पैरालंपिक में भारत ने जिस प्रकार का प्रदर्शन किया है, वो अपने आप में एक महान उपलब्धि है। टोक्यो ओलम्पिक में रिकार्ड तोड़ प्रदर्शन के बाद टोक्यो पैरालंपिक में भारत ने तहलका मचा दिया है। पूरा देश हमारे देश के टीम के प्रदर्शन से खुश है। भारत के ज्यादातर लोग भारत की इस खुशी में शामिल हो रहे हैं। देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति समेत सभी महत्त्वपूर्ण लोगों ने भारतीय पैरालंपिक टीम को बधाई दी, लेकिन कुछ लोग हैं जिन्होंने अचानक से चुप्पी साध ली है। ऐसे लोगों में सबसे बड़ा नाम है कांग्रेस पार्टी के राहुल गांधी का। राहुल गांधी अचानक से चुप्पी साध लिए और अब लोग उनसे उनकी चुप्पी का कारण भी पूछ रहे हैं।
Rahul Gandhi stopped congratulating our Paralympic Medal Winners from past 5 days.
Chose Politics Over Nation. 🤣🤣🤣 pic.twitter.com/tpomF3MPRb— AKTK (@AKTKbasics) September 4, 2021
भारत द्वारा 1968 ग्रीष्मकालीन पैरालंपिक खेलों में प्रतिभागिता की शुरुआत की गई थी। 1972 में भाग लेने के बाद वह 2 ओलम्पिक में भाग नहीं ले पाया था। 1984 से भारत ने सभी संस्करणों में भाग लिया है। भारत ने 53 सालों में चार स्वर्ण और इतने ही रजत और कांस्य पदक के साथ पैरालिंपिक में 12 पदक जीते थे। देश की सबसे सफल पैरालंपिक यात्रा 2016 रियो खेलों में थी जब उसने दो स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य जीता था। अब भारत ने अकेले ही 19 पदक जीतकर रिकार्ड कायम किया है। इन 19 पदकों में 5 स्वर्ण, 8 रजत पदक और 6 कांस्य पदक शामिल है।
भारत के लिए सुमित अंतिल, प्रमोद भगत, कृष्ण नगर, मनीष नरवाल, अवनी लखारा, योगेश कथूनीय, निषाद कुमार, मारियप्पन, प्रवीण कुमार, देवेंद्र झाझड़िया, सुहास यतिराज, सिंहराज अधाना, भाविना पटेल, हरविंदर सिंह, शरद कुमार, सुंदर सिंह गुर्जर, मनोज सरकार ने पैरालंपिक में पदक जीता है। हर भारतीय को इनके उपलब्धि पर गर्व है। इस बार देश की ओर से 19 खिलाड़ी भाग लिए थे जिन्होंने 19 पदक दिलाया है।
पर राहुल गांधी चुप क्यों है? सारे संभावित कारणों में एक कारण यह है कि वह पैरालंपिक उपलब्धि के दम पर मोदी सरकार का महिमामंडन नहीं करना चाहते है। ज्ञात हो कि किसी भी देश के किसी भी खिलाड़ी द्वारा किया गया प्रदर्शन इस बात पर निर्भर करता है कि उस देश में उसे ट्रेनिंग कोच मिले, जरूरी बुनियादी सुविधाएं मिले, ढांचा मिले, जगह मिले और बाहर भेजने के लिए सरकार के तरफ से समर्थन और फंड मिले। एक तरीके से यह कहा जा सकता है कि खिलाड़ियों के प्रदर्शन में राज्य तंत्र और तंत्र संचालक की बड़ी भूमिका होती है।
इस भूमिका को भले ही नजरअंदाज करके राहुल गांधी राजनीति को देश से ऊपर रख रहे हो लेकिन जले पर नमक खुद खिलाड़ी ही छिड़क रहे हैं। आपको बतातें चले कि देश द्वारा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा निजी तौर पर जिस तरह का प्रोत्साहन दिया गया है, उसको पैरालंपिक पदकधारी भी बता रहे हैं।
भारतीय जैवलिन खिलाड़ी देवेंद्र झाझड़िया ने रजत पदक जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मदद और समर्थन के लिए उन्होंने धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने कहा, ” मैं अपने कोच और फिटनेस ट्रेनर को धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने मुझे लगातार पांच साल तक प्रशिक्षित किया और मेरे फिटनेस का ध्यान रखा। मैं प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को भी धन्यवाद देना चाहता हूं क्योंकि उन्होंने खेलों के लिए प्रस्थान करने से पहले हमारा समर्थन किया, हमें प्रोत्साहित किया और हमारा मनोबल बढ़ाया।”
एथलीट शरद, जिन्होंने कांस्य पदक जीता था। उन्होंने बताया कि अमेरिका के एथलीट भी यह कह रहे थे कि भारतीय सरकार द्वारा दिया गया समर्थन मेडल से ज्यादा जरूरी है। एक इंटरव्यू में शरद ने बताया, “आप टोक्यो 2020 को देखिए, जापान सरकार पैरालंपिक को ओलंपिक से भी बड़ा आयोजन बनाना चाहती थी। भारत में कोई भी निजी शेयर बाजार हमारी मदद के लिए आगे नहीं आया था। तब सरकार ने कदम बढ़ाया, हमें महंगे उपकरण और हमारी जो भी ज़रूरतें थीं, उसे हमें उपलब्ध कराया गया था। सरकार द्वारा शारीरिक रूप से अक्षम लोगों की अधिक सराहना की जा रही है।
शरद ने यह भी बताया कि Devendra Jhajharia, एथेंस खेलों में अपने खर्चे पर गए थे। अब प्रधानमंत्री हमें विदा कर रहे हैं और हमें हमारी उपलब्धियों के बारे में बता रहे हैं। यहां तक कि मेरे इवेंट में गोल्ड मेडल जीतने वाले यूएसए एथलीट ने भी कहा ‘इससे बड़ा कुछ नहीं हो सकता, यहां तक कि गोल्ड मेडल भी नहीं’। विश्व की 15% जनसंख्या शारीरिक/मानसिक रूप से विकलांग है। अब भारत सरकार इसे देख रही है और हमें समानता देने की कोशिश कर रही है। सरकार आवश्यकताओं को उपलब्ध करा रही है, चाहे वह उपकरणों की हो या अन्य सुविधाओं की, सरकार उनका विश्लेषण कर रही है और उन्हें मंजूरी दे रही है।
राहुल गांधी जानते हैं कि अगर वह उपलब्धि पर बधाई देंगे तो जनता उपलब्धि के पीछे सरकार के समर्थन और प्रोत्साहन पर भी कुछ शब्द कहने पर मजबूर कर देगी जो राहुल गांधी नहीं चाहते हैं। भारत के एथलीट अपने पैसों पर एथेंस ओलंपिक में जाने से लेकर सरकार द्वारा हर प्रकार के समर्थन प्राप्ति तक, भारत एक लम्बा सफर तय कर चुका है और उसके पीछे हुए नीतिगत बदलावों को राहुल गांधी सबके सामने नहीं लाना चाह रहे है, लेकिन उन्हें नहीं मालूम है कि हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या! देश इस उपलब्धि को जान रहा है।