PM मोदी को बांग्लादेशी कट्टरपंथियों को सबक सिखाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने होंगे

यही समय है, सही समय है!

इन दिनों बांग्लादेश में गैर-मुस्लिमों के विरुद्ध एक के बाद अत्याचार हो रहे हैं। कोमिल्ला जिले में दुर्गा पूजा पंडाल में ‘इस्लाम के अपमान’ का कथित आरोप लगाते हुए जो तांडव शुरू हुआ, उसने देखते ही देखते पूरे बांग्लादेश को अपनी चपेट में ले लिया। कट्टरपंथी मुसलमानों का इस समय बांग्लादेश में बोलबाला है, और स्थिति को नियंत्रण में लाने के बजाए बांग्लादेशी पीएम शेख हसीना भारत को ही गैर-जिम्मेदाराना कदम न उठाने की चेतावनी देती फिर रही हैं। ऐसे में समय आ चुका है कि पीएम मोदी पाकिस्तान की भांति बांग्लादेश के परिप्रेक्ष्य में भी आक्रामक रुख अपनाएँ और बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के लिए शेख हसीना और उनके प्रशासन को कड़ा सबक सिखाएँ।

बांग्लादेशी पीएम शेख हसीना की बातों से ऐसा प्रतीत होता है कि ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’, परंतु इसमें इतना हैरान होने वाली बात नहीं है, क्योंकि शेख हसीना ने जाने-अनजाने ये सिद्ध कर दिया है कि इस समय बांग्लादेश में उनकी कम और कट्टरपंथी मुसलमानों की ज्यादा तूती बोलने लगी है। जिस प्रकार से नोआखली, चटगांव, कॉक्स बाज़ार समेत बांग्लादेश के कई जिलों में हिंदुओं को घेर-घेर कर मारा जा रहा है, उनकी बहू बेटियों के साथ अत्याचार किया जा रहा है, उससे इतना तो स्पष्ट है कि बांग्लादेश में गैर-हिंदुओं के लिए स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। स्थिति इतनी बेकार है कि इस्कॉन के मंदिरों तक को नहीं छोड़ा जा रहा है –

 

ऐसे में मोदी सरकार की बांग्लादेशी हिंदुओं के प्रति क्या जिम्मेदारी बनती है? नरेंद्र मोदी सरकार का बांग्लादेशी हिंदुओं के प्रति दायित्व तो है, लेकिन उन्हें साथ ही साथ ये भी सुनिश्चित करना है कि वर्तमान बांग्लादेशी प्रशासन को ऐसा सबक मिले कि वे क्या, कोई भी आने वाली सरकार अगले कई सालों तक बांग्लादेश के हिन्दू तो छोड़िए, किसी भी गैर-मुस्लिम की ओर आँख उठाके न देख पाए।

परंतु ये संभव कैसे होगा? पीएम मोदी की भाषा में बोले तो सर्वप्रथम ‘लव लेटर लिखना बंद करना होगा’, यानि भारत को बांग्लादेश के विरुद्ध आक्रामक रुख अपनाना होगा, ठीक वैसे ही, जैसे उसने पाकिस्तान के विरुद्ध अपनाया था, और जैसे वैक्सीन के परिप्रेक्ष्य में यूरोप के बड़े बड़े देशों, विशेषकर यूके के विरुद्ध अपनाया गया था।

सर्वप्रथम तो CAA एवं NRC के मुद्दे पर भारत को अपना रुख स्पष्ट करते हुए बांग्लादेश पर अपने अवैध प्रवासियों को वापिस लेने हेतु दबाव बनाना चाहिए। वैसे भी, वामपंथियों की माने तो बांग्लादेश की आर्थिक व्यवस्था हमसे कहीं बेहतर है। ऐसे में बांग्लादेश को अपने नागरिक वापिस स्वीकारने में कोई कठिनाई तो बिल्कुल नहीं होनी चाहिए।

इसके अलावा बांग्लादेश पर पाकिस्तान की भांति सुनियोजित और निश्चित ट्रेड प्रतिबंध लागू करने चाहिए, जैसे उरी और पुलवामा के हमले के पश्चात किया था। जैसे पाकिस्तान के कट्टरपंथी मुसलमानों एवं म्यांमार के रोहिंग्या मुस्लिमों के विरुद्ध भारत काफी हद तक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दबाव बना रहा है, इसी भांति भारत को बांग्लादेशी मुस्लिमों के विरुद्ध भी प्रतीकात्मक कार्रवाई करते हुए उनकी अलग ब्लैकलिस्ट सूची बनानी शुरू कर देनी चाहिए।

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इसके अलावा गैर-मुस्लिमों को नागरिकता के लिए जो विकल्प उपलब्ध दिए गए हैं, उन्हें केवल CAA के दायरे तक सीमित नहीं रखना चाहिए, अपितु ये भी सुनिश्चित करना होगा कि जो भी गैर-मुस्लिम, विशेषकर हिन्दू नागरिक बांग्लादेशी कट्टरपंथियों के अत्याचारों से तंग आकर भारत में शरण ले रहा हो, उसे भारत में त्वरित न्याय भी मिले। यह तभी से प्रारंभ हो चुका है, जब मई 2021 में जारी अधिसूचना के अनुसार केंद्र सरकार ने CAA के अलावा भी गैर-मुस्लिमों के लिए भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के मार्ग को सुगम बना दिया।

TFI के ही विश्लेषणात्मक पोस्ट के अनुसार, “अब उस कानून के बिना ही इन सभी गैर मुस्लिम लोगों को नागरिकता देने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, जो कि इन पीड़ित लोगों के लिए किसी खुशखबरी से कम नहीं है। नागरिकता से जुड़े इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नागरिकता कानून 1955 और 2009 में कानून के अंतर्गत आने वाले नियमों के अनुसार आदेश के लागू होने की एक अधिसूचना जारी की है। इस अधिसूचना के अंतर्गत बांग्लादेश, अफगानिस्तान समेत पाकिस्तान से आए गैर-मुस्लिम लोगों से नागरिकता के लिए आवेदन मांगें गए हैं।

सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया, “नागरिकता कानून 1955 की धारा 16 के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए केंद्र सरकार ने कानून की धारा पांच के तहत यह कदम उठाया है। इसके अंतर्गत उपरोक्त राज्यों और जिलों में रह रहे अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और इसाई अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिक के तौर पर पंजीकृत करने के लिए निर्देश दिया गया है।’’

सच कहें तो अब मोदी सरकार को बांग्लादेश में हो रहे वर्तमान प्रकरण के विषय पर फ्रंटफुट पर आकर खेलना चाहिए, जो उनके लिए इतना भी मुश्किल नहीं है। वैसे भी, जो पीएम मोदी बिना प्रोटोकॉल और सेक्युलरिज्म की परवाह किए यशोरेश्वरी काली के मंदिर और ओरकांडी मंदिर के दर्शन कर सकते हैं, वो निस्संदेह बांग्लादेश प्रशासन की हेकड़ी के विरुद्ध आक्रामक कदम भी उठा सकते हैं।

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