जब से केंद्र की मोदी सरकार ने ओबीसी और EWS वर्गों के लिए आरक्षण की घोषणा की है, तब से कई स्वार्थी बाहर निकाल आए हैं। ऐसे लोग सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि NRI भी हैं। NRI का एक वर्ग नीट (NEET) परीक्षाओं में अपने आरक्षण को लेकर मांग करने में जुटा हुआ है क्योंकि नए नियमों के बाद NRI तबके को कोई भी अतिरिक्त आरक्षण देने का प्रावधान नहीं है। सरकार के इस निर्णय से कई प्रवासी भारतीय रुष्ट तो हैं ही अपितु इस निर्णय के विरुद्ध न्यायालयों के द्वार पर अपनी पीड़ा को लेकर पहुँच गए हैं। यहाँ सवाल यह उठता है कि क्या NRI द्वारा आरक्षण की मांग वैध है?
दरअसल, राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) में NRI भी हिस्सा ले सकते हैं, लेकिन अब उनके आरक्षण पर विवाद खड़ा हो गया है। हाल ही में जो नीट (NEET) परीक्षा का फॉर्म निकला था, जब उसमें छात्र NRI का विकल्प चुन रहे थे, तो उन्हें अगले पेज पर श्रेणी में ओबीसी-एससी-एसटी की जगह सिर्फ सामान्य श्रेणी का विकल्प मिल रहा था। इस वजह से एक वर्ग मामले को लेकर हाईकोर्ट में पहुंचा है।
जब रोहित विनोद नामक एक NRI ने इस साल नीट (NEET) के लिए आवेदन किया, तो ऑनलाइन फॉर्म ने उन्हें अपनी राष्ट्रीयता का चयन करने के लिए कहा और भारतीय नागरिक, जो कुवैती निवासी है, ने “NRI” विकल्प का चयन किया। हालांकि, अगले पृष्ठ पर जिसमे उन्हें श्रेणी का चयन करने के लिए कहा, उन्हें केवल “सामान्य” का विकल्प दिया गया था, हालांकि उन्हें उम्मीद थी कि वे अन्य पिछड़े वर्गों को चुनने और उस समुदाय के छात्रों के लिए आरक्षण का लाभ उठाने में सक्षम होंगे। जब ऐसा नहीं हुआ तब रोहित जैसे कई छात्र निराश हो गए और कोर्ट का रुख करने लग गए।
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वहीं, ऐसी स्थिति में यदि भारतीय शिक्षण व्यवस्थाओं के नई नियमावली को एक भारतीय के तौर पर देखा जाए तो यह अपने देश में रह रहे छात्रों को सुलभ अवसर प्रदान करने के लिए उठाया गया कदम है। देश के रहवासी जो आर्थिक पक्ष से उतने सबल नहीं होते उनके लिए यही शिक्षण प्रणालियाँ और संस्थान संजीवनी बूटी के समान होते हैं क्योंकि यही छात्र अपने सामर्थ्य और कौशल के बल पर आरक्षण का लाभ उठाने के लिए सदैव आशन्वित रहते हैं। ऐसे में अब भारत के बाहर रह रहे, दूसरे देश की नागरिकता का सुख भोगने और ही वहीं के होकर रह जाने वाले भारतीय बंधुओं को अब और वरीयता चाहिए। जहां एक ओर इन्हें पूर्व में ही NRI के टैग के साथ परीक्षार्थी बनने का अवसर मिल रखा है, अब उन्हें जातिगत आरक्षण का भी लाभ चाहिए, यानि अपने देश की प्रतिभा को दरकिनार कर उन स्वार्थी तत्वों को आरक्षण की लाठी दे दी जाए जो यह एक ही व्यक्ति को दो-दो लाभ देने वाली बात हो जाएगी।
विभिन्न छात्रों द्वारा दायर याचिकाओं पर अब यह मामला केरल उच्च न्यायालय में लंबित है। यह सवाल उठाता है कि क्या NRI सामुदायिक आरक्षण के लिए पात्र हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि वे इस सिद्धांत पर काम कर रहे हैं कि एक उम्मीदवार केवल एक कोटा श्रेणी का विकल्प चुन सकता है, भले ही वह कई श्रेणियों के लिए पात्र हो।
अदालत में अपने हलफनामे में, NTA यानी National Testing Agency ने माना कि NRI उम्मीदवारों के लिए ओबीसी श्रेणी को शामिल करना “टिकाऊ नहीं” था। NTA ने आगे काहा कि “NRI पहले से ही एमबीबीएस पाठ्यक्रम के लिए एक अलग आरक्षित श्रेणी है। याचिकाकर्ता को उप-आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता है।”
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साथ में यह बात भी अवश्य स्वीकार करनी चाहिए कि यह NRI वर्ग अपने-अपने देशों में शिक्षण ग्रहण कर सकते हैं परंतु मूल भारतीय और वंचित तबके से नाता रखने वाले छात्र ऐसा करने में फिलहाल सक्षम नहीं हैं। यूं तो कई सरकारी स्कॉलर्शिप प्रोग्रामों के तहत कई छात्र विदेशों में अपना शिक्षण प्राप्त कर रहें हैं लेकिन बात वही है कि लाभ कम हैं और लाभ के लिए अभ्यार्थी अधिक हैं। ऐसे में यह निर्णय इन्हीं छात्रों और देश कि समृद्धता के हित में है, जिसपर किसी को भी संकोच नहीं होना चाहिए।