राजनीतिक ठेकेदार होने का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि एक चुनाव में आप जिसको विजयी बनाने के लिए लड़ रहे थे, अगली बार शायद उनके विरुद्ध आपको चुनाव लड़ना पड़ सकता है। यह दो धारी तलवार है। समस्या तो यह भी है कि एक म्यान में दो तलवार आप नहीं रख सकते है, आपको एक समय में, एक ही राजनीतिक दल के लिए लड़ाई लड़ना होगा। अब इसी संकट से प्रशांत किशोर जूझ रहे हैं। एक तरफ वो कांग्रेस को युवा राजनेताओं का दल बनाना चाहते है तो दूसरी ओर वह 9 बार के विधायक फ्लेरियो को कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल करवा रहे है। इस कदम से जितने झटके में कांग्रेस है, उतने ही सदमे में तृणमूल कांग्रेस है, क्योंकि दूध का जला छाँछ भी फूंक कर पीता है। यह भी हो सकता है कि भविष्य में तृणमूल कांग्रेस की वह स्थिति हो जो आज कांग्रेस की है।
खबर यह है कि प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के पुराने नेता लुइजेनहो फ्लेरियो का सम्बंध पार्टी से खत्म करवा दिया है और अब फ्लेरियो तृणमूल कांग्रेस के सदस्य हैं। गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके फ्लेरियो के इस कदम से राजनीतिक संकट उत्पन्न हो गया है। सात बार विधायक रहने वाले फेलेरियो 1999 में गोवा के मुख्यमंत्री बने थे। अब उन्होंने तृणमूल कांग्रेस के बैनर तले गोवा विधानसभा का चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। समाचार चैनल एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू में गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फलेरियो ने कहा कि प्रशांत किशोर और उनकी टीम IPAC ने उनसे संपर्क किया था।
आपको बताते चलें कि तृणमूल कांग्रेस गोवा के सभी 40 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और किसी दल से समझौता नहीं करेगी। नए पार्टी में आने के बाद फ्लेरियो ने कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए कहा है कांग्रेस तो गोवा में सरकार बनाना ही नहीं चाहती है।
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कभी खुशी कभी गम
लंबे समय तक कांग्रेस के साथ रहने वाले प्रशांत किशोर, पार्टी के काफी करीब माने जाते थे। प्रशांत कई चुनावों में कांग्रेस के लिए सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं। यह बात भी सत्य है कि प्रशांत किशोर जैसे व्यक्तियों का कोई भी दल सगा नहीं होता है। वह लंबे समय तक कांग्रेस के साथ थे और शायद इसीलिए वह कांग्रेस की हाईलेवल मीटिंग में अभी भी बुलाए जाते हैं।
हाल ही में कन्हैया कुमार ने कांग्रेस का दामन थामा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कन्हैया कांग्रेस में शामिल होने से पहले दो बार राहुल गांधी से मिल चुके हैं। इन बैठकों के दौरान चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी मौजूद थे। खबर तो यह भी थी कि कन्हैया कुमार के अलावा, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को कांग्रेस में शामिल करने की बातचीत भी अंतिम चरण में है। ऐसे संकेत हैं कि अगर उनकी बातचीत का सकारात्मक परिणाम मिलता है, तो वह एक विशेष एआईसीसी पैनल के हिस्से के रूप में शामिल हो सकते हैं। प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को पुराने गार्ड्स को बाहर करने का सलाह दिया है। ऐसा लगता है कि उनकी बातों से ही प्रभावित होकर यह कदम उठाया गया है।
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तेरा मेरा साथ अमर रहे ओ साथी…. मरते दम तक!
खबरों कि माने तो प्रशांत किशोर को कांग्रेस से ज्यादा तृणमूल कांग्रेस में अपना भविष्य नजर आता है। अपने आप को बंगाल का वोटर बनाकर प्रशांत ने यह संकेत दिया है कि शायद उन्हें पश्चिम बंगाल से राज्यसभा सांसद बना दिया जाए। शायद इसीलिए प्रशांत किशोर गोवा में राजनीतिक फायदे के लिए कांग्रेस के खिलाफ खड़े हो गए हैं। गोवा विधानसभा चुनाव से पहले आइपैक की टीम सर्वे पर गई थी और वहीं पर उनकी मुलाकात फ्लेरियो से हुई। फ्लेरियो को शामिल करने में तृणमूल कांग्रेस को दिक्कत नहीं हुई क्योंकि फेलेरियो को भरोसा है कि जिस तरह प्रशांत किशोर की टीम ने पश्चिम बंगाल में कामयाबी दिलायी थी उसी तरह गोवा में भी कमाल होने वाला है। फ्लेरियो द्वारा किए गए इन दावों से सवाल उठता है कि क्या प्रशांत किशोर जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर बड़े फैसलों को प्रभावित कर रहे हैं, अब धीरे-धीरे पुरानी पार्टी को विघटित कर रहे हैं? पूर्व के उदाहरणों पर ध्यान दें तो प्रशांत किशोर ने पंजाब कांग्रेस को बहुत नुकसान पहुंचाया है। यह माना जा सकता है कि वह कांग्रेस पार्टी में Maker नहीं बल्कि Breaker हैं। पंजाब में कैप्टन के सलाहकार बनकर प्रशांत किशोर ने करीब 6 महीने तक काम किया। ऐसे में वो कैप्टन की कार्यशैली को समझ गए, सलाहकार के पद से इस्तीफा देने के बाद से ही कैप्टन के विरुद्ध दिल्ली में मैदान तैयार होने लगा था, और सिद्धू की राहुल-प्रियंका से होने वाली बैठकों के बाद प्रशांत किशोर के साथ भी बैठक होती थी। ऐसे में संभव है कि पंजाब कांग्रेस में हुई सबसे बड़ी उथल-पुथल की वजह प्रशांत किशोर ही हो,
औपचारिक तौर पर प्रशांत किशोर ने भले चुनावी रणनीतिकार की भूमिका छोड़ दी है लेकिन वे पर्दे की पीछे से गोवा में तृणमूल की जीत के लिए सक्रिय भूमिका निभाने वाले हैं। इस तरह यह साफ हो गया कि प्रशांत किशोर भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस के खिलाफ भी राजनीतिक लड़ाई लड़ेंगे। एक तरफ राजनीतिक लाभ है तो दूसरी ओर बड़े पार्टी का साथ। एक तरफ नई कांग्रेस बनाई जा रही है तो दूसरी ओर पुराने कांग्रेस को तोड़ा जा रहा है। प्रशांत किशोर ये दोमुंहा खेल में लग गए तो गए हैं लेकिन ऊंट किस करवट बैठता है, यह देखने योग्य बात होगी।