चीन का भविष्य अंधकारमय है, क्योंकि उर्जा संकट कम्युनिस्ट राष्ट्र को जकड़ रहा है

चीन में बत्ती गुल है!

बिजली संकट में चीन

पिछले कुछ महीनों में चीन के लिए कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। एवरग्रांडे के नेतृत्व वाले रियल एस्टेट संकट से लेकर हुवावे जैसे तकनीकी दिग्गजों के पतन, निर्यात में गिरावट और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान से लेकर नवीनतम बिजली संकट तक – सब कुछ शी जिनपिंग के साम्राज्य के खिलाफ चल रहा है।

चीन में बिजली की कमी के कारण खाद्य (सोयाबीन प्रसंस्करण, पशु चारा प्रसंस्करण) और उर्वरक जैसी आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन मुश्किल हो गया है, और इऩकी कीमतें आसमान छू रही हैं। स्टील, एल्युमीनियम, सिलिकॉन जैसी धातुओं की कीमतें, जो पिछले कुछ महीनों में डिमांड और सप्लाई के कारण पहले से ही बढ़ रही थीं, अब और इनकी कीमते तेज दर से बढ़ रही हैं क्योंकि बिजली की कमी के कारण इन वस्तुओं का उत्पादन रुका हुआ है।

बिजली की खपत और एमिशन इंटेंसिटी को कम करने के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु कई प्रांतों में कठोरता से अनुपालन किया जा रहा है, और इस चक्कर में स्थानीय सरकारें अपनी अर्थव्यवस्था को बनाये रखने और आर्थिक लक्ष्यों को पूरा करने में विफलता का जोखिम उठा रही हैं। इस कारण से युन्नान में स्मेल्टर, झेजियांग में कपड़ा संयंत्र और टियांजिन में सोयाबीन क्रशर सभी ने बिजली कटौती को रोकने का फैसला किया है।

चीन के बिजली संकट को इस तरह समझिए। एक तरफ अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए बिजली की आपूर्ति को चालू रखना है, लेकिन कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण भी रखना है। रही सही कसर कोयले की बढ़ती कीमतों ने पूरी कर दी है। पिछले एक सप्ताह में चीनी कोयला की कीमतों में जो उछाल आया है वो चीन की नीतियों की वजह से ही ई है।

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पहले चीन ने ऑस्ट्रेलियाई कोयले के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था, जो दुनिया के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता में से एक है। चीन में दो-तिहाई से अधिक बिजली का उत्पादन कोयले से किया जाता है और अब उसे कोयले की डिमांड को पूरा करने के लिए रूस, दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों जैसे अन्य स्रोतों से महंगा कोयला खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

ब्रेमर (Braemar ) एसीएम शिपब्रोकिंग के ड्राई कार्गो रिसर्च एनालिस्ट अभिनव गुप्ता ने कहा, “देश में कोयले की कमी को देखते हुए, हम उम्मीद कर सकते हैं कि चीन अपनी खरीद गतिविधि में तेजी लाएगा और इसका अधिकांश हिस्सा दक्षिण पूर्व एशियाई बाजारों से निकटता के कारण आने की संभावना है।” गुप्ता ने आगे कहा, “इनमें से अधिकांश कोयला उत्पादक चरम क्षमता पर हैं, जो  बाजार में कोयले की डिमांड को बढ़ा सकता है जिससे कोयले की किमतों और उछाल देखने को मिल सकता है।”

कुछ विश्लेषक तो यहां तक ​​कह रहे हैं कि चीन को अपने अहंकार को छोड़ ऑस्ट्रेलियाई कोयले के आयात पर से प्रतिबंध हटाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। बैंचेरो कोस्टा एंड कंपनी के शोध प्रमुख Ralph Leszczynski ने कहा, “बीजिंग निश्चित रूप से ऑस्ट्रेलियाई कोयले के आयात पर प्रतिबंध को कम करने का फैसला कर सकता है, हालांकि यह राजनीतिक रूप से अनुकूल नहीं होगा परंतु इससे कोयले का अधिक आयात किया जा सकेगा और घरेलू कोयले की कीमतों पर दबाव कुछ कम होगा”।

