अडानी पोर्ट्स ने बीते बुधवार को घोषणा करते हुए कहा कि कंपनी म्यांमार में कंटेनर टर्मिनल बनाने की योजना से पीछे हट रही है। कंपनी ने कुछ सप्ताह पहले ही अमेरिकी एजेंसियों के सामने म्यांमार में निवेश के लिए आवेदन दाखिल किया था। दरअसल, म्यांमार में मिलिट्री द्वारा फरवरी में किए गए तख्तापलट और उसके विरोध में हुए प्रदर्शनों को जबरन दबाने के कारण म्यांमार की फैक्ट्री के उच्च अधिकारियों सहित म्यांमार में निवेश पर विभिन्न देशों द्वारा कई प्रकार के प्रतिबंध लागू किए गए हैं। इनमें अमेरिकी प्रतिबंध सबसे कड़े हैं।
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अडानी ग्रुप ने किया था 127 मिलियन डॉलर का निवेश
कंपनी ने इस संदर्भ में जानकारी देते हुए कहा कि “कंपनी की जोखिम प्रबंधन समिति ने स्थिति की समीक्षा के बाद किसी भी विनिवेश के अवसरों की खोज सहित म्यांमार में कंपनी के निवेश से बाहर निकलने की योजना पर काम करने का फैसला किया है।” अडानी समूह द्वारा इस समय इस संदर्भ में अधिक जानकारी नहीं दी गई है, लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि आने वाले कुछ वर्षों में अडानी समूह म्यांमार में किए गए निवेश को वापस लेने वाला है। खबरों की मानें तो कंपनी की योजना अगले वर्ष मार्च से जून के बीच पूरी तरह म्यांमार से बाहर निकल जाने की है।
अडानी ग्रुप ने पहले ही कहा था कि वह United States Office of Foreign Assets Control (OFAC) के समक्ष आवेदन दाखिल करेगा और यदि कंपनी का निवेश अमेरिकी प्रतिबंधों की अवहेलना करता पाया गया, तो पूरे प्रोजेक्ट को बंद कर दिया जाएगा। पिछले वर्ष ही यंगून (रंगून) इंटरनेशनल टर्मिनल के विकास और संचालन का टेंडर अडानी ग्रुप को मिला था। जिसके बाद अडानी ग्रुप ने 127 मिलियन डॉलर का निवेश किया था।
भारतीय हितों को नुकसना पहुंचा रहा अमेरिका
वहीं, दूसरी ओर अमेरिका की परवाह किए वगैर चीनी कंपनियां म्यांमार में बड़ी मात्रा में निवेश करेंगी। चीन पहसे ही बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट के तहत म्यांमार में बड़े पैमाने पर निवेश भी कर रहा है। चीन-म्यांमार इकोनॉमिक कॉरिडोर में मार्च 2020 तक चीन ने म्यांमार में 21 बिलियन डॉलर का निवेश कर रखा था। साथ ही चीन, म्यांमार के क्यौकप्यु में डीप-सी पोर्ट भी बना रहा है। इस प्रोजेक्ट पर 1.3 बिलियन डॉलर का निवेश किया गया है। यदि चीन का डीप सी प्रोजेक्ट एक सफल नमूना बन जाता है, तो बांग्लादेश जैसे अन्य छोटे देश भी चीन के साथ ऐसे प्रोजेक्ट पर कार्य को लेकर आगे बढ़ सकते है और दक्षिण एशिया के देशों में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए खतरा पैदा कर सकता है।
बताते चलें कि अमेरिका और चीन के बीच रिश्ते काफी पहले से ही कुछ ठीक नहीं हैं। दोनों ही देशों के बीच शीत युद्ध चल रहा है, ऐसे में म्यांमार में उसके निवेश को लेकर अमेरिकी प्रतिबंध का कोई असर नहीं होगा, जबकि भारतीय कंपनियों को अमेरिकी प्रतिबंध का सामना करना पड़ रहा है। कुल मिलाकर अमेरिका की विदेश नीति भारत के क्षेत्रीय प्रभाव पर नकारात्मक असर डाल रही है। अफगानिस्तान, ईरान और म्यांमार तक अमेरिका, भारतीय हितों को नुकसान पहुंचा रहा है। ऐसे में भारत को अमेरिका के साथ मिलकर इस संदर्भ में जल्द ही कोई मार्ग निकालना पड़ेगा।
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