‘सच कह रहा है दीवाना, दिल, दिल न किसी से लगाना,
झूठे हैं प्यार के वादे सारे, झूठी है प्यार की कसमें।
मैंने हर लम्हा, जिसे चाहा, जिसे पूजा, उसी ने यारों मेरा दिल तोड़ा, तोड़ा, तन्हा, तन्हा छोड़ा….’
कहते हैं, गीतकार समीर अनजान को ऐसे कर्णप्रिय बोल लिखने के लिए केवल एक दिन का समय मिला था, लेकिन उन्होंने तमिल फिल्म ‘मिन्नाले’ के हिन्दी रीमेक ‘रहना है तेरे दिल में’ के लिए ऐसे गीत लिखे, कि आज भी लोग उसे गुनगुनाने पर विवश है। रूपकुमार राठौड़ जैसे धीर गंभीर ‘ग़ज़ल’ श्रेणी के गायक से भी यदि कोई ‘दिल को तुमसे प्यार हुआ’ जैसा सुरीला, मिश्री जैसा प्रेम रस से ओतप्रोत गीत कोई गवा सकता है, तो वो तो समीर अनजान ही हैं। आप इससे ही समझ जाइए कि उस समय का भारतीय संगीत कैसा हुआ करता था। लेकिन वो एक दौर था, और आज एक अलग दौर है। आज ‘सच कह रहा है दीवाना’ नहीं, ‘कांटा लगा’ और ‘गेंदा फूल’ जैसे गीतों का बोलबाला है, और जिस दिन ‘रहना है तेरे दिल में’ जैसे मधुर गीतों से परिपूर्ण फिल्म को 20 वर्ष पूरे हो रहे हो, ये ह्रास किसी आपदा से कम नहीं है।
लेकिन ऐसा क्या हुआ, कि 20 साल पहले जो भारतीय संगीत उद्योग ‘रहना है तेरे दिल में’ से लेकर ‘डूबा-डूबा रहता हूँ’, ‘अब मुझे रात-दिन’ जैसे मधुर संगीत देता था, वो अब रीमिक्स पर रीमिक्स निकाल रहा है? आज ही के दिन यानि 19 अक्टूबर को ‘रहना है तेरे दिल में’ 20 वर्ष पहले यानि 2001 में सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई थी। ये तमिल फिल्म ‘मिन्नाले’ का ही हिन्दी रीमेक था, जिसमें मुख्य भूमिका में मूल फिल्म के ही नायक आर माधवन थे।
लेकिन हिन्दी फिल्म उद्योग में ये केवल उनका डेब्यू नहीं था, उनके अलावा प्रसिद्ध निर्देशक गौतम वासुदेव मेनन ने भी इस फिल्म के जरिए हिन्दी फिल्म उद्योग में पदार्पण किया, और साथ में वर्ष 2000 में मिस एशिया पेसिफिक [अब मिस अर्थ] बनी दिया मिर्ज़ा ने भी हिन्दी फिल्म उद्योग में पदार्पण किया। इस फिल्म में सहायक भूमिकाओं में सैफ अली खान और अनुपम खेर जैसे कलाकार भी थे। ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर औसत प्रदर्शन ही कर पाई, परंतु इसके गैर-पारंपरिक कथावाचन और इसके कर्णप्रिय संगीत ने इसे सबकी प्रिय फिल्मों की लिस्ट में शामिल कर दिया। शीर्षक गीत से लेकर ‘सच कह रहा है दीवाना’, ‘ओ मामा-मामा’, ‘जरा-जरा’, ‘दिल को तुमसे प्यार हुआ’, यहाँ तक कि बैकग्राउन्ड स्कोर पर भी लोग जमकर झूमने लगे। लेकिन अब इनकी जगह ‘गेंदा फूल’, ‘बचपन का प्यार’, ‘कांटा लगा’ जैसे गीतों ने ली है, जिनमें मधुरता तो छोड़िए, संगीत भी नाम मात्र का नहीं है।