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बिजली की कमी ने चीन की औद्योगिक गतिविधियों काफी ज्यादा प्रभावित किया है क्योंकि कई उद्योगों को सप्ताह में केवल 2 दिन संचालित करने के लिए कहा गया है। दुनिया भर की कंपनियां पहले से ही अपने कारखानों को चीन से दूसरे देशों में स्थानांतरित कर रही थीं और ऐसे बिजली संकट से उन कम्पनियों के बाहर निकलने की गति और तेज होगी।

फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन के पूर्व अध्यक्ष शरद कुमार सराफ ने बताया, “यह फैसला उत्सर्जन नियंत्रण से आगे जा रहा है। इससे कच्चे माल का आयात करने वालों को नुकसान होगा। शुरुआत में अत्यधिक ऊर्जा खपत वाले केवल 3 प्रांत थे जो बिजली की कटौती का सामना कर रहे थे, लेकिन अब यह चीन के 20 प्रान्त में फैल गया है। कुछ उद्योगों को एक सप्ताह में केवल 2 दिन काम करने के लिए कहा गया है । यह चीनी अर्थव्यवस्था को तो प्रभावित करेगा ही और दुनिया में भी इसका व्यापक प्रभाव होगा।”

चीन में बिजली से लेकर रियल एस्टेट तक, उत्पादन में व्यवधान और उथल-पुथल के साथ कम्युनिस्ट पार्टी के नियामक कार्रवाई से चीन की “दुनिया के कारखाने” वाली छवि को नुकसान पहुंचेगा। इससे चीन अब कंपनियों और निवेशकों के लिए पसंदीदा स्थान नहीं रह जायेगा। इसका असर दुनिया भर में होगा क्योंकि आपूर्ति की कमी के बीच उत्पादों की कीमतें बढ़ जाएंगी।

ऊर्जा संकट के दौरान भारत आत्मनिर्भर दिखाई दे रहा है क्योंकि जब कोयले की बात आती है तो भारत के पास भंडार है और यह बिजली उत्पादन को निर्बाध बनाए रखेगा। इसके अलावा, कोयले और स्टील जैसी वस्तुओं की उपलब्धता को देखते हुए निर्यात में भी बढ़ोतरी की उम्मीद है।

इन्हीं संकटो के चलते निवेशक चीन से दूर भाग रहे हैं। निवेशक चीन से बाहर आकर भारत जैसे देशों में निवेश करना शुरू कर चुके हैं। बटरफ्लाई इफ़ेक्ट और महंगे चीनी मजदूरों की वजह से निवेशक अपना पैसा वापस खींच रहे है, जिससे चीन का आर्थिक संकट और गहरा होता जा रहा है। चीन के विकास को दशकों से क्रेडिट और कार्बन द्वारा बढ़ावा दिया गया है, और बीजिंग अंततः इसे बदलने के लिए गंभीर हो रहा है। क्या चीन की अर्थव्यवस्था इस तरह के कठोर हस्तक्षेप को बनाए रख सकती है, यह देखा जाना बाकी है, लेकिन अभी तो चीन पर जो आर्थिक संकट है, वह दूर-दूर तक हटने का नाम नहीं ले रहे है।

चीन के अलावा, यूरोप और अमेरिका भी ऊर्जा संकट का सामना कर रहे हैं और और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान उन्हें बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। इस वैश्विक संकट के बीच, भारत शांत और स्थिरता वाला बड़ा देश बना हुआ है और यह दुनिया भर की कंपनियों और निवेशकों के लिए निवेश और उत्पादन गंतव्य के रूप में भारत की स्थिति को सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा।

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