दुनिया को वैसे ही ब्लैकमेल करेगा जैसे पाकिस्तान कर रहा है।