एक दूसरे का सत्यानाश करने के बाद आखिरकार टूट ही गया आरजेडी और कांग्रेस का गठबंधन

'महागठबंधन' की कपोल कल्पित अवधारणा का अंत?

आरजेडी कांग्रेस गठबंधन

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साल 1990, 23 अक्टूबर को भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की अयोध्या जा रही रथयात्रा पर बिहार में विराम लगता है और तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की बिहार पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार किया जाता है। इस एक घटना ने स्पष्ट कर दिया था कि मुस्लिम तुष्टिकरण की नियत के तहत धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कांग्रेस की नीतियों को विस्तार देने में लालू और उनकी पार्टी आरजेडी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। बिहार में कांग्रेस की कमजोर स्थिति के कारण पार्टी ने लालू का साथ ले लिया, तब से लेकर साल 2020 के विधानसभा चुनाव तक दोनों साथ में रहें। कांग्रेस के कारण आरजेडी ने हमेशा मात खाई, लेकिन मोदी विरोध के बिंदु ने दोनों को एक करके रखा। वहीं, अब ये गठबंधन टूट चुका है और इसके साथ ही महागठबंधन बनने के मंसूबों का भी अंत हो गया है, जिसके दम पर विपक्षी पार्टियों द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनाव 2024 में चुनौती देने की प्लानिंग हो रही थी।

उपचुनाव में बढ़ गया टकराव

विधानसभा उप-चुनाव, एक सीट और तीन दशक का गठबंधन स्वाहा…जी हां! बिहार की कुशेश्‍वर स्‍थान सीट पर होने वाले उपचुनाव में उम्मीदवार उतारने को लेकर कांग्रेस और लालू यादव की पार्टी आरजेडी के बीच ऐसा टकराव हुआ है कि गठबंधन की धज्जियां उड़ गई है। कांग्रेस का कहना है कि ये सीट उनकी परंपरागत थी, लेकिन आरजेडी ने उन्हें धोखा देकर इस सीट से अपना उम्मीदवार उतार लिया है, जिसके कारण टकराव बढ़ा है। अंत में विधानसभा उप-चुनाव की यहीं सीट गठबंधन के लिए झटका साबित हुई है, क्योंकि बिहार कांग्रेस प्रभारी भक्त चरण ने ऐलान किया है कि अब कांग्रेस और आरजेडी का भविष्य में कोई गठबंधन नहीं होगा।

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आरजेडी से गठबंधन नहीं

कांग्रेस प्रदेश प्रभारी भक्त चरण दास द्वारा दिया गया यह बयान आरजेडी की मुश्किलें बढ़ा सकता है, क्योंकि उनका कहना है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस अकेले बिहार की 40 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। आरजेडी से कांग्रेस का कोई गठबंधन नहीं है। उन्होंने कहा, “बिहार विधानसभा उपचुनाव ही नहीं, आने वाले लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस बिहार की सभी 40 सीटों पर अपने दम पर मैदान में कूदेगी। बिहार में हम अब अपनी ताकत पर खड़ा होंगे और राजद से जमकर लड़ेंगे।

आरोप- प्रत्यारोप का खेल

आरजेडी और कांग्रेस के बीच ये टकराव आरोप-प्रत्यारोप से शुरु हुआ था। एक तरफ कांग्रेस ने आरजेडी पर आरोप लगाया था कि आरजेडी भाजपा से मिलकर एनडीए में शामिल होने की तैयारी कर रही है और उपचुनाव में कोई ऐलान भी हो सकता है। वहीं, कांग्रेस के इन आरोपों पर आरजेडी ने भी कांग्रेस पर कुछ इसी अंदाज में RSS के समर्थन का आरोप लगाया। आरजेडी नेता मनोज झा ने कहा था कि कांग्रेस बिहार में पर्दे के पीछे से RSS नेताओं के साथ साठगांठ करके बैठी हैं, जो कि देश के लिए खतरा है।

महागठबंधन की अवधारणा का अंत

साल 2014 में जब प्रधानमंत्री का पद पीएम मोदी ने संभाला था तो उसके साथ ही एक अवधारणा का जन्म हुआ था, महागठबंधन…जदयू नेता नीतीश कुमार ने सेकुलरिज्म के नाम पर एनडीए से गठबंधन तोड़ा था तो उसके बाद जातीय गणित के आधार पर महागठबंधन के समर्थन से उन्हें जीत मिल गई थी। लेकिन कुछ ही समय बाद जदयू पार्टी ने आरजेडी से नाता तोड़ लिया था और महागठबंधन से अलग हो गई थी। जिसके बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाई। दूसरी ओर बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में आरजेडी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया लेकिन कांग्रेस कई सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करने में नाकाम रही। आरजेडी नेताओं की ओर से बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में हार के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है। जिसके बाद अब दोनों पार्टियों की राहें अलग हो गई है।

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जदयू से गठबंधन के कारण बिहार में एनडीए की आसानी से जीत हो गई। इस एक चुनाव के बाद से ही लगने लगा था कि अब आरजेडी और कांग्रेस के बीच में दरार आ सकती है। वहीं, अब विधानसभा उप चुनाव को लेकर ये सारे मुद्दे प्रतिबिंबित हो रहे हैं। बताया जा रहा है कि आरजेडी और कांग्रेस के गठबंधन का अंत होने के साथ ही 2024 के लिए महागठबंधन की कपोल कल्पित अवधारणा का अंत भी हो सकता है।

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