अमेरिका से लेकर रूस एवं ब्रिटेन तक के सुरक्षा अधिकारी लगातार भारत के दौरे कर रहे
अफगानिस्तान में तालिबान के उदय के साथ ही वैश्विक स्तर पर सुरक्षा के संबंध में संदेह की स्थिति है। ऐसे में जब चीन तालिबान के प्रति अपनी महत्वाक्षाओं के कारण उससे प्रेम दिखा रहा है, तो भारत का दक्षिण एशिया में प्रभाव बेहद महत्वपूर्ण हो गया है। ऐसे में अमेरिका के सुरक्षा अधिकारी से लेकर ब्रिटेन एवं रूस तीनों ही वैश्विक शक्तियों की नजर भारत पर है, क्योंकि भारत की अफगानिस्तान के संबंध में नीति वैश्विक कूटनीति एवं सुरक्षा के लिहाज से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
वहीं ब्रिटेन की MI6 के चीफ रिचर्ड मोरे पिछले हफ्ते ही भारत दौरा करके गए हैं। ये सारा घटनाक्रम उस वक्त हो रहा है, अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता हथियाने के साथ ही सरकार का घटन करने की तैयारी कर रहा है। भारत का रुख अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद केवल इतना ही है कि वो अपने नागरिकों को निकालने पर प्रतिबद्ध है। इसके विपरीत जहां पाकिस्तान चीन जैसे देश तालिबानी सरकार के गठन होते ही उसे मान्यता देने को आतुर हैं। वहीं मोदी सरकार की नीति अभी तक तालिबान के विरोध की ही है।
ऐसे में तालिबान का अफगानिस्तान में उदय होने पर भारत का महत्व दक्षिण एशिया की कूटनीतिक एवं सुरक्षा की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। ऐसे में भारत दौरे पर आए अमेरिकी खुफिया एजेंसी के चीफ विलियम बर्न्स ने भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मुलाकात की है। इसी तरह रूस के सुरक्षा परिषद सचिव सुरक्षा परिषद के सचिव जनरल पात्रुशेव भी दो दिवसीय यात्रा पर भारत में ही हैं। सीआईए चीफ के दौरे को लेकर कहा जा सकता है कि वो भारत को अफगानिस्तान के मुद्दे पर विशेष महत्व दे रहे हैं। डोभाल से सीआईए चीफ की मुलाकात मंगलवार को हुई और खबरें हैं कि बर्न्स चाहते हैं कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद भारत क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए इंटेलिजेंस साझा करे। वहीं वो इसमें भारत का खुला समर्थन भी चाहते हैं।
वहीं न्यूज 18 की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका भारत से वॉशिंगटन के साथ ज्यादा से ज्यादा ग्राउंड इंटेलिजेंस साझा करने की इच्छा रखता है। अमेरिका कुछ अफगानी नागरिकों को भारत में शरण भी दिलवाना चाहता है, जो कि सुरक्षा के लिहाज से भारत एवं अमेरिका दोनों के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं। अमेरिका की तरह ही दुनिया की कथित दूसरी महाशक्ति रूस के सुरक्षा परिषद के सचिव जनरल पात्रुशेव भी दो दिवसीय भारत दौरे पर हैं। उनकी ये यात्रा पिछले महीने 24 अगस्त की पुतिन एवं पीएम मोदी के बीच टेलीफोनिक बातचीत के बाद हो रही है। इस मुद्दे पर विदेश मंत्रालय ने भी बयान जारी करते हुए कहा, “निकोले पात्रुशेव अफगानिस्तान पर उच्च स्तरीय भारत-रूस अंतर-सरकारी मंत्रणा के लिए श्री डोभाल के निमंत्रण पर भारत की दो दिवसीय यात्रा पर हैं। सुरक्षा परिषद के रूसी सचिव का आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर से भी मुलाकात करने की उम्मीद है।”
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स्पष्ट है कि जब तालिबान अफगानिस्तान में कट्टरपंथी सरकार बनाने की योजना बना रहा है, तो उसी समय सीआईए एवं रूस के सुरक्षा संबधी अधिकारी भारत का रुख देखने के लिए भारत की यात्रा पर हैं। इतना ही नहीं, ब्रिटेन की MI6 के चीफ रिचर्ड मोरे भी पिछले सप्ताह भारत की यात्रा कर चुके हैं। हालांकि, ब्रिटेन का रुख पाकिस्तान के प्रति अफगानिस्तान के मामले मे नर्म रहा है, किन्तु उनके लिए भारत का सहयोगी दिखना महत्वपूर्ण है।
One more visitor to New Delhi may have gone unnoticed in the past week : the Chief of British MI6, Richard Moore. It is anybody’s guess what he wanted in India after the UK appears to have blatantly sided with Pakistan over the situation in Afghanistan.
— Nitin A. Gokhale (@nitingokhale) September 8, 2021
अफगानिस्तान की ताजा हालत की बात करें तो अमेरिका अफगानिस्तान से निकल चुका है, किन्तु वो वहां की स्थिति पर नजर रखना चाहता है। इसके विपरीत रूस को भी तालिबान के कारण अपने यहां आतंकवाद का खतरा दिख रहा है। दूसरी ओर इन दोनों ही देशों ने कश्मीर के मुद्दे पर तालिबान के विरुद्ध बयानबाजी की है। ऐसे में भारत का रुख तालिबानी आतंकियों के प्रति नकारात्मक ही रहा है। ऐसे में यदि दक्षिण एशिया में कोई राष्ट्र तालिबान को कंट्रोल कर सकता है तो वो भारत ही है। यही कारण है कि भारत में अमेरिका से लेकर रूस एवं ब्रिटेन तक के सुरक्षा अधिकारी लगातार दौरे कर रहे हैं, जिससे भारत के माध्यम से अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान पर दबाव बना रहे।