हिन्दुओं ने ‘बंगाली-अस्मिता’ के लिए जान दी, आज उसी अस्मिता में हिन्दुओं का रहना मुश्किल हो गया है!

2014, ढाका में भारत बनाम पाकिस्तान T20 वर्ल्डकप का मैच था। स्टेडियम में उपस्थित लगभग 99% बांग्लादेशी पाकिस्तान के सपोर्ट में थे। मुझे अब भी याद है एक पत्रकार ने जब एक बांग्लादेशी से इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि “71 के पहले बांग्लादेश भी पाकिस्तान का ही हिस्सा था इसलिए ऐसा सपोर्ट स्वाभाविक है।” वहीं, पाकिस्तानी प्लेयर्स भी ऐसा ही कुछ बता रहे थे कि बांग्लादेशियों का सपोर्ट उतना ही है जितना उन्हें होम ग्राउंड पर मिलता है।

इतिहास है कि ‘बंगाली अस्मिता’ के नाम पर बांग्लादेश-मूवमेंट का जन्म हुआ जिसे कुचलने के लिए पाकिस्तानी सेना ने 30 लाख बांग्लादेशियों की हत्या कर दी जिनमें अधिकांश हिन्दू ही थे। यदि हिन्दू अपना खून न बहाते और भारत आगे न आता तो बांग्लादेश कभी स्वतंत्र नहीं हो पाता और आज भी उन्हें पश्चिमी पाकिस्तान का गुलाम बनकर रहना पड़ता।

पूर्वी पाकिस्तान के शत प्रतिशत हिन्दुओं ने शेख मुजीबुर्रहमान का साथ दिया था और भारत ने मानवता की कसौटियों पर बांग्लादेश को स्वतंत्र करवाया। कितने ही भारतीय जवान वीरगति को प्राप्त हुए, कितने ही जीवनभर के लिए घायल हो गए।

इस पक्ष के साथ बांग्लादेशियों को हमेशा हिन्दुओं एवं भारत का आभारी रहना चाहिए था, किन्तु आज उसका कुछ अलग ही परिणाम निकल रहा है!

बांग्लादेश बनने के कुछ ही वर्षों में ‘बंगाली अस्मिता’, ‘सेकुलरिज्म’, ‘सोशलिज्म’ को ठंडे बस्ते में डालकर इस्लाम को नेशनल-रिलीजन बना दिया गया। संविधान में ‘अल्लाह पर बेजोड़ आस्था’ रखने की बात भी जोड़ दी गई। पहले जो कुछ भी पाकिस्तानी राज्य हिन्दुओं के साथ कर रहा था वही बांग्लादेश भी करने लगा। पाकिस्तान से भारत में घुसपैठ हो ही रही थी कि बाद में बांग्लादेश से भी प्रारम्भ हो गई।

अब मंदिरों-मूर्तियों को तोडना, हिन्दुओं का धर्मान्तरण करवाना, उनकी हत्या करना, हिन्दू महिलाओं का अपहरण-बलात्कार, पलायन के लिए मजबूर करना, आतंकवाद को पनाह देना यह सब बांग्लादेश में भी बड़े पैमाने पर हो रहा है।

अभी दो-तीन दिन पहले ही अष्टमी के दिन बांग्लादेश में कईं दुर्गा-पूजा के पंडालों पर हमला कर देवी की मूर्तियों को अपवित्र और खंडित कर दिया गया।

बांग्लादेश के एक पोलिटिकल थिंकर ‘अली-रियाज़’ ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि बांग्लादेश बनने के बाद से अभी तक 53 लाख हिन्दुओं को देश छोड़ना पड़ा है और बांग्लादेश के ही एक प्रसिद्ध इकोनॉमिक्स ‘अबुल बरकत’ ने लिखा है कि अगले 30 वर्षों में बांग्लादेश से हिन्दू बिलकुल ही ख़त्म हो जाएंगे।

अर्थात हिन्दुओं ने अपना खून देकर पूर्वी पाकिस्तान की ‘बंगाली-अस्मिता’ को जिन्दा रखा, लेकिन बांग्लादेश बनने के बाद आज उसी अस्मिता में हिन्दुओं का जिन्दा रहना मुश्किल है! आखिर ऐसा क्यों?

जवाब बहुत स्पष्ट है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि “एक हिंदू यदि धर्मान्तरित होता है तो एक हिंदू कम नहीं होता, बल्कि हिंदू समाज का एक शत्रु बढ़ जाता है।”

यह महज एक संयोग नहीं है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान या भारत में भी जहां मुसलमानों की आबादी अधिक है वहां एक ही तरह का पैटर्न हमें देखने को मिलता है।

इसका सीधा सम्बन्ध इस्लामीकरण से है। ये लोग मज़हब के नाम पर गैर-मुसलमानों के खिलाफ जिहाद करने को बढ़ावा देते हैं। इसी शिक्षा का प्रचार-प्रसार मदरसों के माध्यम से भी किया जाता है और मस्जिदों की अज़ान में भी जो तकरीरें होती हैं उनमें भी वही बातें रोज़-रोज़ दोहराई जाती हैं।

यही कारण है कि जिस तरह का सपोर्ट भारत के कुछ मुस्लिमों से तालिबान को मिल रहा है वैसा ही सपोर्ट तालिबान से पाकिस्तान को, पाकिस्तान से बांग्लादेश को और बांग्लादेश से अन्य इस्लामिक मुल्कों को मिल रहा है।

वास्तव में गैर-इस्लामिक लोग या देश कुछ लोगों के लिए कितना भी कुछ कर ले फिर भी अंततः वह ‘काफ़िर’ ही कहलाएगा। इन्हें यह जरूर याद रहेगा कि 71 के पहले बांग्लादेश पाकिस्तान का हिस्सा था लेकिन यह भुला दिया जाएगा कि 47 के पहले दोनों ही हिस्से भारत का हिस्सा थे।

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