भारत के जम्मू-कश्मीर में जिस प्रकार से क्रमबद्ध योजना से हिंदुओ की हत्या हो रही है, वह अत्यंत निंदनीय और हताशापूर्ण है। इस महीने घाटी में अलग-अलग हमलों में दो शिक्षकों, एक फार्मेसी के मालिक और पांच गैर-स्थानीय मजदूरों सहित 11 नागरिक मारे गए हैं। ऐसे में घाटी में सुरक्षा को लेकर एक बार फिर से सवाल खड़े हो गए हैं। हालांकि, पिछले दिनों केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू कश्मीर का दौरा कर, घाटी के लोगों को सुरक्षा व्यवस्था को लेकर आश्वस्त किया था।
जम्मू कश्मीर में पहले से बेहतर हो रहे हालात के मद्देनजर केंद्र सरकार कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास को लेकर भी लगातार काम कर रही है। लेकिन उसको लेकर कई तरह के पेंच फंसे है, लोगों के मन में शंकाएं भरी है। कश्मीरी हिंदुओं के मन से शंकाओं को कैसे दूर किया जाए और उन्हें वापस उनका घर दिलाया जाए, ये सबसे बड़ा सवाल है। इस मसले का समाधान दो वर्ष पूर्व एक व्यक्ति ने दिया था। साल 2019 में न्यूयार्क में भारत के महावाणिज्य दूत संदीप चक्रवर्ती ने सिफारिश करते हुए कहा था कि भारत सरकार को कश्मीर के जनसांख्यिकीय प्रसार को बदलने के लिए जबरन पुनर्वास का संकेत देते हुए, फिलिस्तीनी क्षेत्रों में इजरायल मॉडल का पालन करना चाहिए। इस आर्टिकल में हम विस्तार से समझेंगे कि आखिर क्या है इजरायल मॉडल और जम्मू-कश्मीर में कैसे इसका फायदा उठाया जा सकता है।
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जानें क्या है इजरायल मॉडल?
वर्ष 1967 में इजरायल ने पड़ोसी देशों के साथ हुए युद्ध (6 डे वॉर) के बाद जितने भी इलाकों पर कब्जा जमाया, इजरायल ने अपने लोगों को वहां बसाने की नीति अपनाई, जिसे इजरायली मॉडल कहा जाता है। इजरायल द्वारा कब्जाए गए इलाकों में वेस्ट बैंक, पूर्वी येरूशलम और गोलान की पहाड़ियां शामिल थी, जहां 1967 के युद्ध से पहले जॉर्डन का अधिकार था जबकि गाजा पट्टी पर मिस्र का कब्जा था।
इस युद्ध के बाद इजरायल ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यता प्राप्त ग्रीन लाइन के बाहर के इलाके में अपना विस्तार करना शुरू कर दिया, क्योंकि ग्रीन लाइन के बाहर का इलाका इस्राइल की सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था। वेस्ट बैंक, पूर्वी येरूशलम और ग्रीन लाइन के बाहर के इलाके में विस्तार के बाद इजरायल सरकार ने अपने खर्च पर ग्रीन जोन से बाहर कॉलोनियां बसानी शुरू कर दी।
कश्मीर में भी अपनाई जा सकती है इजरायली नीति?
इस बात की वास्तविक आशंका है कि राष्ट्र की हिंदू पहचान को मजबूत करने के लिए घाटी में हिंदुओं को बसाकर कट्टरपंथियों की एकाग्रता को कम करने का प्रयास किया जाएगा। भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार संभावित रूप से इजरायल के तरीकों का अनुकरण कर सकती है। जम्मू-कश्मीर में जनसांख्यिकीय परिवर्तन करने के लिए, सरकार को प्रदेश में भूमि अधिग्रहण और संपत्ति के स्वामित्व वाले कानूनों में संशोधन करने की जरूरत है।
23 नवंबर, 2019 को न्यूयॉर्क शहर में फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री द्वारा आयोजित एक निजी कार्यक्रम में महावाणिज्यदूत संदीप चक्रवर्ती ने भाग लिया था। जिसका विषय 1990 के दशक की शुरुआत में कश्मीरी हिंदुओं के जबरन विस्थापन पर आधारित था। उस कार्यक्रम में कश्मीरी हिंदुओं समेत कई भारतीय नागरिकों ने भाग लिया था।
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कश्मीरी पंडितों के समूह की मौजूदगी वाले निजी समारोह में उन्होंने कहा कि वे जल्द ही घाटी में लौट सकते हैं, क्योंकि जब इस्राइली लोग ऐसा कर सकते हैं, हम भी ऐसा कर सकते हैं। इस दौरान उन्होंने ‘इस्राइली मॉडल’ का जिक्र किया। उन्होंने कहा, मुझे यकीन है कि जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा से जुड़े हालात सुधरेंगे। यह शरणार्थियों को उनकी जिंदगी में अपने घर वापस लौटने का मौका देगा। आप अपने घर लौटने में सक्षम होंगे और वहां सुरक्षा पाएंगे।
चक्रवर्ती ने कहा, क्योंकि हमारे सामने विश्व में पहले ही एक ऐसा मॉडल है। मैं नहीं जानता कि हम उसे फॉलो क्यों नहीं करते। ऐसा पश्चिम एशिया में हो चुका है। आपको देखना होगा, यदि इस्राइली लोग ऐसा कर सकते हैं तो हम भी कर सकते हैं। उन्होंने कहा था कि इस्राइलियों ने अपनी संस्कृति को अपनी जमीन से दूर करीब 2000 साल तक जिंदा रखा और वे वापस लौटे। मेरा मानना है कि हम सभी को कश्मीरी संस्कृति को जिंदा रखना होगा। कश्मीरियत ही भारतीय संस्कृति है। यह हिंदू संस्कृति है। कोई भी कश्मीर के बिना भारत की कल्पना नहीं कर सकता। उन्होंने कहा, हमें अपनी जमीन वापस मिलेगी। हमारे लोग वापस जाएंगे। हमें कुछ समय दीजिए। सरकार जो कर सकती है, वह करेगी।
बताते चले कि इसे घेटो प्लान के काउंटर प्लान के रूप में भी देखा गया है। फ्रैग्मेंटेड बट टॉल के सिद्धांत पर चीन भी ऐसा कर चुका है। मुस्लिम आबादियां भी नई जगहों पर घेटो में ही रहती है। भारत भी काउंटर डिफेंसिव के रूप में ऐसा कदम उठा सकता है।