तथागत रॉय इकलौते भाजपा नेता हैं जो ममता को CM बनने से रोक सकते हैं

तथागत रॉय

चुनावी रण की स्थिति अपने अनुकूल बनाने के लिए राजनीतिक पार्टियां साम दाम दण्ड भेद का प्रयोग करती हैं अर्थात अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ती। पश्चिम बंगाल में भी कुछ ऐसा ही है, राज्य के विधानसभा चुनावों में 3 से 77 सीटों पर आई बीजेपी अब ममता को उपचुनावों में पटकनी देने के लिए अपने अनुभवी और विश्वासपात्र नेता पर दांव लगाने की योजना बना चुकी है। तथागत रॉय भाजपा के इकलौते ऐसे नेता हैं जो ममता को फिर CM बनने से रोक सकते हैं।

भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा भवानीपुर के लिए उपचुनाव की तारीख की घोषणा के एक दिन बाद, भाजपा नेतृत्व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ उम्मीदवार का चयन करने की प्रक्रिया में जुट चुका है। इस कड़ी में राज्य की 3 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों में भवानीपुर सीट से ममता बनर्जी को टक्कर देने के लिए बीजेपी की ओर से जिन संभावित उम्मीदवारों के नाम पर सबसे ज्याजा चर्चा में हैं उनमें अभिनेता से नेता बने रुद्रनिल घोष, पूर्व राज्यपाल तथागत रॉय, पूर्व टीएमसी सांसद दिनेश त्रिवेदी और बीजेपी नेता डॉक्टर अनिर्बान गांगुली शामिल हैं। हालांकि, इनमें भी पूर्व राज्यपाल तथागत रॉय का नाम शीर्ष पर है।

कोलकात्ता मेट्रो के प्रोजेक्ट डिजाइनर तथागत रॉय का राजनितिक जीवन 1990 में बंगाल की राजनीति से शुरू हुआ था।  तथागत रॉय का नाम राज्य के शीर्ष बीजेपी नेताओं में आता है क्योंकि वो संघ में पीएम मोदी के साथ प्रचारक रहने के साथ ही बंगाल की सक्रिय राजनीति में बीजेपी के लिए काफ महत्वपूर्ण भी हैं। रॉय ना केवल प्रखर वक्ता, कुशल लेखक और प्रबुद्ध व्यक्ति हैं बल्कि सिद्धहस्त संगठक भी हैं। ज्ञात हो कि, यह रॉय ही थे जिन्होंने गुजरात दंगों के दौरान पीएम मोदी के बचाव में कहा था कि उनसे साहसी नेता कोई नहीं हैं। बता दें कि तथागत रॉय 2002-2006 तक प्रदेश भाजपा के मुखिया थे और 2002-2015 तक भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य थे। तथागत रॉय की छवि बेदाग मानी जाती है और वह मतदाओं में भी अच्छी पकड़ रहते हैं।

ममता को टक्कर देने के लिए वो इस वक्त सबसे अनुभवी बीजेपी नेता हैं, ममता के हर दांव को काउंटर करने के लिए जिस प्रकार पूर्व टीएमसी नेता सुवेंदु अधिकारी को बीजेपी अपना शस्त्र बना प्रयोग करती आई है अब तथागत रॉय का इस्तेमाल भी बखूबी कर सकती है। टीएमसी जब एनडीए के साथ हुआ करती थी उस समय से ही तथागत रॉय ममता के हर निर्णय पर पैनी दृष्टि रखते आ रहे हैं। बंगाल की सियासत में अच्छी पकड़ होने की वजह से उनका अनुभव चुनाव के दौरान निश्चित ही काम आएगा और भवानीपुर का रास्ता ममता के लिए कांटों से भरा साबित हो सकता है। ऐसे में अब तथागत रॉय एकमात्र ऐसे अनुभवी नेता हैं जो निश्चित ही ममता को भवानीपुर में न केवल टक्कर दे सकते हैं, बल्कि हराकर उनके सीएम पद पर बने रहने के सपने को ध्वस्त करने की क्षमता रखते हैं। बता दें कि भवानीपुर से ही 2014 में बीजेपी के तथागत रॉय को टीएमसी के सुब्रत बख्शी से 185 वोट ज्यादा मिले थे। हालांकि, सुब्रत बख्शी कुल मिलाकर इस चुनाव को जीतने में सफल रहे थे, लेकिन मात्र 3 साल में यानी कि 2011 से 14 के बीच भवानीपुर में बीजेपी ने सिर्फ अपना आधार बढ़ाया बल्कि टीएमसी से ज्यादा वोट भी ले आई।

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हालांकि, भवानीपुर  ममता बनर्जी का गढ़ भी माना जात है, जहां से वो 2011 के  चुनावों और 2016 में दो बार विधायक चुने जाने के बाद मुख्यमंत्री बनीं थीं, लेकिन 2021 के विधानसभ चुनावों में सुवेंदु अधिकारी से नंदीग्राम में मात खाने के बाद ममता को फिरसे अपने भवानीपुर की तरफ कूच करना पड़ रहा है। हालांकि, अब राह आसान नहीं है, नंदीग्राम की भांति अबकी बार भवानीपुर में भी खेला होने के पूरे आसार हैं, जिसका सबसे बड़ा कारण टीएमसी और ममता की बढ़ती हिंसात्मक प्रवृत्ति तो है है, परंतु अब मतदाता भी कई आधार परखते हुए ही अपना अमूल्य वोट डालते हैं।

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भवानीपुर यूं ही चर्चित नहीं है, यह मात्र ममता के गृह क्षेत्र ही नहीं अपितु अपनी विशेषता के लिए भी जाना जाता है। दरअसल, यहां की आधी आबादी बंगाली तो आधी पंजाबी-गुजराती-मारवाड़ी और दूसरे लोगों की है। मिनी इंडिया के तौर पर प्रसिद्ध भवानीपुर का प्रभुत्व देखते ही बनता है। भवानीपुर की 40 प्रतिशत से अधिक आबादी गैर-बंगाली है, जो इस निर्वाचन क्षेत्र को सबसे अलग बनाती है।

टीएमसी ने जहां एक ओर अपने पत्ते खोलते हुए त्वरित तीनों विधानसभा सीटों के लिये उम्मीदवारों को घोषणा कर दी है, तो वहीं भाजपा का मंथन अभी जारी है। इस बीच, कांग्रेस सोमवार को एक आंतरिक बैठक में फैसला करेगी कि वे स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ेगी या वाम मोर्चे के साथ संयुक्त रूप से उम्मीदवार उतारेगी।

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रुद्रनील घोष, जो हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में भवानीपुर सीट से लड़े थे, वो टीएमसी उम्मीदवार Shaobhandeb Chattopadhyay  से हार गए थे। Shaobhandeb Chattopadhyay ने बाद में ममता बनर्जी के लिए सीट खाली कर दी थी। अब इसी पर उपचुनाव होने जा रहे हैं जो बंगाल में ममता का राजनीतिक भविष्य तय करेगा।

 

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