जितना सख्त कानून उतना अधिक दुरुपयोग… अपने अधिकारों का गलत फायदा उठाकर लोगों को प्रताड़ित करना भी एक चलन बन गया है। यही कारण है कि समाज के एक पक्ष की बातों को बिना सोचे-समझे स्वीकार किया जाता है, तो दूसरा पक्ष चाहे जितना भी अपनी सच्चाई साबित करे, उसे नजरंदाज ही किया जाता है। इसका हालिया नमूना हरियाणा में देखने को मिला है, जहां एक 20 वर्षीय लड़की पिछले एक साल में 7 लोगों को बलात्कार का आरोप लगाकर उनके खिलाफ केस दर्ज करा चुकी है। इस मामले का खुलासा होने के बाद अब हरियाणा में इसकी जांच के लिए SIT का गठन किया गया है। वहीं, इस मामले ने कानून के दुरुपयोग के मुद्दे को एक बार फिर हवा दे दी है।
SIT का हुआ है गठन
हरियाणा राज्य महिला आयोग ने सामाजिक कार्यकर्ता दीपिका नारायण भारद्वाज की शिकायत पर संज्ञान लिया है और गुरुग्राम के विभिन्न पुलिस थानों में एक महिला द्वारा दर्ज किए गए कई बलात्कार के मामलों की जांच के लिए एसआईटी के गठन के लिए डीजीपी और सीएम को पत्र लिखा है। पिछले एक साल में खबरों के माध्यम से कुछ शिकायतों को उजागर किया गया है। दिलचस्प बात ये है कि इसी लड़की ने हाल ही में डीएलएफ फेज 3 थाने में एक और रेप का केस दर्ज कराया था।
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सामाजिक कार्यकर्ता और वृत्तचित्र निर्माता नारायण भारद्वाज ने महिला के खिलाफ कथित तौर पर हनी ट्रैपिंग और पुरुषों पर नकली बलात्कार के मामले दर्ज करके लूटने के लिए पुलिस का रुख कर लिया है। शिकायत के अनुसार आरोपी ने सात लोगों के खिलाफ शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने का आरोप लगाते हुए केस दर्ज कराए हैं। खास बात ये है कि सात मामलों में से दो को पुलिस ने झूठा साबित कर दिया है।
इस मामले में शिकायतकर्ता ने कहा, “लड़की ने गुरुग्राम के विभिन्न पुलिस थानों में एक साल के भीतर सात अलग-अलग पुरुषों के खिलाफ बलात्कार के सात मामले दर्ज कराए हैं। उसने अगस्त 2021 में इसी तरह की धमकियों के माध्यम से एक आदमी से शादी करने के बावजूद शादी के वादे पर एक व्यक्ति पर बलात्कार का आरोप लगाया है। उसके दो बलात्कार के आरोप झूठे साबित हुए हैं, लेकिन वह बलात्कार की और शिकायतें दर्ज करना जारी रखे हुए है।”
कार्रवाई की है आवश्यकता
दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने एक केस की सुनवाई के दौरान झूठे बलात्कार के आरोपों को लेकर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं। उन्होंने सुनवाई के दौरान ही कहा था, “बलात्कार के झूठे आरोपों में आरोपी के जीवन और करियर को नष्ट करने की क्षमता है। बलात्कार के झूठे मामले में आरोपी अपना सम्मान खो देता है, अपने परिवार का सामना नहीं कर सकता और उसे जीवन भर के लिए कलंकित किया जाता है।” इतना ही नहीं जस्टिस प्रसाद ने आगे कहा, “छेड़छाड़ और बलात्कार के मामलों से संबंधित झूठे दावों और गंभीर प्रकृति के अपराधों के कारण झूठे आरोपों से निपटने की जरूरत है। इस तरह के मुकदमे बेईमान वादियों द्वारा इस उम्मीद में लगाए जाते हैं कि दूसरा पक्ष डर या शर्म से उनकी मांगों को स्वीकार करेगा।”
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धड़ल्ले से होता है दुरुपयोग
इसी तरह साल 2015 में दिल्ली की एक फास्ट ट्रैक कोर्ट ने रेप के आरोपों की सुनवाई के बाद पाया कि वो कथित आरोपी निर्दोष था, जिसे महिला द्वारा फंसाया गया था। नतीजा ये कि महिला के खिलाफ ही उल्टा केस दर्ज कर कोर्ट ने कार्रवाई के लिए सुनवाई शुरू कर दी थी। इसको लेकर न्यायाधीश वीरेंद्र भट्ट ने कहा, “यह इस बात का एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि व्यक्तिगत टकराव को निपटाने के लिए पुरुषों को कैसे बलात्कार के मामलों में फंसाया जा रहा है। यह बलात्कार कानूनों के पूर्ण दुरुपयोग का एक आदर्श उदाहरण है।”
अदालतों में आए दिन होने वाली सुनवाई में जब महिलाओं द्वारा लगाए गए बलात्कार के आरोप झूठे साबित होते हैं, तो ये प्रश्न उठने लगता है कि कहीं महिलाओं के संरक्षण के नाम पर पुरुषों का उत्पीड़न करने वाले कानून तो अस्त्तित्व में नहीं आ गए। यही कारण है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बलात्कार के आरोपी के अपराध तय न हो जाने तक उसके मानवाधिकार की रक्षा करने की बात कही थी, क्योंकि जैसे ही किसी पुरुष पर रेप के आरोप लगते हैं, उसे एक दरिंदे की तरह देखा जाता है, इसके विपरीत जब मामला खुलता है तो ये सामने आता है कि कैसे महिला ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग भी कर सकती हैं।