वर्ष 2000 भारतीय संगीत का वो दौर था, जहां रचनात्मकता अपने शिखर पर थी। इसी वर्ष ‘लगान’, ‘गदर’ जैसी फिल्में भी रिलीज हुई, जो न केवल अपनी कथाओं के लिए बेहद चर्चा में रही, अपितु अपने मधुर संगीत के लिए महीनों तक चैनल वी के ब्लॉकबस्टर लिस्ट में ट्रेंड करती रही। लेकिन ये रचनात्मकता यहीं तक सीमित नहीं थी। 2001 के समय स्वतंत्र संगीत, जिसे ‘इंडिपॉप म्यूज़िक’ भी कहते हैं, अपने चरमोत्कर्ष पर था। ऐसा कोई भारतीय नहीं होगा जो उस समय लकी अली, कलोनियल कजिंस, अलीशा चिनॉय के संगीत पर न थिरका हो।
जैसे-जैसे समय बढ़ता गया, संगीत का दायरा बढ़ता गया। ऐसा नहीं है कि रीमिक्स तब नहीं बनते थे, परंतु तब रीमिक्स में भी संगीत लोगों को थिरकने पर विवश करता था, आज की भांति कानों से खून नहीं निकलवाता था।
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फिर आया 2007 से 2012 का समय, जब संगीत का मानो अकाल सा पड़ गया। फिल्मी संगीत तो थोड़ा बहुत लोगों को रिझा रहे थे, परंतु उनमें पहले जैसा दम नहीं था। अगर मिथून शर्मा [Mitthoon] के संगीत को छोड़ दें, तो तब भी फिल्मी संगीत लगभग उसी मुहाने पर था जहां पर आज है। अंतर बस इतना था कि तब रीमिक्स और कबाड़ म्यूजिक की उतनी बाढ़ नहीं थी जितनी आज है।
फिर आया 2011, जब भारतीय संगीत का ‘पुनरुत्थान’ शुरू हुआ। पंजाबी पॉप में हिरदेश सिंह उर्फ यो यो हनी सिंह अपनी सुप्रसिद्ध एल्बम ‘इंटेरनेश्नल विलेजर’ लेकर आए। इस एल्बम ने एक ही रात में भारतीय संगीत उद्योग का कायापलट कर दिया, और एक के बाद एक पॉप और रैप म्यूजिक की बाढ़ आ गई। अगले ही वर्ष ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ में करण जौहर ने प्रसिद्ध गीत ‘डिस्को दीवाने का रीमेक किया। ये रीमेक अपने आप में मूल गीत के साथ किया गया एक भद्दा खिलवाड़ था, और कहीं न कहीं इसी ने भारतीय संगीत के पतन की नींव रखी।
इसपर TFI ने कुछ समय पूर्व एक लेख भी लिखा था, जहां हमने बताया था, “2012 में करण जौहर ने अपने दोयम दर्जे की फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ में ‘डिस्को दीवाने’ का एक घटिया रीमेक बनाया था, और तब से आज तक, कभी अपने कर्णप्रिय गीतों से लोगों को थिरकने पर विवश करने वाला बॉलीवुड आज ‘कॉपी पेस्ट’ की दुकान बन चुका है। जिसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ करण जौहर को ही जाता है। लेकिन ये सिलसिला यहीं पर नहीं रुका, बल्कि ‘हम्पटी शर्मा की दुल्हनिया’, ‘कपूर एंड संस’, ‘बार-बार देखो’, ‘ओके जानु’, ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ इत्यादि से इन्होंने बॉलीवुड के संगीत में रचनात्मकता को खत्म करने की नींव डाली थी।”
करण जौहर भी एक प्रमुख कारण है, जिसके पीछे आज भारतीय संगीत उच्चतम से निम्नतम स्तर पर पहुँच चुका है। टी सीरीज़ तो यूं ही बदनाम है, नींव तो इन्होंने रखी थी, जिसके बल पर आज बादशाह, टोनी कक्कर और नेहा कक्कड़ जैसे अयोग्य गायक दिन-रात संगीत का अस्थि पंजर कर रहे हैं। इनको देख स्वयं ‘रहना है तेरे दिल में’ को संगीत देने वाले भी सोचते होंगे – क्या इसी भारत ने हमारे गीतों को सराहा था?