इस्लामिक धर्मांतरण में PhD हैं तमिलनाडु के MP, अचानक से मन में कई सवाल आ रहे हैं

150 से अधिक हिन्दुओं को करा चुके हैं धर्म परिवर्तन!

थोल थिरुमावलवन

भारत में धर्म परिवर्तन का मुद्दा धार्मिक से अधिक दिलचस्प, राजनीतिक रूप से है। हमारे देश में एक प्रचलित मत लगातार राजनीतिक विमर्श का केंद्र रहा है कि ‘दलितों का धर्मांतरण उनके विकास और समानता से जुड़ा हुआ है।’ इस मत का उपयोग कई मामलों में धार्मिक रूपांतरणों को सही ठहराने और बढ़ावा देने के लिए किया जाता है। थोल थिरुमावलवन का ही मामला ले लीजिये। थोल थिरुमावलवन, विदुथलाई चिरुथिगल काची (वीसीके) के अध्यक्ष है।

वीसीके, जिसे पहले भारत के दलित पैंथर्स या दलित पैंथर्स अय्यक्कम के नाम से जाना जाता था, तमिलनाडु राज्य में जाति-आधारित भेदभाव का सक्रिय रूप से विरोध करता है और तमिल राष्ट्रवाद के कपोल कल्पित स्वप्न भी रखता है। 2019 में, थिरुमावलवन को मनोनमनियम सुंदरनार विश्वविद्यालय द्वारा “मीनाक्षीपुरम दलितों का धार्मिक रूपांतरण — एक पीड़ित अध्ययन” विषय पर शोध के लिए डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया था। थिरुमावलवन के ट्विटर हैंडल में भी उक्त डॉक्टरेट का उल्लेख है।

मीनाक्षीपुरम में धर्म परिवर्तन:

थोल थिरुमावलवन को पीएच.डी. राज्य के राज्यपाल और विश्वविद्यालय के चांसलर बनवारीलाल पुरोहित से दो साल पहले व्यक्तिगत रूप से मनोनमनियम सुंदरनार विश्वविद्यालय द्वारा दी गई। हालांकि, जिस घटना के बारे में थोल थिरुमावलवन ने अपना पीएचडी शोधपत्र  लिखा था, वह लगभग चार दशक पुरानी है।

1981 में तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले के मीनाक्षीपुरम में दलितों के बड़े पैमाने पर इस्लाम में धर्मांतरण ने देश को झकझोर कर रख दिया था। इस घटना में सैकड़ों दलितों को इस्लाम में परिवर्तित कर दिया गया था और इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट ने धर्मान्तरित लोगों की संख्या 1,100 बताई थी।

इंडिया टुडे ने रिपोर्ट करते हुए लिखा था की मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन और उनके कई सहयोगी खुले तौर पर राज्य के बाहर से बड़े पैमाने पर धन को धर्मांतरण के पीछे मुख्य शक्ति के रूप में स्वीकार करते है।

थोल थिरुमावलवन की थीसिस:

वीसीके अध्यक्ष थोल थिरुमावलवन ने इस आरोप से इनकार किया कि मीनाक्षीपुरम धर्मांतरण को कुछ इस्लामी देशों का समर्थन प्राप्त था। थोल थिरुमावलवन ने कहा कि एक परिवर्तित दलित युवक के साथ मीनाक्षीपुरम के 180 परिवारों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया क्योंकि उनका मानना ​​था कि कम से कम नया धर्म उनके लिए आत्म-सम्मान अवश्य सुनिश्चित करेगा। हालांकि, इस सामूहिक धर्मांतरण ने उनका भाग्योदय नहीं किया। उनकी सामाजिक स्थिति जस की तस बनी रही। हालांकि, वे इस्लाम अपनाने के बाद, कम से कम मुख्य सड़क पर एक भोजनालय, एक दुकान या एक चाय की दुकान शुरू करें, या नौकरी की तलाश में खाड़ी में जा सकते थे। इसलिए, धार्मिक रूपांतरण नें उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता दी थी लेकिन मान-सम्मान के मामले में उनकी और दुर्गति हुई।

वीसीके अध्यक्ष थोल थिरुमावलवन ने यह भी दावा किया कि इस्लाम में धर्मांतरण ने उस गांव में दलितों की सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा दिया जहां यह घटना हुई थी। उन्होंने कहा, “देश के अन्य हिस्सों में दलितों ने आर्थिक सशक्तिकरण का अनुभव किया है। फिर भी, वे नियमित रूप से भेदभाव का सामना करते हैं क्योंकि कई लोग धर्मांतरण के बारे में नहीं सोचते हैं। यही कारण है कि मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि मीनाक्षीपुरम में धर्मांतरण के लिए राज्य का दमन प्रमुख कारक था।”

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पैसे के दुरुपयोग का आरोप 

तमिलनाडु के पूर्व सीएम एमजी रामचंद्रन और यहां तक ​​​​कि आर्य समाज जैसे संगठनों ने आरोप लगाया था कि दलितों को इस्लाम में परिवर्तित करने के लिए पैसे का इस्तेमाल किया गया था।

धार्मिक रूपांतरण एक राजनीतिक रूप से विवादास्पद मामला हो सकता है। लेकिन इसके इर्द-गिर्द कानूनी स्थिति बहुत स्पष्ट है। 1977 में ही, सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार में किसी अन्य व्यक्ति को अपने धर्म में परिवर्तित करने का अधिकार शामिल नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “धार्मिक स्वतन्त्रता में इसे मानने और प्रसारित करने अधिकार है परंतु , किसी भी व्यक्ति को अपने धर्म में परिवर्तित करने का मौलिक अधिकार जैसी कोई चीज नहीं हो सकती है।”

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देश में दलितों के उत्पीड़न के आरोप पर धर्मांतरण को न्यायोचित ठहराने की चर्चा को स्पष्ट रूप से आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। यहां तक ​​कि शैक्षणिक संस्थानों और अकादमिक शोध का उपयोग भी इस प्रकार के विचारों को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा  है। इस प्रकार का प्रचलन खतरनाक है। हाल के आंदोलनों में हमने ये स्पष्ट रूप से देखा है कि किस प्रकार भ्रम फैला कर सिखों और दलितों को हिन्दू धर्म से दूर किया जा रहा है जबकि दलित हिन्दू धर्म के वर्ण व्यवस्था का अभिन्न और पवित्रतम अंग है और सिख इनके रक्षण हेतु सर्वदा उद्दत रहने वाला समुदाय।  धर्मान्तरण से जो आरक्षण और सरकारी सुविधा दलितों को मिल रही है वो भी छीन जाएगी। दलितों और सिक्खों को समझना चाहिए की वो भारत के मुकुट के चमकते मणिरत्न है।

 

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