हाल ही में अपने बयानों से उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत के वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वामपंथी खेमे में त्राहिमाम मचा दिया है। ‘वीर सावरकर – वह पुरुष जो विभाजन रोक सकते थे’ नामक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर उन्होंने दावा किया कि महात्मा गांधी के सुझाव पर ही विनायक दामोदर सावरकर ने अपनी कथित दया याचिका को दायर किया था।
सावरकर को एक ओजस्वी स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर संबोधित करते हुए, उन्होंने बताया कि कैसे उनका प्रभाव इतना अधिक था कि अंग्रेज़ों को उन पर एक नहीं बल्कि आजीवन कारावास के दो-दो दंड लागू करने पड़े। राजनाथ सिंह के अनुसार, “सावरकर जी के विरुद्ध निरंतर असत्य प्रकाशित किया गया। दावा किया गया कि उन्होंने जेल से रिहा होने के लिए दया की भीख मांगी, परंतु सुझाव तो उन्हें महात्मा गांधी ने दिया था।”
Speaking at the Book Launch event of ‘Veer Savarkar: The Man Who Could Have Prevented Partition’. Watch https://t.co/5rfIZ6B4qH
— Rajnath Singh (मोदी का परिवार) (@rajnathsingh) October 12, 2021
वे वहीं पर नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा कि, “आपको हमारे नायकों से मतभेद हो सकता है, परंतु उनके बारे में पूर्वाग्रह होना उचित नहीं है। सावरकर जी एक उत्कृष्ट स्वतंत्रता सेनानी थे, और उन्हें निष्कासित करना, उन्हें अनदेखा करना और उनका अपमान करना अक्षम्य है। वे एक बहुत बड़े स्वतंत्रता सेनानी थे। कुछ लोग ऐसी विचारधाराओं से हैं जो निरंतर उनपे प्रश्न उठाते रहे हैं। उन्हें एक बार नहीं बल्कि दो-दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।”
वामपंथी बुरी तरह भड़क गए
अब कोई व्यक्ति वीर सावरकर की ऐसी स्तुति करे, और वामपंथी चुप रहे, ऐसा हो सकता है क्या? वामपंथी तुरंत इस दावे पर भड़क गए और राजनाथ सिंह को उल्टा-सीधा सुनाने लगे। कुछ वामपंथी चाटुकार दावा कर रहे थे कि गांधीजी तो 1915 में भारत आए जबकि सावरकर ने तो 1911 में ही सेल्युलर जेल में पहली दया याचिका दायर की। हालांकि वे दो बातें भूल जाते हैं – पहली यह कि सावरकर को 1911 में सज़ा सुनाई गई थी, और गांधीजी ने वास्तव में ऐसे पत्र लिखे थे।
और पढ़ें : राजदीप सरदेसाई को आरिफ़ मोहम्मद खान और विक्रम संपत ने धो डाला
‘Collected Works of Mahatma Gandhi’ के 19 वें संकलन में एक पत्र प्रकाशित किया गया था, जिसमें लाहौर से महात्मा गांधी ने नारायणराव सावरकर को पत्र लिखते हुए सुझाव दिया था कि क्यों गणेश दामोदर सावरकर और विनायक दामोदर सावरकर को सम्राट जॉर्ज पंचम द्वारा प्रस्तावित एमनेस्टी ऑर्डर के अंतर्गत दया याचिका दायर करना एक उचित विकल्प होगा, जिससे वे सेल्युलर जेल जैसी व्यवस्था से बाहर आ सके।
बता दें कि 1909 में मॉरेले मिंटो रिफॉर्म्स के अंतर्गत धार्मिक विद्वेष के विरोध में गणेश दामोदर सावरकर को हिरासत में लिया गया था। इसके पश्चात 1910 में नासिक के कलेक्टर जैक्सन की हत्या के आरोप में विनायक दामोदर सावरकर और मुख्य आरोपी अनंत लक्ष्मण कनहेरे को भड़काऊ लेखों के जरिए हिंसा भड़काने के फर्जी आरोपों के अंतर्गत हिरासत में लिया गया था उन्हें भी सेल्युलर जेल भेज दिया गया, जबकि पुलिस के पास उनके विरुद्ध न तो कोई साक्ष्य था, और न ही कोई ऐसा प्रमाण, जिसके कारण उनपर कार्रवाई की जा सके।
और पढ़े: विक्रम संपत में है पूरे वामपंथी इतिहासकार गैंग की दुकानों को बंद करने की क्षमता
ऐसे ही इरफान हबीब ने राजनाथ सिंह को घेरने का प्रयास किया, परंतु जब तथ्यों के बल पर विक्रम सम्पत ने इरफान हबीब की धुलाई प्रारंभ की, तो वे कहीं मुंह छुपाने योग्य नहीं बचे, और गोलमोल उत्तर देने लगे। इसपर आक्रामक रुख अपनाते हुए विक्रम सम्पत ने तुरंत ट्वीट किया, “यदि आपको गोलपोस्ट शिफ्ट करने अथवा गिरगिट की भांति रंग बदलने पर क्रैश कोर्स करना है, तो आपको बस एक वामपंथी इतिहासकार के साथ कुछ समय बिताना है। जीवन भर के लिए मूल्यवान अनुभव प्राप्त हो जाएगा, और इसके लिए कोई भी निन्दा कम पड़ेगी।”
For anyone needing a crash course on how to keep changing colors like a chameleon or shift goal posts u just have to engage with a Leftist historian even for a brief while. You will be trained for life to do convenient somersaults & couch it in sophistry! Shameless. https://t.co/WpukFYQE06
— Dr. Vikram Sampath, FRHistS (@vikramsampath) October 13, 2021
वास्तव में देखा जाए तो वामपंथियों का इतिहास पर से एकाधिकार धीरे-धीरे खिसकता जा रहा है। कुछ ही हफ्तों पूर्व ‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ में जब जवाहरलाल नेहरू की तस्वीर को हटाकर स्वतंत्रता सेनानियों में विनायक दामोदर सावरकर की तस्वीर को शामिल किया गया, तो यही वामपंथी हाय तौबा मचाने लगे थे। इसके बीच राजनाथ सिंह ने जब यह खुलासा किया कि किस प्रकार से महात्मा गांधी ने सावरकर बंधुओं की रिहाई के लिए पैरवी की, तो वामपंथी बगलें झाँकते हुए पाए गए। इसी को कहते हैं, एक ही तीर से दो निशाने साधना।