कुछ लोगों को देखकर न जाने क्यों एक कहावत याद आती है, रस्सी जल गई पर बल नहीं गया। ये बात यूके पर भी चरितार्थ होती है। यूके भली-भांति जानता है कि भारत से भिड़ने का दुष्परिणाम क्या होता है, जो चीन भुगत भी रहा है। यूके ने ये भी देखा है कि कैसे वैक्सीन को लेकर घटिया रूल लगाने पर ईयू को भारत ने वैश्विक स्तर पर पटक-पटक के धोया था। इसके बाद भी यूके के वैक्सीन अधिनियमों में वर्तमान संशोधन से स्पष्ट होता है कि अँग्रेज़ों की मानसिकता अंदर से आज भी उतनी ही नस्लभेदी है, जितनी ब्रिटिश राज के दौरान हुआ करती थी, जब वे अपने संस्थानों के बाहर तख्ती लगाते थे ‘डॉग्स एंड इंडियन्स नोट अलाउड’ [कुत्तों और भारतीयों का प्रवेश वर्जित है]।
वो कैसे? असल में यूके ने हाल में ट्रैवल से संबंधित अपने अधिनियमों में संशोधन किया है, जिसके अंतर्गत संयुक्त अरब अमीरात, भारत, तुर्की, रूस, थायलैंड, अफ्रीका या दक्षिण अमेरिका से जो भी टीकाकरण करके आया है, चाहे उसने दोनों डोज़ भी सफलतापूर्वक लगवाई हो, परंतु उसे ‘Unvaccinated’ यानि टीकाकरण रहित गिना जाएगा। इन्हे यूके आने पर 10 दिन के आवश्यक क्वारंटीन से भी गुजरना पड़ेगा।
अजीब बात तो यह है कि इसी सूची से ऑस्ट्रेलिया, इज़राएल, बहरीन, सऊदी अरब, सिंगापुर एवं दक्षिण कोरिया जैसे देशों को बाहर रखा गया, जिन्हे यूके के AstraZeneca वैक्सीन की ही डोज़ लगवाई गई है। इसी AstraZeneca की मूल कंपनी ने भारत के सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के साथ मिलकर COVISHIELD वैक्सीन का निर्माण भी किया। ऐसे में प्रश्न तो स्वाभाविक है – ये भेदभाव क्यों? एक ही कंपनी के दो अलग अलग वैक्सीन, जो दो अलग अलग देशों में लगाए गए, परंतु एक देश पर कोई रोक नहीं, और दूसरे देश पर प्रतिबंध। किसको बेवकूफ बना रहा है यूके?
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लगता है यूके ने यूरोपीय संघ के अनुभव से कोई सीख नहीं ली है। कुछ महीनों पूर्व यूरोपीय संघ के अनेकों देशों ने भी भारत के साथ यही नौटंकी करने का प्रयास किया था, जब उन्होंने भारत की दोनों वैक्सीन, ‘कोविशील्ड’ और ‘कोवैक्सिन’ को मान्यता देने से ही मना कर दिया था। लेकिन भारत ने भी हार नहीं मानी, और उलटे यूरोपीय यूनियन को स्पष्ट चेतावनी दी कि यदि उन्होंने अपने घटिया नियम वापस नहीं लिया, तो जितने भी देशों ने भारतीय वैक्सीन लगवाने वाले यात्रियों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया है, उन देशों के यात्रियों को भारत में 14 दिन के क्वारंटीन से गुजरना पड़ेगा। यूरोपीय यूनियन भारत के इस प्रतिघात से क्लीन बोल्ड हो गया और कुछ ही दिनों में उसने यह विवादास्पद निर्णय वापिस ले लिया।
इसी बीच विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने भी मामले का संज्ञान लेते हुए यूके के विदेश मंत्रालय से बातचीत शुरू कर दी है, और वे आशान्वित है कि जल्द ही यूके अपने निर्णय में संशोधन अवश्य करेगा। ऐसे में अब यूके के पास दो ही विकल्प है – या तो चुपचाप अपने विवादास्पद निर्णय को वापिस लेकर भारत से सार्वजनिक तौर पर क्षमा याचना करे, अन्यथा अपनी सार्वजनिक बेइज्जती करवाने के लिए तैयार रहे, जैसे पिछले कई वर्षों से पाकिस्तान की और पिछले वर्ष से चीन की हो रही है।