देश के पूर्वोत्तर में सुरक्षा की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण राज्य असम हमेशा ही आतंकियों और अलगाववादियों के निशाने पर रहा है। ऐसे में पिछले साढ़े पांच वर्षों के शासन काल में इसे खत्म करने के अनेकों प्रयास तो किए गए हैं, किन्तु कुछ मुद्दों पर सदैव संवेदनशील स्थिति बनी रहती है। ये कहने में कोई गुरेज़ नहीं होना चाहिए कि पुरानी सरकारों के कुकर्मों का फल वर्तमान भाजपा सरकार के मत्थे आ रहा है।
उन्हीं के चलते 30 हजार एकड़ से अधिक कब्जाई जमीन को खाली कराने के लिए न केवल वर्तमान हिमंता सरकार को मुश्किलों में धकेलने की कोशिश की जा रही है, बल्कि पुलिसिया कार्रवाई के खिलाफ आक्रामकता भी दिखाई जा रही है। जिसका नतीजा ये है कि राज्य में हिंसा का तांडव हो रहा है। ख़ास बात ये है कि हिंसा के इस घटनाक्रम में एक बार फिर मुख्य केन्द्र PFI ही रहा है। PFI के विरुद्ध मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा सख्त रुख अपना रहे हैं जिसको देखकर ये कहा जा सकता है कि PFI के अब बुरे दिन शुरु होने वाले हैं।
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आक्रोशित हैं सीएम हिमंता
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को लेकर एक बात प्रचलित है कि वो जो ऐलान कर देते हैं, उसे पूरा करके ही दम लेते हैं। दूसरी ओर असम में अवैध जमीन पर रह रहे लोगों को खाली कराने गई पुलिस के साथ उन लोगों ने जो बर्ताव किया है, वो हिमंता को आक्रोशित कर रहा है। उन्होंने एक तरफ तो इस मुद्दे पर सख्त न्यायिक जांच के संकेत दिए हैं तो दूसरी ओर PFI को निशाने पर लिया है। हिमंता का कहना है कि पुलिस पर हमला होने की इस घटना में PFI की भूमिका हो सकती है और इस मामले में सघन जांच के बाद PFI के खिलाफ सख्त एक्शन लिया जा सकता है। इतना ही नहीं हिमंता ने मांग की है कि केन्द्र द्वारा PFI को प्रतिबंधित किया जाए।
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PFI पर शक जताते हुए हिमंता ने कहा है कि जिस दिन पुलिस दरांग में कार्रवाई करने गई थी, उससे एक दिन पहले ही PFI के लोगों ने वहां का दौरा किया था। उन्होंने कहा, “हमारे पास छह लोगों के नाम हैं, घटना के दिन से पहले PFI ने बेदखल परिवारों को खाद्य सामग्री ले जाने के नाम पर साइट का दौरा किया। कई सबूत अब सामने आ रहे हैं, जिसमें एक लेक्चरर समेत कुछ लोगों को शामिल किया गया है।” हिमंता का ये भी कहना है कि अवैध कब्जेदारों को हटाने का प्लान काफी पहले से था और इसी के तहत हिंसा की साजिश रखी गई।
पहले ही रची गई थी साजिश
हिमंता ने कहा, “एक खुफिया रिपोर्ट थी कि कुछ लोगों ने पिछले तीन महीनों के दौरान ये कहते हुए 28 लाख रुपए एकत्र किए कि कोई बेदखली नहीं होगी। जब वो बेदखली का विरोध नहीं कर सके तो उन्होंने जनता को लामबंद किया और उस दिन कहर ढाया।”
उन्होंने कहा, “60 परिवारों को हटाने का काम था लेकिन यहां 10,000 लोग आ गए। आखिर कौन इन्हें लेकर आया? पुलिस पर हमला क्यों किया? इन सब में PFI का नाम आ रहा लेकिन मैं इसपर कुछ नहीं कहूंगा। न्यायिक जांच में ये सामने आ जाएगा।” स्पष्ट है कि हिंमंता इस मुद्दे पर PFI को सांकेतिक तौर पर निशाने पर ले चुके हैं।
काला है PFI का इतिहास
असम में हुई हिंसा में यह पहली बार नहीं है कि PFI का नाम सामने आया हो, इससे पहले जब सीएए-एनआरसी का मुद्दा उछला था तो उस दौरान भी असम बंद करना पड़ा था। विरोध प्रदर्शन के नाम पर अनेकों PFI के कार्यकर्ताओं ने राज्य में अराजकता मचाई थी। केवल असम ही नहीं देश में जब भी हिंसा का कोई भी तांडव हुआ है तो PFI की संलिप्तता सामने आई है। ऐसे में लगभग प्रत्येक राज्य के मुख्यमंत्री PFI के विरुद्ध आक्रामक रवैया अपना चुके हैं लेकिन असम की ये घटना PFI के लिए मुसीबत का सबब बन सकती है।
एक तरफ राज्य में अवैध रूप से रह रहे लोगों के विरुद्ध कार्रवाई के मुद्दे पर जिस तरह से अराजकतावादियों ने विद्रोह किया है, उसके बाद उनके विरुद्ध पहले न्यायिक कार्रवाई की बात और अब सांकेतिक रूप से PFI पर हमला हिमंता के आक्रोश को दिखाता है। सीएम के बयान के बाद ये माना जा रहा है कि PFI के लिए अब मुश्किल घड़ी आ सकती है, क्योंकि पहले की वारदातों पर सरकारों द्वारा संगठन के लोगों पर तो कार्रवाई होती थी, किन्तु संगठन को नजरंदाज कर दिया जाता था। लेकिन अब हिमंता के सख्त रुख को देखकर ये कहा जा सकता है कि हिमंता असम की हिंसा के बाद PFI के लिए काल बन सकते हैं।