उत्तर भारत में ठंड आने के साथ ही दिल्ली और एनसीआर का प्रदूषण एक गहन चिंता का विषय बन जाता है। इसे रोकने के लिए तमाम तरह की तैयारियां तो की जाती है, किंतु वो कितनी लाभदायक हैं, ये कभी तय ही नहीं हो पाया। इस प्रदूषण के लिए प्रत्येक वर्ष सर्वाधिक जिम्मेदार पंजाब-हरियाणा के किसानों द्वारा पराली जलाने को माना जाता है। ऐसे में भारतीय कृषि अनुसंधान ने पूसा नाम एक बायो डी-कंपोजर तैयार किया है, जो कि पाराली को बिना प्रदूषण नष्ट करने में कारगर तो होगा ही, साथ ही पूसा डी कंपोजर (Pusa decomposer) से कारगर खाद का भी उत्पादन होगा, जो कि किसानों के लिए भविष्य की खेती के लिहाज से फायदेमंद होगी।
पूसा डी कंपोजर : न पराली जलेगी, न होगा प्रदूषण
ठंड आने को है और धान की फसल तैयार खड़ी है, संभाववनाएं है कि अगले माह की शुरुआत में ही इसे काटा जाएगा। फसल की कटाई के बाद इसी बची खरपतवार और खराब चीजों को किसान हर बार जलाते हैं। इसी कटाई से होने वाले धुएं से सबसे ज्यादा बुरा असर दिल्ली एनसीआर के पर्यावरण पर पड़ता है। ऐसे मे भारतीय कृषि अनुसंधान द्वारा बनाया गया पूसा डी-कंपोजर एक बड़ी भूमिका निभा सकता है, और इससे लेश मात्र भी प्रदूषण नहीं होगा। खबरों के मुताबिक दिल्ली हरियाणा पंजाब में इसका प्रयोग एक एतिहासिक कदम हो सकता है।
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क्या है पूसा डी कंपोजर?
दरअसल, पूसा डी-कंपोजर भारतीय कृषि अनुसंधान द्वारा ही निर्मित है। फसलों की कटाई के बाद खेतों की गंदगी हटाने के लिए जो पराली जलाई जाती थी, इस डी-कंपोजर के प्रयोग से वो स्थिति बिल्कुल ही खत्म हो जाएगी। पूसा डी कंपोजर का छिड़काव करने के बाद जो भी वेस्टेज होगा, वो सारा खाद में बदल जाएगा, जो कि खेतों की उर्वरकता को भी मजबूती प्रदान करेगा और पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की समस्या भी खत्म हो जाएगी।
मोदी सरकार ने कृषि कानूनों में जो प्रावधान घोषित किए हैं, उनमें पराली जलाने को लेकर भी सख्त नियमों का भी उल्लेख है। ऐसे में किसानों के सामने ये सवाल उठता था , कि पराली जलाने का विकल्प क्या होगा। ऐसे में पूसा के आने के बाद से ये समस्या खत्म हो गई है। पूसा को लेकर ये दावा है कि एक किलो पूसा डी कंपोजर के छिड़काव के जरिए 1 एकड़ खेत की सफाई हो सकती है।
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पर्यावरण और राजनीति दोनों का अंत
एशिया का पहला कृषि संस्थान बिहार के समस्तीपुर जिले में पूसा नामक गाँव में स्थापित किया गया था; इसे इम्पीरियल एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट कहा जाता था। IARI द्वारा रिसर्च के बाद इस डी-कंपोजर का नाम PUSA (पूसा) ही उपयोग में लाया जाता है। ऐसे में ये माना जा रहा है कि इस साल ठंड में पराली जलाने के कारण जो प्रदूषण देखा जाता है, वो नहीं नहीं दिखेगा। इससे न केवल पर्यावरण के नाम पर होने वाली राजनीति का अंत होगा, अपितु पंजाब हरियाणा के किसानों को लेकर जो नकारात्मक भाव रहता था, उसका भी अंत हो जाएगा।