जब बात सार्वजनिक बेइज्जती की आती है, तो पीएम मोदी का कोई सानी नहीं होता। बिना मर्यादा का उल्लंघन करे कभी-कभी तो वे बड़े से बड़े विरोधी को उनकी औकात बता देते हैं। कोविड के मूल स्त्रोत को लेकर हाल ही में पीएम मोदी ने ब्रिक्स सम्मेलन में बिना नाम लिए चीन के तानाशाह शी जिनपिंग की न केवल सार्वजनिक बेइज्जती की, अपितु कोविड के मूल स्त्रोत को लेकर एक पारदर्शी इंवेस्टिगेशन पर भी जोर दिया, और जिनपिंग चाहकर भी कुछ खास विरोध नहीं कर पाए।
हाल ही में, ब्रिक्स के वर्चुअल सम्मेलन को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने एक पारदर्शी इंवेस्टिगेशन को बढ़ावा देने की बात की। पीएम मोदी के अनुसार ऐसा इसलिए आवश्यक ताकि कोविड के मूल स्त्रोत को लेकर लोग अंधेरे में न रहे। ब्रिक्स के वर्चुअल सम्मेलन को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, “आज वैश्विक प्रशासन को अपने आप को सिद्ध करने की आवश्यकता है। COVID 19 का मूल स्त्रोत क्या है, ये कहाँ से आया, इस पर एक पारदर्शी, निष्पक्ष जांच कमेटी बिठाई जानी चाहिए, जो विश्व स्वास्थ्य संगठ द्वारा प्रमाणित मानकों के अंतर्गत कार्य करे।”
यही नहीं, ब्रिक्स सम्मेलन में पीएम मोदी ने यहाँ तक कहा कि यदि ऐसा संभव हुआ, तो लोग अन्य प्रकार की महामारी के लिए तैयार भी हो सकेंगे और इससे विश्व स्वास्थ्य संगठन की विश्वसनीयता पर उठ रहे प्रश्न भी खत्म होंगे। ये जानते हुए भी कि इसी सम्मेलन में जिनपिंग भी उपस्थित हैं, और ये जानते हुए भी कि उनके बयान का क्या प्रभाव पड़ेगा, पीएम मोदी ने स्पष्ट तौर पर वुहान वायरस के मूल स्त्रोत की उत्पत्ति के निष्पक्ष जांच की मांग की।
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लेकिन वुहान वायरस के मूल स्त्रोत पर जांच की बात चले, और चीन चुप रहे, ऐसा भला हो सकता है क्या? चीनी राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने दबी ज़ुबान में ही सही, परंतु विरोध करते हुए कहा, “हमें ये सुनिश्चित करना होगा कि कोविड का मूल स्त्रोत ढूँढने का अभियान राजनीतिकरण का अखाड़ा न बने। हमें कोविड 19 के विरुद्ध एकजुट होना होगा, और ये सुनिश्चित करना होगा कि कोविड दोबारा न उत्पन्न हो और इसके आड़ में किसी भी राष्ट्र को बदनाम किया जा सके” –
लेकिन जो जिनपिंग और चीनी प्रशासन अमेरिका द्वारा कोविड की उत्पत्ति पर जांच को लेकर उसे ‘देख लेने’ की धमकियाँ देता फिरता हो, वो भारत के समक्ष भीगी बिल्ली क्यों बना हुआ है? आखिर पीएम मोदी ने ऐसा क्या कह दिया कि न चाहते हुए भी शी जिनपिंग को दबी जुबान में विरोध करना पड़ा?
इसके पीछे तीन प्रमुख कारण है। सर्वप्रथम तो ब्रिक्स सम्मेलन की अध्यक्षता ही भारत कर रहा था, और यदि भारत के विरुद्ध जिनपिंग कुछ भी बोलता, तो नरेंद्र मोदी उन्हे हल्के में कतई नहीं लेते। इसके अलावा अभी हाल ही में SCO यानि शंघाई कोऑपरेशन संगठन का सम्मेलन होने वाला है, जिसमें भारत और चीन की कूटनीतिक भिड़ंत होनी तय है, क्योंकि संभवत: वांग यी और सुब्रह्मण्यम जयशंकर आमने सामने होंगे।
परंतु बात यहीं पर समाप्त नहीं होती। जिनपिंग की दबी जुबां की जड़ें कहीं न कहीं LAC से भी जुड़ी हैं। हम सब इस बात से परिचित हैं कि कैसे पिछले वर्ष भारत ने चीन के घमंड को धूल में मिला दिया था। यदि चीन ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को ललकारने का प्रयास किया, तो वह भली-भांति जानता है कि भारत उसका पाकिस्तान से भी बुरा हाल करेगा। इसीलिए कोविड की उत्पत्ति को लेकर जब पीएम मोदी ने चीन की सार्वजनिक बेइज्जती की, तो भी शी जिनपिंग दांत भींचते हुए रह गए।