माओवादियों और नक्सलियों ने देश की आंतरिक सुरक्षा में सदैव ही खतरे पैदा किए हैं, किंतु मोदी सरकार आने के बाद से नक्सलवाद पर ताबड़तोड़ कार्रवाई हो रही है। इन नक्सलियों पर कार्रवाई का एक बड़ा अध्याय साल 2018 में संपन्न हुआ था, जब महाराष्ट्र के भीमा की कोरेगांव में हुई हिंसा के बाद शहरों में बैठे नक्सलियों के आकाओं पर कार्रवाई की गई थी। ऐसे में माओवादियों की कमर ही टूट गई थी, जिसके बाद से अब नक्सलियों ने पुनः शहरों में अपना नेटवर्क मजबूत करने के लिए भर्तियां करना शुरू कर दिया है। इस भर्ती के पीछे मुख्य कारण शहरों के जरिए बौद्धिक आतंकवाद प्रसार करना है, जो कि एक सुरक्षा व्यवस्था के लिए ख़तरा हो सकता है।
भीमा कोरेगांव की हिंसा के बाद ये मामला सामने आया था कि माओवादी पूर्व पीएम राजीव गांधी की तरह ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की प्लानिंग भी कर रहे थे। ऐसे में इनके नेटवर्क को खत्म करने के लिए ताबड़तोड़ कार्रवाई हुई हैं, किंतु अब ये नक्सली एक बार फिर से एक्टिव हो गए हैं। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि माओवादी दिल्ली, मुंबई, पुणे, कोलकाता जैसे शहरी इलाकों में अपना नेटवर्क पुनः विकसित करने लगे हैं, जिसके लिए बड़े स्तर पर कार्यकर्ताओं की भी भर्ती की जा रही है।
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रिपोर्ट्स के मुताबिक सीपीआई ने सात केंद्रीय समितियों को भर्तियों के लिए नियुक्त किया है। इतना ही नहीं ये लोग एक समय के अंतराल में आपस में चर्चा करने के लिए जमा होते हैं और ये सारा काम जूम मीटिंग की बैठकों के जरिए ही होता है। सर्वाधिक चिंताजनक बात ये है कि दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, जादवपुर विश्वविद्यालय जैसे प्रमुख भारतीय विश्वविद्यालयों में माओवादियों की पैठ पुनः मजबूत होने लगी है, ऐसे में यदि कोई कार्रवाई नहीं की गई तो एक नया विद्रोह जन्म ले सकता है।
खबरों के मुताबिक ये लोग जाति, धर्म, पिछड़ों आदि के मुद्दे उठाकर लोगों को भड़काने के लिए काम करना शुरू कर रहे हैं। ये नक्सली विद्रोही युवाओं को कट्टरपंथी बनाना चाहते हैं। साथ ही दिल्ली और कोलकाता के प्रमुख विश्वविद्यालयों में पहले से ही उनका एक मजबूत नेटवर्क है, जिससे उन्हें भर्ती करने में अधिक परेशानियां भी नहीं हो रही हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण और खतरनाक बात ये है कि ये माओवादी गोरिल्ला वॉलफेयर को विस्तार देने के लिए विद्रोहियों को सर्वाधिक ट्रेनिंग दे रहे हैं।
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वामपंथी और माओवादी पुनः देश को बौद्धिक आतंकवाद के जरिए अस्थिर करने की कोशिश करने लगे हैं। इन माओवादियों की अन्य प्रमुख योजना भारत, बांग्लादेश और नेपाल में समान विचारधारा वाले संगठनों के बीच एक समन्वय नेटवर्क स्थापित करने की भी है। वे इन क्षेत्रों में वामपंथी चरमपंथियों की निर्बाध आवाजाही को सुगम बनाना चाहते हैं और हथियारों, गोला-बारूद और सूचनाओं का आदान-प्रदान करना चाहते हैं।
ऐसे में अब मोदी सरकार के लिए ये सबसे बड़ी चुनौती है कि वो इन नक्सलियों के नेटवर्क को बनने से पहले ही खत्म करने का प्रयास करे, संभवतः इन मामलों पर सुरक्षा एजेंसियों की नजरें भी होंगी। खबरों से हो रहा पर्दाफाश अब मोदी सरकार के लिए एमरजेंसी अलार्म साबित हो रहा है।